राजेन्द्र जोशी /रेहमत मंसूरी

जनहित बताकर रची जाने वाली सरकारी योजनाएं असल में भ्रष्टाचार, लापरवाही और आम हितग्राहियों की बेशर्म अनदेखी के चलते आमतौर पर नकारा साबित होती हैं। हाल का उदाहरण घर-घर पानी पहुंचाने की खातिर बनाए गए ‘जल जीवन मिशन’ का है जिसमें अब तक सभी के पास पानी तो नहीं पहुंचा है, लेकिन पैसा खाने की खबरें आना शुरु हो गई हैं। कैसे चल रहा है, यह मिशन? बता रहे हैं, राजेन्द्र जोशी और रेहमत मंसूरी।

साल 2024 के अंत तक देश के हर घर में नल से जल पहुँचाने वाले केन्‍द्र सरकार के ‘जल जीवन मिशन’ का लक्ष्‍य समय सीमा में पूरा होना असंभव लग रहा है। अन्‍य परियोजनाओं की तरह इस अति महत्‍वाकांक्षी मिशन के पिछड़ने का कारण आर्थिक संकट या बजट आवंटन की कमी नहीं, बल्कि देश की सामाजिक, क्षेत्रीय और भौगोलिक विविधताओं को नजरअंदाज करने और जलप्रदाय के बजाय एक खास तरीके से जलप्रदाय को बढ़ावा देने के निर्णय का परिणाम है।

मध्‍यप्रदेश में इस वर्ष मार्च तक 27 हजार करोड़ रुपए इस मिशन पर खर्च हो चुके हैं, लेकिन अभी भी कागजों में प्रदेश के एक तिहाई से ज्‍यादा घरों तक पानी नहीं पहुँच पाया है। इस साल जबकि क्रियान्वयन युध्‍दस्‍तर पर होकर योजना का लक्ष्‍य प्राप्‍त कर लिया जाना चाहिए था, तब मध्‍यप्रदेश में इसकी प्रगति बहुत ही धीमी दिखाई दे रही है, यहाँ तक कि इस वर्ष अप्रैल से जून महीनों के बीच गर्मी के मौसम में भी योजना में ठहराव दिखाई दिया।

पेयजल से संबंधित सारी योजनाओं को ‘जल जीवन मिशन’ में शामिल कर लिया गया है। मध्‍यप्रदेश में इस मिशन की छोटी योजनाओं का निर्माण ‘लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी विभाग’ द्वारा जबकि कईं गांवों को एकसाथ जलप्रदाय करने वाली समूह जलप्रदाय योजनाओं का निर्माण ‘मध्यप्रदेश जल निगम’ द्वारा किया जा रहा है।

दो वर्ष पहले मध्‍यप्रदेश के बुरहानपुर और निवाड़ी जिलों को ‘हर घर नल से जल’ प्राप्‍त करने वाले जिले घोषित किया जा चुका है। इस उपलब्धि के लिए बुरहानपुर ज़िले को राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार भी मिल चुका है। लेकिन, मध्यप्रदेश में पेयजल उपलब्‍धता की जमीनी हकीकत में कोई बड़ा बदलाव दिखाई नहीं दे रहा है।

जिला मुख्‍यालय निवाड़ी के पास स्थित नया खेरा गांव में अप्रैल 2023 से हर घर जल आपूर्ति शुरु होना दिखाया गया है, लेकिन जल एवं स्‍वच्‍छता समिति से जुड़ी रजनी देवी ने 201 परिवारों वाले गाँव में नल-कनेक्‍शनों की संख्‍या 178 बताई। उनके मुताबिक गाँव के करीब 10 प्रतिशत घरों में अभी तक नल नहीं पहुंचे हैं। दमानिया खिरक जैसे जिन मोहल्‍लों में पेयजल पाईप लाईन क्षतिग्रस्‍त हो गई है उनके सुधार का भी कोई प्रयास नहीं हो रहा है।

इसी प्रकार निवाड़ी जिले के 570 परिवारों वाले गॉंव चुरारा के शंकरगढ़ मोहल्ला निवासी रामकुमार यादव, चंदन यादव, गिरण यादव, लखन यादव, मानसिंह यादव, थानसिंह यादव, मन्‍नू कुशवाह, सुपे कुशवाह, सुंदरलाल कुशवाह, हलवाई कुशवाह के घर अभी तक नल-कनेक्‍शन नहीं है। इसके विपरीत छोटेलाल कुशवाह के घर नल तो लगा है, लेकिन उसमें पानी नहीं आता।  

छतरपुर जिले के खिरवा गांव (तहसील – नौगांव) में दावा तो हर घर नल पहुँचाने का किया गया है, लेकिन 340 घरों वाले इस गाँव में पेयजल योजना करीब ढाई सालों से बंद पड़ी है। गांव के सक्षम परिवारों के पास अपने नलकूप हैं और आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवार सार्वजनिक हेंडपंपों से अपनी जरुरत पूरी करते हैं।

छतरपुर जिले की पुरापट्टी पंचायत (ब्‍लॉक- बड़ा मलहरा) पूर्ण कवरेज वाली पंचायत के सरपंच परमलाल आदिवासी ने बताया कि पंचायत में बगारा और बगीचन मोहल्‍ले के 30 – 40 घरों तक जलप्रदाय नहीं हो रहा है। पंचायत ने पूरे गांव में पाईप लाइन डालने की मांग की थी, लेकिन ठेकेदार ‘एलएंडटी कंपनी’ ने पंचायत की मांग नहीं मानी।

छतरपुर के सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह चौका ने बताया कि ‘जल जीवन मिशन’ का बुंदेलखंड में कोई खास प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा है। बड़े- बड़े दावों के बावजूद गर्मी के दिनों में ग्रामीण पेयजल के लिए हलाकान रहते हैं। ग्रामीणों की दिक्‍कत है कि पंचायत और ठेकेदार दोनों में से कोई भी जलप्रदाय की जिम्‍मेदारी लेने को तैयार नहीं है। 55 लीटर प्रति व्‍यक्ति प्रतिदिन का जलप्रदाय मानक किसान और पशुपालन आधारित ग्रामीण जीवन में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।

मध्‍यप्रदेश के धार और बड़वानी जिले के कई गाँवों में योजनाएं चार सालों से अधूरी पड़ी हैं, जबकि टेंडर की शर्तों के अनुसार इनका निर्माण छह माह में पूर्ण हो जाना था। मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनाव (नवंबर 2023) के पूर्व बड़वानी जिले के ग्राम टिटगारिया और बांदरकच्‍छ और रणगांव की अधूरी योजनाओं को ग्राम पंचायतों को विधिवत हस्तांतरित किए बिना ही इनसे जलप्रदाय प्रारंभ कर दिया गया है।

‘जल जीवन मिशन’ के अंतर्गत स्‍वीकृत योजनाओं की अप्रत्याशित रुप से बढी हुई लागत पर हमें छतरपुर, शहडोल, अनूपपुर (मध्यप्रदेश) और महोबा जिले (उत्तरप्रदेश) के कई जन प्रतिनिधियों ने हैरानी जताई। ग्राम विश्‍वनाथखेड़ा के उप सरपंच विजय नायक इन योजनाओं की अत्‍यधिक ऊंची लागत पर सवाल उठाते हुए उदाहरण देते हैं कि हमारी पंचायत के गांवों में ‘जल जीवन मिशन’ की योजनाएं उनकी वास्‍तविक लागत से कई गुना महंगी हैं। टिटगारिया गांव की जिस रेट्रोफि‍टिंग योजना की लागत 78 लाख रुपए है, वैसी ही योजना हमारी पंचायत आज 10 लाख में पूरी कर सकती है।

‘जल जीवन मिशन’ की असफलता की प्रमुख वजह यह है कि सरकार के लिए प्राथमिकता पानी नहीं, बल्कि योजना निर्माण है। इसीलिए पूरी पाईप लाईन बिछाने और ओवरहेड टंकी बनाने के बाद अंत में बोरवेल खनन कर पानी ढूँढा जाता है। टिटगारिया (बड़वानी) में खोदे गए 3 ट्यूबवेल में से संयोग से एक में पानी निकल आया, अन्‍यथा योजना केवल दिखावे की रह जाती।

धार जिले में ‘जल जीवन मिशन’ संबंधी योजनाओं के टेण्‍डर हासिल करने वाली गुजरात की कंपनी ‘मेसर्स जय खोडियार इंटरप्राइजेज’ को बड़े बेमन से काली-सूची में डाला गया। छह माह में पूरी की जाने वाली योजनाओं को कंपनी ने सालों से अधूरा छोड़ रखा था। काली सूची में डालने के पूर्व अधिकारी इस कंपनी को डेढ़ वर्षों तक पत्राचार के माध्‍यम से समझाइश और चेतावनी देते रहे। यह बात और है कि विभाग के पत्राचार और फोन से संपर्क का कंपनी ने कोई जवाब देना भी जरुरी नहीं समझा। हालांकि, जिन योजनाओं के निर्माण में अनियमितता के कारण कंपनी को काली-सूची में डाला गया, उन्‍हीं योजनाओं को पूरा करने हेतु फि‍र से पत्राचार भी शुरु कर दिया गया था।

‘मेसर्स जय खोडियार इंटरप्राइजेज’ ने ही बड़वानी जिले के 15 गाँवों में अमानक पाईप से लाईन डाल दी है। कंपनी द्वारा प्रस्‍तुत गुणवत्ता प्रमाण-पत्र के फर्जी होने का खुलासा होने में 4 साल लगना कई सवाल खड़े करता है। यदि कंपनी निर्धारित 6 माह में योजना का निर्माण पूरा कर देती तो यह फर्जीवाड़ा कभी पकड़ में आता ही नहीं। केन्‍द्र सरकार के इस अति महत्‍वकांक्षी मिशन में फर्जी रिपोर्ट के आधार पर ठेके प्राप्‍त करना, निर्धारित समय सीमा से चार-पांच गुना समय में भी परियोजना पूरी नहीं करना, गुणवत्ता-विहीन सामग्री का उपयोग करना और पकड़े जाने के बावजूद अधिकारियों द्वारा निजी फर्मों को सालों तक केवल चेतावनी देते रहना कई सवाल खड़े करता है। इसे साधारण लापरवाही नहीं माना जा सकता। ऐसी घटनाएं ठेकेदार फर्मों, निगरानी करने वाली एजेंसियों और अधिकारियों के बीच एक गठजोड़ की ओर इशारा करती हैं, जिसकी जांच जरुरी है। (सप्रेस)

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