राम गोपाल पाण्डेय
दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ती मंहगाई और नतीजे में जीवन यापन की अकल्पनीय मुश्किलों के बीच अचानक वैधानिक न्यूनतम मजदूरी भी घटा दी जाए तो क्या होगा? एक तो वैसे भी नियोक्ता कम-से-कम मजदूरी देकर पैसा बचाने के चक्कर में न्यूनतम मजदूरी को अनदेखा करते हैं, दूसरे सरकार भी मजदूरी कम करने लगे तो मजदूरों, खासकर असंठित क्षेत्र के मजदूरों की क्या दशा होगी?
देश के संविधान के भाग 4 ‘राज्य की नीति के निदेशक तत्व’ (Directive Principles of State Policy), कण्डिका 43 में राज्य द्वारा कर्मकारों के लिए उनके शिष्ट जीवन स्तर को दृष्टिगत रखते हुए निर्वाह मजदूरी निर्धारित करने का प्रावधान है। इसके अंतर्गत ही ‘न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948’ देश में प्रभावशील है। इस अधिनियम में राज्य सरकारों को अपने प्रदेशों में नियोजन-वार (Employment basis) न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने की शक्ति दी गई है।
मध्यप्रदेश में अक्टूबर 2014 में लागू की गईं पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी दरों का पुनः पुनरीक्षण पांच वर्ष के अंदर अक्टूबर 2019 तक किया जाना अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत अनिवार्य था, लेकिन यह बहु-प्रतीक्षित पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी दरें दस वर्ष में 1 अप्रैल 2024 से राज्य सरकार द्वारा निम्नानुसार लागू की गईं:-
श्रेणी मासिक दैनिक
अकुशल 11800/- 454/-
अर्धकुशल 12796/- 492/-
कुशल 14519/- 558/-
उच्च कुशल 16144/- 621/-
प्रदेश के श्रमिकों के लिए पुनरीक्षित उक्त न्यूनतम मजदूरी दरों के विरुद्ध पीथमपुर औद्योगिक संगठन द्वारा याचिका क्र. 9401/2024 तथा म.प्र. टेक्स्टाइल मिल्स एसोसिएशन द्वारा याचिका क्र. 10772/2024 दायर की गई। याचिका पर उच्च न्यायालय खण्डपीठ इंदौर द्वारा दिनांक 8 मई 2024 को सुनवाई कर स्थगन आदेश दिया गया। इस स्थगन आदेश के पालन में श्रमायुक्त द्वारा आदेश दिनांक 24 मई 2024, पुरानी दरों पर 01 अप्रैल 2024 से निम्नानुसार मजदूरी भुगतान हेतु जारी किया गया:-
श्रेणी मासिक दैनिक
अकुशल 10175/- 391/-
अर्धकुशल 11032/- 424/-
कुशल 12410/- 477/-
उच्च कुशल 13710/- 527/-
इस प्रकार निम्नानुसार न्यूनतम मजदूरी दरें प्रदेश में कम हो गई हैं:-
श्रेणी मासिक दैनिक
अकुशल 1625/- 63/-
अर्धकुशल 1764/- 68/-
कुशल 2109/- 81/-
उच्च कुशल 2434/- 94/-
प्रदेश के न्यूनतम मजदूरी पर आश्रित लाखों श्रमिकों को अप्रैल 2024 का पुनरीक्षित (बढ़ी हुई) दरों से भुगतान मई प्रथम सप्ताह में प्राप्त हो जाने के उपरांत उच्च न्यायालय के स्थगन आदेश से अचानक मई 2024 का भुगतान श्रमिकों को जब जून 2024 के प्रथम सप्ताह में रु. 1625/- से रु. 2434/- मासिक कम मिला तो पूरे प्रदेश में श्रमिक आक्रोशित होकर नियोजन स्थलों में आंदोलन पर उतर आए। पीथमपुर, मालनपुर, रतलाम, खरगौन, मंडीदीप तथा प्रदेश के अन्य कई स्थानों पर काम बंद कर गतिरोध की स्थिति निर्मित हुई है। प्राप्त जानकारी के अनुसार मालनपुर में श्रमिकों ने चक्का जाम भी किया है जिससे आवागमन बाधित हुआ तथा आमजन कई घंटों तक परेशान हुए। सरकारी दफ्तरों में संविदा में लगे कर्मियों में भी उथल-पुथल जारी है।
उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ताओं द्वारा याचिका में प्रदेश में क्षेत्रवार न्यूनतम मजदूरी पुनरीक्षित कर निर्धारित नहीं करने का मुद्दा उठाया गया है, जबकि यह विषय न तो ‘न्यूनतम मजदूरी सलाहकार परिषद’ के विचार हेतु लाया गया और न ही सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी के संबंध में प्रारंभिक अधिसूचना जारी कर आपत्तियां आमंत्रित करने पर उठाया गया। ऐसे में सरकार द्वारा पुनरीक्षित दरों के संबंध में अंतिम अधिसूचना जारी करने के उपरांत क्षेत्रवार न्यूनतम मजदूरी दरों के निर्धारण का सवाल उठाना न तो व्यावहारिक है और न ही विधिसम्मत है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश पिछड़ा और आदिवासी-बहुल राज्य होने के कारण क्षेत्रवार मजदूरी दरों का निर्धारण नहीं कर पूरे राज्य के सभी श्रमिकों के लिए एक समान न्यूनतम मजदूरी दरें लागू करने का शुरुआती दौर में निर्णय लिया गया था जो अब भी जारी है। इसके अलावा बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों/श्रम संगठनों द्वारा मांग प्रस्तुत कर समझौते के माध्यम से उपयुक्त मजदूरी तय कराने के विधिक विकल्प के कारण संगठित उद्योगों में मांग और आपूर्ति तथा श्रमिकों की दक्षता एवं कुशलता के आधार पर उन्हें न्यूनतम मजदूरी से अधिक वेतन सुनिश्चित हो जाने से क्षेत्रवार मजदूरी दरों का निर्धारण किया जाना अपेक्षित नहीं था।
प्रदेश के लाखों लाख श्रमिक परिवारों का जीवन निर्वाह राज्य सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से होता है और वर्तमान विकट महंगाई के दौर में रूपये 63 से रूपये 94 तक प्रतिदिन मजदूरी कम हो जाने से श्रमिक परिवारों के समक्ष गंभीर आर्थिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इन परिस्थितियों से निपटने के लिये श्रमिकों और यूनियनों के समक्ष अधिकांश श्रमिकों के संगठित नहीं होने, वर्तमान समय में भारी न्यायालयीन व्यय के भुगतान हेतु उनके पास धनराशि नहीं होने तथा समर वेकेशन होने से सुनवाई लंबित हो जाने की कठिनाई है।
मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि प्रदेश के अंतिम पंक्ति के लोगों को देय अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी रोकी गई। वस्तुतः श्रमिकों से संबंधित न्यूनतम मजदूरी तथा अन्य विषय त्रिपक्षीय समितियों यथा ‘मध्यप्रदेश श्रम सलाहकार परिषद’ तथा ‘न्यूनतम मजदूरी सलाहकार परिषद’ एवं अन्य सलाहकार समितियों में विचारोपरांत हल किये जाने की विधिमान्य प्रक्रिया है। अतएव यदि प्रदेश में क्षेत्रवार मजदूरी का निर्धारण किया जाना आवश्यक है तो ‘न्यूनतम मजदूरी सलाहकार परिषद’ में विचारोपरांत ही कार्यवाही अपेक्षित है।
इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल यह है कि उच्च न्यायालय के स्थगन को समाप्त कराने हेतु सरकार द्वारा तत्पर और सार्थक पहल नहीं की गई, उल्टे श्रमायुक्त द्वारा वर्ष 2014 के पुनरीक्षण आदेश के आधार पर प्रदेश के श्रमिकों को 1 अप्रैल 2024 से मजदूरी भुगतान करने के आदेश कर दिये गये, जबकि उच्च न्यायालय द्वारा प्रकरण का अंतिम निराकरण नहीं हुआ है। फलस्वरूप प्रदेश के श्रमिक तथा उद्योग जगत में असमंजस, अनिश्चय तथा उहापोह की स्थिति व्याप्त हो गयी है जो बेहद चिंताजनक है।
उल्लेखनीय है कि श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी प्रदेश का नीतिगत विषय होने से उच्च न्यायालय जबलपुर (मुख्य पीठ) के समक्ष समग्र रूप में सुनवाई हेतु एवं आवश्यक होने पर सर्वोच्च न्यायालय में प्रकरण ले जाने की श्रम विभाग द्वारा प्रदेश के श्रमिकों तथा नियोजकों के हित में तत्पर और सार्थक कार्यवाही की जाना नितांत आवश्यक है। (सप्रेस)