दुनिया भर में जो महिलायें हत्या का शिकार होती हैं, उनमें से चालीस फीसदी की हत्या की जाती है, उनके पूर्व प्रेमियों या पतियों द्वारा. घर महिलाओं के लिए एक खतरनाक युद्धभूमि बन जाता है, जहाँ सबसे अधिक रक्तपात की आशंका होती है. इस तरह की घटनाओं के विभिन्न पहलुओं के अलावा इनके मनोवैज्ञानिक धरातल को हमेशा खंगाला जाना चाहिए.
अचानक माहौल में खून की गंध फ़ैल रही है. संकरी गलियों के नीम अँधेरे से उठ रही है यह गंध. बड़े शहरों की ऊंची इमारतों से भी निकल कर बाहर फ़ैल रही है. यह खून किसी अपने का ही है, किसी अपने ने ही बहा दिया है. दुनिया में हर तरह के इत्र को मिलाकर कोई मिश्रण बनाया जाए, तो भी इस खून की गंध जाने का नाम नहीं लेती. कोई धर्मग्रन्थ बताता है कि आदम और हौव्वा के पहले दो बच्चे थे केन और एबेल. केन ने ईर्ष्यावश एबेल की हत्या कर दी. तब से यही ऐलान हुआ बताया जाता है कि अब जब भी कोई किसी को मारेगा, अपने ही भाई को मारेगा. अपनों को ही मारेगा. अपने पति, अपनी पत्नी, अपने आशिक और अपनी माशूका का ही क़त्ल करेगा. धरती पर जब से इंसान ने पैर रखे, क़त्ल का उसे स्वाद लगा हुआ है जैसे. जब भी कोई किसी को मारता है, अपनों को ही मारता है. सोचता यह है कि किसी और को मार रहा है.
बिलकुल महफूज़ नहीं स्त्रियाँ और बच्चे
समाज में अभी भी महिलायें और बच्चे बहुत असुरक्षित हैं. हर शिकारी के लिए वे सबसे ‘सॉफ्ट टारगेट’ हैं. हमेशा वल्नरेबल हैं. वियोन जैसे न्यूज़ चैनल की प्रतिष्ठित एंकर पलकी शर्मा उपाध्याय ने भी हाल में अपने इंटरव्यू में बताया कि कैसे महिलाएं अजीबो गरीब बातों और व्यवहार का शिकार होती हैं. यह तो हाल है एक प्रतिष्ठित पत्रकार का जो अपनी बातें पूरी दुनिया में प्रसारित कर सकती है. हो नीरीह हैं, प्रिविलेज्ड नहीं हैं, उनकी कौन सुने! बहुचर्चित श्रद्धा वॉकर हत्याकांड के पहले और बाद में देश के अलग अलग हिस्सों में इस तरह के कितने वीभत्स काण्ड, कहाँ कहाँ हुए इसके विस्तार में जाने की दरकार फिलहाल महसूस नहीं हो रही. सब कुछ वीभत्स और बड़ा पीड़ादायी रहा है और इसे दोहराने से पीड़ा कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती ही है.
आपको जान कर ताज्जुब होगा कि दुनिया भर में जो महिलायें हत्या का शिकार होती हैं, उनमें से चालीस फीसदी की हत्या की जाती है, उनके पूर्व प्रेमियों या पतियों द्वारा. घर महिलाओं के लिए एक खतरनाक युद्धभूमि बन जाता है, जहाँ सबसे अधिक रक्तपात की आशंका होती है. इस तरह की घटनाओं के विभिन्न पहलुओं के अलावा इनके मनोवैज्ञानिक धरातल को हमेशा खंगाला जाना चाहिए. ज़्यादातर हत्यारे पुरुष कहते हैं कि उन्होंने हत्या इसलिए की क्योंकि वे अपनी प्रेमिका से प्रेम करते थे, हत्या अत्यधिक प्रेम का परिणाम थी. प्रेम का एक यह नया मॉडल उभरा है जिसमें अधिक प्रेम का परिणाम हत्या और खून खराबा होता है! इस बारे में एक दिलचस्प किताब प्रकाशित हुई है 2008 में. इसका शीर्षक है: ‘इन द नेम ऑव लव’ और इसमें इस तरह की घटनाओं को देखने का एक अलग नजरिया प्रस्तुत किया गया है.
आम तौर पर यही माना जाता है कि पुरुषों में कब्ज़ा ज़माने की जो प्रवृत्ति होती है, उसका ही यह परिणाम है. ईर्ष्या और क्रोध की इसमें बड़ी भूमिका होती है. दूसरी बात यह है कि इस तरह के रिश्तों में हिंसा का एक इतिहास होता है जो आखिरकार क़त्ल में अपने क्लाइमेक्स पर पहुँचता है. इस तरह की घटनाएँ प्रेम की प्रकृति पर भी सवाल उठाती है, और साथ ही पुंसवादी सोच के अलग अलग पहलुओं पर भी सोचने को बाध्य करती हैं.
पूर्वनियोजित होती हैं ये हत्याएं:
इस तरह की अधिकांश हत्याएं सुनियोजित होती हैं. पहले से ही संबंधों में जो हिंसा होती है, उससे इन हत्याओं को अलग नहीं किया जा सकता. ऐसा नहीं कि अचानक पुरुष ने खुद पर नियंत्रण खो दिया और हिंसा कर बैठा. यह लंबे समय से पनप रहे संवाद के अभाव का भी परिणाम होता है. यह भयंकर हताशा और कुंठा का परिणाम होता है. यह ऐसे अपराध बोध का भी परिणाम हो सकता है जिसके बारे में पति पत्नी या आशिक माशूका के बीच बातचीत न हो पाती हो और अचानक किसी दिन संवाद का यह अभाव हिंसा और हत्या का रूप ले ले तो यह एक बड़ी त्रासदी है. पर ऐसा भी होता है. इस स्थिति से बचने के लिए जरूरी है की आपस में बात हो, संवाद हो. यह दुर्भाग्य है कि बहुत करीबी रिश्तों में भी आत्मीयता नहीं हो पाती, पारदर्शिता नहीं पनप पाती. इसके कई कारण हैं और इनकी कई तरह से व्याख्याएं हो सकती हैं. पर इस लेख का यह विषय नहीं, इसके बारे में अलग से विस्तृत चर्चा की जरूरत है.
हत्या से पहले इस बारे में बारीकी से सोच विचार:
हत्या से बहुत पहले ही मानसिक स्तर पर समूची योजना बन जाती है. ऐसे में यदि साथी अचानक तनावपूर्ण मौन में चला जाए, और पहले से ही घर में शंका, क्रोध और हिंसा का माहौल हो, चाहे व्यक्त रूप से या अव्यक्त रूप से, तो ऐसे में सतर्क रहने की जरूरत है. किसी सदस्य को नशे की लत हो, शराब, भांग, गांजे या किसी अन्य ड्रग का सेवन नियमित रूप से करता हो, तो ऐसे में सतर्कता की जरूरत अधिक होगी. किसी एक कारक को चिन्हित करना मुश्किल काम है. ऐसी कई परिस्थितयां होती हैं जो मिल जुल कर ‘हत्या की स्थिति’ का निर्माण करती हैं. पुरुषों में ईर्ष्या, कब्ज़ा जमाने की आदत और क्रोध के अधिक होने की गुंजाइश है और इसलिए महिलायें इनका शिकार आम तौर पर होती हैं. पर यही अकेले कारण नहीं.
भावनात्मक कमजोरी, आत्मविश्वास का अभाव:
पुरुष अक्सर कमज़ोर और आत्मविश्वास की कमी से ग्रस्त होने की वजह से स्त्री, अपनी पत्नी या प्रेमिका को अपने जीवन की धुरी समझता है और उसके बगैर उसके जीवन में एक शून्य के आगमन का भय उसे लगातार सताता है. वह उसके साथ ही अपने अस्तित्व की पहचान जोड़ लेता है. जितना उसका लगाव बढ़ता है, उतना ही उसका भय, संदेह और नियंत्रण करने की प्रवित्ति में बढ़ावा होता है. संदेह इतना बढ़ जाता है की उसे पत्नी या प्रेमिका को ख़त्म करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं सूझता. यह हीट ऑफ़ द मोमेंट नहीं होता. इस मोमेंट या पल तक पहुँचने की एक लंबी मानसिक यात्रा होती है. यात्रा न बाहरी लोगों को दिखती है और न ही इससे गुजरने वाला इसे देख समझ पाता है. इसके भयावह, रक्तरंजित परिणाम जब सामने आते हैं, तब लोगों को सदमा लगता है मानों सब कुछ अचानक ही हो गया हो. जबकि हकीकत कुछ और ही होती है. इस तरह की घटनाएँ अपने साथ लंबे अतीत का वेग लेकर चलती हैं.
घटनाओं की वाह्य अभिव्यक्तियों से अधिक जरूरी है कि उस मन को समझा जाए, जो इस तरह की वारदात को अंजाम देता है. इसके बगैर इस तरह की समस्याओं का पूर्ण समाधान नहीं हो सकता. उस सामजिक परिप्रेक्ष्य को समझना, इसके आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, वैचारिक पहलुओं को समझना बहुत जरूरी है. मन पर इनके प्रभाव को समझे बगैर इस तरह की क्रूर घटनाओं को कैसे समझा जा सकता है भला?
मीडिया रहे संवेदनशील:
मीडिया को इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करते समय बहुत संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है. इनकी रिपोर्टिंग करते समय बेहतर होगा कि बार बार इनके रक्तरंजित विस्तृत वर्णन में न जाएँ, बल्कि तथ्यों पर ही बातें करें. इंसान के मन के भीतर ऐसा कुछ होता है जो इन बातों में रस ढूँढ़ लेता है. फिर घरों में इनकी चर्चा होने लगती है. बच्चों के मन पर इनका कैसा असर होता है यह समझना आसान नहीं. पर जैसा भी असर हो, बुरा ही होता है. इस तरह की घटनाओं का अंधाधुंध वर्णन तो किसी किसी को इनका अनुकरण करने के लिए भी उकसा सकता है. टी आर पी की लालच में अपना सामाजिक दायित्व न भूल जाए मीडिया, यही उम्मीद की जाती है.
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