डॉ. ओ.पी.जोशी

कई बार ‘फिसल’ पड़ने से भी ‘गंगा-स्‍नान’ हो जाता है। कुछ ऐसा ही डीजल की कीमतों के पैट्रोल की कीमतों से बराबरी करने से भी हुआ है। प्रदूषण के एक बडे कारण डीजल वाहन अब घटकर पैट्रोल वाहनों से मुकाबला करने लगे हैं और नतीजे में प्रदूषण पर थोड़ा-बहुत नियंत्रण भी होने लगा है।

जीवाश्म ईधन, जैसे पट्रोल, डीजल, कोयला एवं लकड़ी आदि के दहन एवं जलने से महीन कण (पीएम यानि प्रति दस लाख 10 एवं 2.5) नाइट्रोजन-आक्साइड, सल्फर डाय-आक्साइड एवं कार्बन मोनो तथा डाय-आक्साइड उत्सर्जित होकर वायु मंडल में पहुंचकर प्रदूषण पैदा करते हैं। एक डीजल-चलित कार पेट्रोल कार की तुलना में सात गुना ज्यादा प्रदूषण फैलाती है। डीजल से पैदा धुंए में महीन कण 90 गुना अधिक होते हैं और नाइट्रोजन आक्साइड 30 गुना। इसके साथ ही कार्बन डाय-ऑक्साइड, बेंजीन एवं फार्मल-डीहाइड की मात्र भी अधिक होती है।

विश्व के अलग-अलग देशों में समय-समय पर किये गये अध्ययन दर्शाते हैं कि डीजल का धुंआ पर्यावरण एवं जन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्‍ल्‍यूएचओ) से सम्बंधित ‘इंटरनेशनल एजेंसी फार रिसर्च आन कैंसर’ के वर्ष 2012 के अध्‍ययन में डीजल से पैदा धुंए को मानव में कैंसर-कारक पदार्थ की सूची में रखा गया था। इसके पहले इसे सम्भावित श्रेणी में रखा गया था। अमरीका के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर आक्युपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ’ ने डीजल के धुंए को व्यवसाय-जनित कैंसर का सम्भावित कारण बताया है। डीजल के धुंए से कैंसर का खतरा बढ़ने की सम्भावना को अमरीका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) ने भी स्वीकार किया है। एक तीव्र कैंसर अन्य पदार्थ (3 नाइट्रोबेजेन झोन) की उपस्थिति जापान के वैज्ञानिकों ने डीजल के धुंए में देखी है।

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हमारे देश में लम्बे समय तक डीजल पेट्रोल से सस्ता रहा है क्योंकि सरकार इस पर ज्यादा सब्‍सीडी देती रही है। इसे सस्ता बनाये रखने के दो प्रमुख कारण थे। एक तो यह कि कृषि-प्रधान देश होने से यह किसानों को खेती के कार्यों में सहायक हो एवं उन पर ज्यादा आर्थिक बोझ नहीं पडे। दूसरा यह कि व्यावसायिक वाहनों में इसके उपयोग से माल ढुलाई एवं जनता के लिए परिवहन सस्ता बना रहे। इन दो कारणों से इसकी उपलब्धता सभी जगह आसान बनायी गयी। डीजल के कम दाम एवं सर्वत्र उपलब्धता पर वाहन निर्माता कम्पनियों ने ध्यान दिया एवं डीजल चलित वाहनों के मॉडल बनाकर उन्हें बाजार में उतार दिये। कार निर्माताओं ने इसका ज्यादा फायदा उठाया एवं डीजल कार के कई मॉडल बनाकर बिक्री हेतु बाजार में खडे कर दिए। वर्ष 2010 के आसपास डीजल कारों की बिक्री 50 प्रतिशत के लगभग हो गयी।

वर्ष 2013 के प्रथम छः माह में नई कारों को बिक्री में 56 प्रतिशत भागीदारी डीजल कारों की हो गयी थी। आज देशभर में होने वाली कुल डीजल की खपत का 15 प्रतिशत निजी कारों में हो रहा है। सार्वजनिक यातायात सुलभ बनाने हेतु डीजल बसों की संख्या भी शहरों में बढ़ी। शिक्षण संस्थाओं ने भी अपने विद्यार्थियों के आवागमन हेतु डीजल वाहनों को प्राथमिकता दी। नेट वर्क चलाने के लिए देश की टेलिकॉम कम्पनियों ने भी बिजली की कमी या कटौती के समय डीजल जनरेटर का उपयोग किया। ये कम्पनियां वर्ष भर में लगभग दो हजार करोड़ लीटर डीजल का उपयोग करती हैं। शहरों के बड़े-बड़े बाजारों एवं शो-रूम में भी बिजली कटौती के समय डीजल जनरेटर चलाये जा रहे हैं।

इस प्रकार सस्ते डीजल का उपयोग बढ़ने से वातावरण में विषाक्तता बढ़ने लगी एवं जन-स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव होने लगा। सिरदर्द, चक्कर आना, सीने एवं आंखों में जलन आदि डीजल धुंए के प्रारम्भिक प्रभाव देखे गये हैं। लम्बे समय तक सम्पर्क में रहने से जो प्रभाव देखे गये हैं उनमें प्रमुख हैं – कम वजन वाले शिशुओं का जन्म, शिशु मृत्युदर में अधिकता, समय-पूर्व प्रसव, कुछ जन्मजात विकृतियां, फेफड़े के रोग एवं कैंसर।

डीजल धुंए से पैदा खतरों के मद्देनजर अब दुनिया भर में इसके नियंत्रण के प्रयास जारी हैं। इटली की राजधानी रोम में वहां की सिटी कौंसिल के निर्णयानुसार प्रातः 7.30 से रात्री 8.30 तक डीजल कारों पर रोक लगायी गयी है। जर्मनी के कई शहरों में भी अलग-अलग समय के लिए डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाया गया है। चीन तो वर्ष 2025 तक डीजल कारों के निर्माण पर रोक लगाने हेतु प्रयासरत है। डीजल वाहनों की संख्या निश्चित करना, ज्यादा रोड-टैक्स एवं पार्किंग शुल्क, प्रदूषण कर एवं उत्पादन-कर बढ़ाना आदि ऐसे प्रयास हैं जो कई देशों में किये जा रहे हैं।

हमारे देश में भी डीजल-कारों पर अतिरिक्त उत्पादन शुल्क लगाने का प्रयास वर्ष 2012 के बजट में प्रस्तावित था, परंतु यह क्रियान्वित नहीं हो पाया। दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखकर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी निजी डीजल कारों पर 30 प्रतिशत पर्यावरण-कर लगाने का सुझाव दिया था। ‘राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण’ (एनजीटी) ने दिल्ली तथा देश के 15 प्रमुख शहरों से 10 वर्ष पुराने डीजल वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था, फिर भी डीजल धुंए के खतरनाक प्रभावों को कम करने के प्रयास सफल नहीं हो पाये। वर्तमान में कई शहरों में मेट्रो रेल का संचालन ‘सीएनजी’ (कॉम्पेक्ट नेचुरल गैस) तथा विद्युत चलित वाहनों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। थोड़ा सुखद यह भी है कि इस वर्ष जून में कुछ अतिरिक्त कर लगाने से पेट्रोल डीजल के भाव लगभग बराबर हो गये हैं। भविष्य में भी यदि इसी प्रकार भाव समान रहे तो यह सम्भावना है कि पेट्रोल वाहनों की बिक्री बढ़े एवं डीजल के जहरीले धुंए से कुछ राहत मिले। (सप्रेस)

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