सभी के लिए स्वास्थ्य आंदोलन’ द्वारा राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन

दिल्‍ली। 24 अगस्त। देश भर से 13 राज्यों के प्रतिनिधि, विभिन्न नेटवर्क और अन्य नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधि सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और एकजुटता जाहिर करने के लिए गांधी शांति प्रतिष्‍ठान, नईदिल्ली में इकट्ठे हुए। ये सभी प्रतिनिधि सभी के लिए स्वास्थ्य आंदोलन द्वारा राष्ट्रीय कन्वेंशन के आयोजन में शिरकत करने के लिए एकत्रित हुए थे। जम्मू कश्मीर से आए राही रियाज ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देशभर के अलग अलग हिस्सों से आए प्रतिनिधियों का स्वागत कर सम्मेलन की शुरुआत की।

सम्मेलन के आयोजन और उसकी भूमिका के बारे में बात रखते हुए अमूल्य निधि ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है और हमें वर्तमान में स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को रोकने के साथ ही जिला अस्पतालों को बचाने, मजदूरों के स्वास्थ्य के साथ तमाम वंचित वर्गों के स्वास्थ्य अधिकारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक संगठित और साझा प्रयास की अत्यंत आवश्यकता है।

सम्‍मेलन के प्रथम सत्र में स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण पर विचार रखते हुए प्रोफेसर इमराना कदीर ने कहा कि मौजूदा जन-विरोधी, कॉर्पोरेट संचालित स्वास्थ्य एजेंडा, लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के प्रति जरूरी संवेदनशीलता के अभाव और आर्थिक लूट-खसोट वाली नीति का परिचायक है, जिसका सबसे बुरा प्रभाव देश की करोड़ों दलित-वंचित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, विकलांग एवं आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों को झेलना पड़ रहा है। स्पष्ट है कि यह एक लोक कल्याणकारी राज्य द्वारा अपने दायित्वों और संवैधानिक जवाबदेही से पल्ला झाड़ने का प्रयास है। जन स्वास्थ्य के एजेंडे की इस निरंतर अनदेखी का भयावह परिणाम कोविड-19 महामारी के दौरान बड़े पैमाने पर दिखा, जब सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की कमजोरी, अक्षमता और चुनौतियों से कुशलतापूर्वक निबटने में कमी स्पष्ट रूप से सामने आई। सरकार द्वारा समय पर पर्याप्त सहायता मुहैया कराने में विफलता और ऐसे कठिन संकट के दौर में भी निजी क्षेत्र की महंगी और मुनाफा केंद्रित स्वास्थ्य सेवाओं के कारण कई लोग बिना इलाज के मर गए।

इस भयावह मंजर को याद दिलाते हुए वक्ताओं ने कहा कि अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट और मेडिकल इमरजेंसी के वक्त भी निजी क्षेत्र द्वारा अवांछित मुनाफे के लिए तत्कालीन हालात का फायदा उठाना निजी क्षेत्र की परोपकारी स्वास्थ्य नीति की कलई खोल देती है और सरकारी-निजी गठजोड़ (पीपीपी) को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों के स्वाभाविक परिणाम की तरफ इशारा करती है। सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर किया जा रहा 1.9% बजट खर्च कतई अपर्याप्त है।

स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के मुद्दे पर संजीव सिन्हा ने उत्तर प्रदेश में जिला अस्पतालों के निजीकरण की जनविरोधी प्रयास के बारे बात रखीं और कहा कि नीति आयोग ने राज्यों को जिला अस्पतालों के निजीकरण करने का निर्देश दिया है।

मध्‍यप्रदेश से आए एस आर आज़ाद ने मध्यप्रदेश में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए जिला अस्पतालों के निजी हितधारकों के देने के सरकार प्रयास को सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए घातक कदम बताया। कुलदीप चाँद ने पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं की जमीनी स्थिति अनुभव साझा किए।

वक्ताओं ने आगे कहा कि सरकार अब बीमा आधारित स्वास्थ्य मॉडल की ओर बढ़ रही है, जिसका लक्ष्य 2025 तक निजी बीमा कवरेज को 30% तक बढ़ाना है, जबकि राज्य द्वारा संचालित अस्पतालों को मजबूत करने की बजाय उन्हें बीमा-आधारित संस्थाओं में बदला जा रहा है, जैसा कि चेन्नई में देखा गया है।

स्‍वास्‍थ जानकार डॉ वंदना प्रसाद ने कहा कि स्वास्थ्य केंद्र का नाम आरोग्य मंदिर करना गलत है और स्वास्थ्य सामाजिक निर्धारकों में रोजी, रोटी, मकान, पर्यावरण के साथ साथ शांति, न्याय और डर भी आज महत्वपूर्ण मुद्दा है। जया वेलंकर ने महिला हिंसा और महिलाओं के विभिन्न मुद्दों को स्वास्थ्य के व्यापक मुद्दों के साथ जोड़कर कार्य करने की करने की जरूरत पर जोर दिया। 

स्वास्थ्य के अधिकार सत्र में बसंत हरयाणा और अनिल गोस्वामी ने राजस्थान के स्वास्थ्य अधिकार कानून, गोरंग महापात्रा ने स्वास्थ्य अधिकार कानून देश के हर राज्य में बनाकर लागू करने की बात रखी तथा महजबीन भट ने जम्मू कश्मीर में स्वास्थ्य की परिस्थितियों पर अपनी बात रखी। दिनेश एबरोल ने स्वास्थ्य, दवा नीति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उदाहरण देते हुए दवाओं के पेटेंट जेनेरिक दवाओं और सबके लिए गुणवत्तापूर्ण सस्ती दवाओं की वकालत की और कहा कि सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना सरकार कि ज़िम्मेदारी है।

मजदूरों के स्वास्थ्य अधिकार और सुरक्षा के मुद्दे पर जगदीश पटेल ने नीति, कानून और जमीनी स्तर पर मजदूरों के स्वास्थ्य के मुद्दे पर संघर्ष को मजबूत करने की बात कही। अमितावा गुह ने स्कीम वर्कर के सामाजिक सुरक्षा, वेतन, काम की परिस्थितियों पर कई उदाहरण दिये और आईएलओ  कन्वेन्शन लागू करने की बात कही। डॉ जी डी वर्मा ने सिलिकोसिस पीड़ितों के संदर्भ में मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के पीड़ितों की स्थिति पर विचार रखे।

सिलिकोसिस पीड़ित संघ के दिनेश रायसिंग ने सिलिकोसिस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और देश भर के लाखों मजदूरों के हक की बात कही।

प्रोफेसर रितु प्रिया ने कहा कि स्वास्थ्य व्यवस्था लोगों के प्रति जिम्मेदार और जवाबदेह होना चाहिए और समुदाय की भागीदारी से कार्य के मॉडल विकसित करने की बात कही।

इस सम्मेलन में 13 राज्यों के प्रतिनिधियों, विभिन्न साथी संस्थाओं, नेटवर्क संगठन के प्रतिनिधि और वंचित समुदाय के प्रतिनिधियों ने बातें रखी।

इस सम्मेलन के दौरान एक घोषणापत्र भी जारी किया गया। उपस्थित प्रतिनिधियों ने सम्मिलित रूप से तय किया कि प्रथम चरण में 10 राज्यों के 100 जिलों में स्वास्थ्य आंदोलन को मजबूत किया जाएगा।   

सम्मेलन में निम्नांकित प्रस्ताव पारित किए गए :-

1.        सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की जवाबदेही, मजबूती और संरक्षण सुनिश्चित की जाए।

2.        सार्वजनिक अस्पतालों और सेवाओं के निजीकरण या आउट सोर्सिंग पर रोक लगाई जाए।

3.        श्रमिकों की व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा और अन्य प्रासंगिक श्रम अधिकारों पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन सम्मेलनों में पारित प्रस्तावों का पालन हो।

4.        स्वास्थ्य देखभाल के सभी स्तरों के लिए “सभी के लिए स्वास्थ्य” का दृष्टिकोण अपनाया जाए।

5.        सभी क्षेत्रों की नीतियों में स्वास्थ्य संबंधी विचारों को एकीकृत करने के लिए संस्थागत व्यवस्था को सशक्त किया जाए।

6.        स्वास्थ्य नीतियों में हाशिए पर पड़े और वंचित समुदायों को प्राथमिकता दी जाए।

7.        पर्यावरण और आम लोगों की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति का केंद्र बनाया जाए। 

“सभी के लिए स्वास्थ्य आंदोलन” सामाजिक न्याय और सम्मान की एकीकृत मांग का प्रतिनिधित्व करता है। संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के मूल्यों को दृढ़ता से बनाए रखेंगे तथा समानता और गैर-भेदभाव पर आधारित समूह बनाने का प्रयास करेंगे। संघ और राज्य सरकारों, निजी स्वास्थ्य क्षेत्र और सभी हितधारकों से इस प्रस्ताव में उल्लिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग करने का आह्वान करते हैं।

“सभी के लिए स्वास्थ्य आंदोलन” की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति उक्‍त जानकारी अमूल्य निधि, अमिताव गुहा, संजीव सिन्हा, राही रियाज, सुश्री महजबीन भट्ट, चंद्रकांत यादव, एस आर आजाद, गौरंगों महापात्रा, निर्मल ने दी।