सचिन श्रीवास्तव

कोरोना काल में देश के 14 करोड़ से ज्यादा परिवारों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है। इनमें समाज के हाशिये पर रहने वाले समुदायों की आजीविका सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। इन्हीं में सेक्स वर्कर्स समुदाय भी शामिल है। प्रस्‍तुत है, कोरोना संकट में सेक्स वर्कर्स के हालात की पड़ताल करती सचिन श्रीवास्तव की ग्राउंड रिपोर्ट

भोपाल से करीब 40 किलोमीटर दूर रायसेन जिले का एक गांव (अज्ञात रखने की खातिर गांव का नाम नहीं दिया जा रहा) आसपास के अन्य गांवों की तरह ही कोरोना काल में उंनीदा-सा है। गांव की गलियों में साईकिल के पुराने टायर को घुमाते हुए बच्चे हैं, दालानों में बैठे बुजुर्ग और मोबाइल की टचस्क्रीन पर नजरें गडाए युवा हैं। लेकिन हालात असामान्य हैं। इस गांव के ज्यादातर परिवारों की आजीविका सेक्स वर्क के जरिये चलती है, जिस पर कोरोना का कहर बुरी तरह टूटा है।

बात करने पर ग्रामीणों ने शुरुआत में सब कुछ सामान्य होने की दुहाई दी। लेकिन जब डायरी और पेन एक तरफ रखा तो परेशानियों और मुश्किलों का गुबार जुबान पर आने लगा। साहूकारों के उधार के चंगुल में फंस रहे इन परिवारों के पास न ठीक से खाने को है, न दवा और दूध का बंदोबस्त है। ऊपर से सामाजिक तौर पर बहिष्कार और लोगों की चुभने वाली नजरों का सामना भी हर रोज करना पड़ रहा है।

सेक्स वर्कर न होते तो हालात बेहतर होते

सेक्स वर्कर के तौर पर आजीविका कमाने वाली कमला (परिवर्तित नाम) कहती हैं कि हमारे पास और कोई काम नहीं है। सालों से इसी काम से जो थोड़ा बहुत पैसा मिलता है, उससे घर चलता है। कोरोना ने काम छीन लिया है और अब बीमारी के डर से कोई आता भी नहीं। ऐसे में उधार लेकर पेट भरने के अलावा कोई चारा नहीं है।

नहीं मिलता कोई और काम

वे बताती हैं कि यहां महिलाओं को तो और कोई काम मिलता ही नहीं है, पुरुषों को भी लोग कोई काम नहीं देते हैं। कोरोना के पहले भी घर के पुरुषों ने अन्य जगहों पर काम करने की कोशिश की हैं, लेकिन कोई काम नहीं देता है। अगर कोई काम देता भी है, तो वह पहले घर की महिलाओं से मुफ्त में सेक्स की मांग करता है।

बचत खत्म, अब तीन गुने ब्याज पर उधार

लॉकडाउन खुलने के बाद धीरे—धीरे अन्य पेशों में कामकाज सामान्य हालात की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन सेक्स वर्कर्स की हालत बद-से-बदतर होती जा रही है। इस कारण बचत और उधार पर ही सेक्स वर्कर्स की जिंदगी चल रही है। कमला (परिवर्तित नाम) ने बताया कि गांव और कस्बे के साहूकार उन्हें उधार तो दे रहे हैं, लेकिन इसके लिए दो और तीन गुना तक ब्याज ले रहे हैं। उन्होंने हाल ही में 15 प्रतिशत ब्याज पर 12 हजार रुपए उधार लिए हैं। गांव में ज्यादातर परिवारों ने मई—जून के बाद ही उधार लेना शुरू कर दिया था। यहां सेक्स वर्क से जुड़े हर परिवार के ऊपर लॉकडाउन के दौरान करीब 30 से 40 हजार रुपए का उधार है।

पुरुष को नहीं देते पैसा, महिलाओं को बुलाते हैं

एक अन्‍य गांव की एक सेक्स वर्कर ने बताया कि जिन लोगों से उधार लेते हैं, अगर उनके पास हमारे परिवार के पुरुष जाते हैं, तो पैसा नहीं देते हैं। पैसा न होने का बहाना भी बना देते हैं, या फिर सीधे-सीधे कह देते हैं कि अपनी बहन, बीवी को भेज देना।

उधार देने वाले करते हैं शारीरिक शोषण

एक सेक्स वर्कर ने बताया कि आमतौर पर उधार देने वाले उन्हें गलत जगह छूते हैं और वे यह भी अपेक्षा करते हैं कि हम उधार तो चुकाएं ही, साथ ही उनके साथ मुफ्त सेक्स भी करें। कई तो खुले तौर पर यह कहते हैं कि पूरा पैसा और ब्याज के अलावा उनके साथ समय भी गुजारना होगा।

घूरना है आम

इसी गांव में सेक्स वर्क करने वाली रामकली (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान आसपास खाना बंटता था, तो हम लेने जाते थे, लेकिन लोग अच्छी निगाह से नहीं देखते। पुलिस भी टोकती है। लोग हमें घूरकर देखते हैं। इसलिए ज्यादा बाहर नहीं निकलते।

बड़े शहरों से लौटी गृह-राज्य

लॉकडाउन के दौरान मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों से अपने गृह-राज्य लौटे परिवारों में सेक्स वर्कर्स भी शामिल थे। एक गांव में मुंबई से लौटी सोनम (परिवर्तित नाम) ने बताया कि अप्रैल के महीने में हमने तीन दिन बिस्कुट खाकर गुजारा किया था। उसके बाद एक ट्रक से मध्यप्रदेश की सीमा तक पहुंचे। उन्होंने बताया कि वहां काम करने वाली 50 से 60 प्रतिशत सेक्स वर्कर्स अपने गृह-राज्यों की ओर लौट गई हैं।

कोरोना का डर और काम ठप

कोरोना की भयावहता के कारण सेक्स वर्कर्स के संपर्क में कोई भी नहीं आना चाहता। इससे हजारों लोगों के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है। मध्यप्रदेश में कई गांव ऐसे हैं, जहां के निवासियों की आजीविका सीधे तौर पर सेक्स वर्क से जुड़ी है। इनका काम बीते छह महीने से पूरी तरह ठप है और गुजारे के लिए वे उधार और मदद पर निर्भर हैं। 

बुनियादी दवाओं की भी किल्लत

कई सेक्स वर्कर्स परिवारों में बुजुर्ग हैं, जिनको प्रतिमाह 300 से 700 रुपए की दवा जरूरी होती है। इन्हें दवाएं मिलना मुहाल हो रहा है। गांव में ऐसे दर्जनों परिवार हैं, जहां बुजुर्गों ने अपनी रोजाना की दवाएं बंद कर दी हैं, क्योंकि उनके पास दवाएं खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।

बच्चों को नहीं दे पा रहे दूध

गांव की एक सेक्स वर्कर ने बताया कि उनके घर में पिछले दो महीने से बस दाल, रोटी और आलू ही खाने को है। वे तीन महीने पहले ही अपनी पांच वर्षीय बेटी का दूध बंद करा चुकी हैं। आगे हालात कब सामान्य होंगे, कह नहीं सकते।

इक्का-दुक्का ग्राहक, लेकिन दाम हुए आधे

सेक्स वर्कर्स बताती हैं कि बीमारी के कारण अब पहले की तरह लोग नहीं आते। पहले जहां हर रोज एक—दो ग्राहक आ जाते थे। अब सप्ताह में एक-आध ही कोई आता है। वह भी पहले के मुकाबले आधा दाम ही देता है।

परिवार के अन्य सदस्यों को नहीं मिलता काम

सेक्स वर्कर सरिता (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि हमें तो गांव या शहर में कोई और काम मिलता नहीं है। परिवार के पुरुषों को भी लोग इसलिए काम नहीं देते हैं कि हमारा परिवार सेक्स वर्क के जरिये आजीविका चलाता है। सरिता कहती हैं, मेरे मां-बाप साथ रहते हैं। उनका खर्च मेरे काम से ही चलता है। गांव में ज्यादातर परिवारों की हालत बेहद खराब है।

सामाजिक दूरी, हमारी हकीकत

सेक्स वर्कर का काम करने वाली सुनीता (परिवर्तित नाम) बताती हैं कि लॉकडाउन में सामाजिक दूरी के बारे में खूब बातें हुईं, लेकिन हमें तो पहले ही समाज ने दूर कर रखा है। जिन परिवारों के पुरुष शाम होते ही हमारे दरवाजे पर खड़े रहते थे, उनसे भी मदद मांगी तो मुकर गए।

कोरोना फैलाने का भी लगा आरोप

ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि हम पर कोरोना फैलाने का आरोप भी लगा। मई के महीने में व्हाट्सएप पर यह अफवाह फैली कि सेक्स करने से कोरोना होता है और हमारे गांव से कोरोना फैलने की बात कही गई। इससे काफी दिक्कत हुई।

30 लाख से ज्यादा परिवार जुड़े हैं, सेक्स वर्क से

‘नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन’ (NACO) के आंकड़ों के मुताबिक देश में करीब 9 लाख सेक्स वर्कर हैं। हालांकि सेक्स वर्कर्स के बीच काम करने वाले सामाजिक संगठनों की मानें तो पूरे देश में करीब 30 लाख से ज्यादा परिवारों की रोजी-रोटी सेक्स वर्क के जरिये चलती है। हमारे समाज में सेक्स वर्क को सामाजिक तौर पर मान्यता नहीं हैं, इसलिए कई परिवार छुपकर यह काम करते हैं।

मध्यप्रदेश में सैकड़ों गांवों में सेक्स वर्क है, आजीविका

पश्चिमी मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर, रतलाम, तो उत्तर में मुरैना और श्योपुर और मध्य के इलाके में विदिशा, रायसेन, राजगढ़ के सैकड़ों गांवों में हजारों परिवार सेक्स वर्क के जरिये रोजी-रोटी चलाते हैं। इन जिलों की कई जातियों को भी सेक्स वर्कर्स समुदाय में रखा जाता है। हालांकि हकीकत यह है कि एक जाति के सभी लोग सेक्स वर्क से नहीं जुड़े हैं। दिक्कत यह है कि उक्त जाति से ताल्लुक रखने के कारण अन्य परिवारों को भी दूसरे रोजगार नहीं मिलते हैं, जिस कारण मजबूरन उन्हें भी सेक्स वर्क करना होता है।

लॉकडाउन में बढ़ा है भेदभाव

लॉकडाउन के असर के बारे में सेक्स वर्कर्स बताती हैं कि काम की परेशानी तो पहले भी थी और आजीविका की मुश्किल भी थी। लॉकडाउन में यह और बढ़ गया है। आजीविका का संकट, रोजमर्रा की चुनौतियां, मानसिक तनाव, हिंसा और भेदभाव में कोरोना के कारण और बढ़ोत्तरी हो गई है। (सप्रेस)

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