वाराणसी । स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही आचार्य विनोबा भावे की 129 वीं जयंती 11 सितंबर से सर्व सेवा संघ, राजघाट, वाराणसी परिसर के विध्वंस के विरुद्ध और पुनर्निर्माण के लिए 100 दिन का सत्याग्रह प्रारंभ हो रहा है, जो 19 दिसंबर 2024 तक चलेगा। इस कार्यक्रम में 100 जिलों के लोक सेवक और सहमना संगठनों के साथी भागीदारी कर रहे हैं।
यह सत्याग्रह गांधीवादी मूल्यों पर अहिंसा और शांति पर आधारित 100 दिनों तक जारी रहेगा। प्रतिदिन उड़ीसा, बंगाल, महाराष्ट्र, केरल कर्नाटक हरियाणा, बिहार, उत्तराखंड आदि अलग-अलग राज्यों और जिलों से सर्वोदय कार्यकर्ता आएंगे एवं शांतिपूर्ण सत्याग्रह करेंगे।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने पिछले साल 12 अगस्त 2023 को बिना किसी न्यायिक आदेश के अवैधानिक तरीके से स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों द्वारा निर्मित सर्व सेवा संघ के ऐतिहासिक इमारत को ध्वस्त कर दिया था। साधना केंद्र का निर्माण विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण ने करवाया था।
सत्याग्रह की शुरुआत के प्रथम दिन सर्व सेवा संघ के पांच सत्याग्रही- चंदन पाल, वरिष्ठ गांधीवादी श्रीमती कृष्णा मोहंती, रविंद्र सिंह चौहान, उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष रामधीरज एवं सर्व सेवा संघ के मंत्री अरविंद कुशवाह उपवास पर बैठेंगे।
उड़ीसा के मुख्यमंत्री एवं सर्व सेवा संघ के पूर्व अध्यक्ष नब कृष्ण चौधरी एवं सर्वोदय नेत्री मालती चौधरी की सुपुत्री 86 वर्षीया सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती कृष्णा मोहंती का पूरा जीवन गांधीवादी मूल्यों के प्रति समर्पित रहा है। वे गांधीजी के आश्रम सेवाग्राम में रही है और बचपन में ही अपनी मां के साथ जेल में बिताया है। सर्व सेवा संघ, राजघाट परिसर में भी कई वर्षों तक उनका निवास रहा है। आचार्य विनोबा भावे द्वारा प्रारंभ भूदान आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आदिवासी समुदाय में साक्षरता के प्रचार प्रसार के लिए उन्हें भारत सरकार के द्वारा सम्मानित भी किया गया है। उन्हें गांधी पुरस्कार से भी नवाजा गया है।
आचार्य विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के प्रेरणा और प्रयास से 60 के दशक में चंबल के 650 बागियों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। रायबरेली, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले 85 वर्षीय रविंद्र सिंह चौहान इस अभियान में अत्यंत सक्रियता के साथ शामिल थे। विनोवा जी से प्रभावित होकर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और भूदान आंदोलन के हिस्सेदार बन गए।
पश्चिम बंगाल के 75 वर्षीय चंदन पाल पिछले 6 दशकों से सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे हैं। 1964 में शांति सेना के साथ उनका सामाजिक जीवन का प्रारंभ हुआ और बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के समय शरणार्थी शिविरों में उन्होंने अपनी सेवा दी। सुनामी के समय अंडमान निकोबार में और सुपर साइक्लोन के वक्त उड़ीसा के राहत कार्य में अपना विशिष्ट योगदान दिया। असम के कोकडाझाड़ में सांप्रदायिक तनाव को दूर कर सद्भाव और शांति स्थापित करने में भी सफलता पाई। वे वहां 5 वर्ष तक रहे। उनके कार्य को देखते हुए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
आपातकाल के विरुद्ध लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले रामधीरज 19 महीने तक मीसा के अंतर्गत जेल में रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए 1974 के जेपी आंदोलन से प्रभावित होकर सामाजिक जीवन में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में शामिल हो गए और आज तक समाज की नव रचना में अपना योगदान दे रहे हैं। 1990 में बहुराष्ट्रीय कंपनियों और डंकल प्रस्ताव के खिलाफ देशभर में आंदोलन चलाया। वे किसानों के संघर्ष में भी लगातार जुड़े रहे और 2012 में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भी अपना योगदान दिया। राम धीरज गांधी विचार के प्रचार प्रसार के लिए गठित सर्व सेवा संघ प्रकाशन के संयोजक रहे और फिलहाल उत्तर प्रदेश सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष हैं।
उत्तर प्रदेश कानपुर के रहने वाले अरविंद सिंह कुशवाह गांधीवादी परिवार से हैं। बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के प्रचार- प्रसार और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। वे फिलहाल सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय मंत्री के रूप में सर्वोदय आंदोलन को सक्रिय करने में लगे हुए हैं।