सरकार ने संवैधानिक रूप से मिले ‘विरोध का अधिकार’ और ‘आतंकवादी गतिविधि’ के बीच अंतर की रेखा को धुंधला कर दिया

फादर स्टेन की मृत्यु पर मजदूर किसान शक्ति संगठन ने जारी किया वक्तव्य

राजस्थान में स्थित मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) ने फादर स्टेन स्वामी की मौत पर दुख व्‍यक्‍त करते हुए कहा है कि उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी झारखण्ड के आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदाय के सेवा में गुज़ारी। फादर स्टेन स्वामी ने वर्तमान भारतीय शासन व्यवस्था की जिन खामियों के खिलाफ, अपना जीवन संघर्ष करते हुए बिताया, उन्हीं खामियों ने उनके जीवन का अंत कर दिया।

मजदूर किसान शक्ति संगठन ने कहा कि यह बात साफ़ लग रही है कि फादर स्टेन स्वामी पर लक्षित तरीके से गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप इसलिए लगाया ताकि उनको परेशान करके सताया जा सके। इसका मकसद यही था कि मानव-अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए यह एक उदाहरण बने। यह और भी अपमानजनक बात है कि एक अस्सी साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिक एवं पार्किंसंस रोग से ग्रसित व्यक्ति के साथ ऐसा अमानवीय सलूक किया गया। यह ना सिर्फ फादर स्टेन स्वामी के मामले पर बल्कि पूरे लोकतंत्र पर प्रभाव डालता है।

हाल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का विरोध करने तीन व्यक्तियों को जमानत दी गयी, इन्हें भी UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था। उनको जमानत देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि असंतोष को दबाने की चिंता में और इस डर से कि मामला हाथ से निकल सकता है, सरकार ने संवैधानिक रूप से मिले ‘विरोध का अधिकार’ और ‘आतंकवादी गतिविधि’ के बीच अंतर की रेखा को धुंधला कर दिया। ऐसा करने दिया जाता है तो इससे लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।

पार्किंसंस से ग्रसित होने की वजह से फादर स्टेन खुद खाने-पीने में भी सक्षम नहीं थे। शासन ने फादर स्टेन को बुनियादी चिकित्सा आवश्यकताएं न देकर अमानवीय बर्ताव किया है। यहाँ तक कि उन्हें पानी पीने के लिए स्ट्रॉ भी उपलब्ध नहीं कराई गई। 8 अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार करने के बाद आरोप पत्र तैयार करना तो दूर, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने फादर स्टेन को पूछताछ के लिए हिरासत में भी लेने की कोशिश नहीं की। ऐसे में फादर स्टेन को न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी बेगुनाही साबित करने का मौका भी नहीं मिला। UAPA के आरोप के वजह से उनको जमानत भी नहीं दी जा सकती थी। इस वजह से, फादर स्टेन जैसे बीमार व्यक्ति के लिए, यह प्रक्रिया व्यावहारिक रूप में बिना मुक़दमे के मौत की सज़ा थी।

जवाबदेही पर काम करने वाले संगठन होने के नाते मजदूर किसान शक्ति संगठन की मांग है कि UAPA जैसे अमानवीय कानून पर समीक्षा की जाए। फादर स्टेन स्वामी के मामले को कई तरह के आलोचनात्मक पुनर्विचार की ज़रुरत है ताकि एक ऐसे व्यक्ति के जीवन को उचित श्रद्धांजलि मिले जिन्होंने गरीब और शोषित के लिए काम किया। असली लोकतंत्र में हमेशा ऐसी सतर्कता होनी चाहिए कि शासन व्यवस्था की ज्यादती और आपराधिक न्याय व्यवस्था (क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम) जिनमें खुफिया विभाग भी शामिल हैं, की जवाबदेही तय हो। न्याय को बचाने के लिए संवैधनिक मूल्यों को ताक पर रखकर बनाये गए ऐसे सभी कानूनों को वापस लेना ज़रूरी है। फादर स्टेन आपराधिक न्याय व्यवस्था (क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम) में सुधार चाहते थे। उनको याद रखने का सबसे उचित तरीका यही होगा कि इस व्यवस्था में सुधार कर उनके सपनों को साकार किया जाये।

मजदूर किसान शक्ति संगठन की औपचारिक स्थापना मई 1990 को हुई थी। इसके तीन संस्थापक सदस्य थे अरुणा राय, निखिल डे व शंकर सिंह। इस संगठन के कार्य की शुरूआत छोटे जमीनी संघर्षों न्यूनतम व भूमि अधिकारों के संघर्ष से हुई। मजदूर किसान संगठन की महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि उसने गांव स्तर के प्रयासों को राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर के नीतिगत बदलावों से जोड़ा। संगठन ने सूचना के अधिकार की मांग की पहल की थी। पहले इस मांग को संगठन ने अपके कार्यक्षेत्र में फैलाया, फिर पूरे राज्य में धरने-प्रदर्शन करते हुए कई संगठनों को इससे जोड़ा। मजदूर किसान शक्ति संगठन ने सूचना के जन अधिकार के राष्ट्रीय अभियान की स्थापना व संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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