बागी आत्मसमर्पण स्वर्ण जयंती के मौके पर सप्रेस द्वारा चंबल घाटी में अहिंसा का अनूठा प्रयोग पुस्‍तक का प्रकाशन

इंदौर 16 अप्रैल । बागी समर्पण के स्वर्ण जयंती वर्ष के मौके पर ख्‍यातनाम फीचर सर्विस सर्वोदय प्रेस सर्विस ( सप्रेस) द्वारा पुस्तक चंबल घाटी में अहिंसा का अनूठा प्रयोग का प्रकाशन किया गया है। पुस्‍तक के माध्‍यम से करीब आधी सदी पहले के समाज और उसमें विद्रोह करने वाले बागियों से परिचित हो सकेंगे।

वरिष्‍ठ पत्रकार एवं सप्रेस संपादक राकेश दीवान ने बताया कि दूसरे आत्म-समर्पण की पचासवीं सालगिरह के अवसर पर ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’  ने अपने करीब 62 साल के ‘भंडार’ में से कुछ महत्वपूर्ण लेखों का संजोकर पुन:प्रकाशित किया है। इन लेखों में डाकूग्रस्त इलाकों की परिस्थितियां, समाज में व्याप्त तनाव और जाति-वर्ग का गहरा विभाजन दिखाई देता है।

उन्‍होंने कहा कि कहा जाता है कि यह कारनामा यदि किसी यूरोप के देश में हुआ होता तो उसे कई-कई बार नोबल पुरस्कार से नवाजा जा चुका होता। आखिर मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान के विशाल बीहडों में डर और आतंक का प्रतीक बने डाकू अपनी मर्जी से पहले विनोबा और बाद में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के समक्ष न सिर्फ अपनी बंदूकों जैसे घातक हथियारों समेत आत्मसमर्पण कर रहे थे, बल्कि अपने-अपने अपराधों के लिए समाज से माफी मांगकर कानून-सम्मत दंड स्वीकार कर रहे थे। बागियों का हृदय परिवर्तन और सर्वो दय समाज का यह ऐतिहासिक कार्य प्रेरणादायी है।

सप्रेस के प्रबंध संपादक कुमार सिद्धार्थ ने बताया कि यह पुस्तक इस मायने में महत्‍वपूर्ण है कि इसमें 60 साल पूर्व हुए ऐतिहासिक बागी समर्पण के परिप्रेक्ष्‍य, बागियों से भेंट वार्ता, वरिष्‍ठ सर्वोदयीजनों का नजरिया और आत्‍म समर्पण के बाद की स्थिति / परिस्थितियों का विश्‍लेषण संबंधी आलेख तत्‍कालीन वरिष्‍ठ  गांधीजनों जयप्रकाश नारायण, एसएन सुब्बराव, चंबल घाटी शांति मिशन से जुडे रामचंद्र नवाल, प्रो. गुरूशरण, ठाकुरदास बंग, सरलादेवी, महेंद्रकुमार, श्रवण गर्ग आदि  के नजरिये से देखने – समझने का प्रयास किया जा सकता है।

उल्‍लेखनीय है कि 1960 में आचार्य विनोबा भावे के आवाहन और स्व. महेन्द्रकुमार की पहल पर इंदौर से शुरु हुई ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’ बागी आत्म-समर्पण से जुडे भांति-भांति के मसलों पर लेख जारी कर रही थी। विनोबा के समक्ष 1960 में हुए पहले आत्म-समर्पण के बाद 1978 तक, कई जगह, कई बार आत्म-समर्पण होते रहे हैं। कहा जाता है कि बुंदेलखंड और चंबल-घाटी में 1960 और 78 के बीच करीब 650 दस्युओं ने आत्म-समर्पण किया था। इनसे जुडे विभिन्न मुद्दों पर ‘सप्रेस’ ने लगातार प्रकाशन किया है।

करीब 125 पृष्‍ठ की इस पुस्‍तक का मूल्‍य 50 रू है। । इसे सप्रेस की वेबसाइट www.spsmedia.in के द्वारा  स्‍वेच्छिक सेवा शुल्‍क बटन पर क्लिक कर राशि का भुगतान किया जा सकता है। राशि प्राप्‍त होन के बाद पुस्‍तक की प्रति आपके पते पर भेजी जा सकेगी।

एक मई 1960 से विधिवत शुरु हुई ‘सर्वोदय प्रेस सर्विस’ की निष्‍ठावान पहल के तहत हर सप्ताह तीन या चार आलेख और कुछ ख़बरों के साथ जारी किये जात है। ‘सप्रेस’ समाचार-विचार सेवा है, जिसके माध्यम से समाज के हाशिए पर बैठे वंचितों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, किसानों आदि से जुडे पहलुओं पर फीचर्स  और समाचार प्रकाशित किए जाते हैं। मोटे-तौर पर जल, जंगल, जमीन, विस्थापन, पर्यावरण, गरीबी, श्रम, सामाजिक परिवर्तन, विकास, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, कृषि जैसे मुद्दों पर विषय विशेषज्ञों, वरिष्‍ठ लेखकों और मैदानी कार्यकर्ताओं द्वारा भेजी जाने वाली  सामग्री देशभर के हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के माध्‍यम से पाठकों तक पहुंचाने का काम ‘सप्रेस’ नियमित रूप से करता आ रहा है।  

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