भरपूर उत्पादन और तीखी भुखमरी के बीच की उलटबासी के मैदानी अनुभवों की एक बडी वजह हर साल होती अनाज की बर्बादी और उसके लिए जरूरी भंडारण का अभाव है। अनाज की बर्बादी हमारे यहां सालाना होने वाली एक शर्मनाक दुर्घटना है, लेकिन इसी वजह से 2001 में सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई खाद्य-सुरक्षा याचिका के बावजूद ना तो सरकारें भंडारण को लेकर सचेत हुई हैं और न ही समाज और निजी-क्षेत्र।
देश भर में इस साल तीन करोड़ 36 लाख हैक्टेयर जमीन पर गेहूँ की बुआई हुई थी और मध्यप्रदेश में 55 लाख हैक्टेयर से अधिक भूमि पर। गेहूं उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और पंजाब को भी पीछे छोड़ दिया है। इस साल 4529 खरीदी केन्द्रों के माध्यम से एक करोड़ 29 लाख 34 हजार 588 मेट्रिक टन गेहूं खरीदी किया गया है। सरकार का दावा है कि 15 लाख 93 हज़ार 793 किसानों के खाते में 24 हजार 899 करोड रुपए जमा भी कर दिए हैं, परन्तु जुलाई में ही समाचार आया कि 450 करोड़ का 2.25 लाख टन गेहूं खरीदी केंद्रों और गोदामों के बाहर रखे-रखे भीग गया है। गेहूं भीगने को लेकर खरीद करने वाली सहकारी समितियां और गोदाम संचालक आमने- सामने आ गए हैं। दोनों संस्थाएं इसकी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर थोप रहे हैं।
ये पूरी समस्या परिवहन में देरी के चलते उपजी है। सवा दो लाख टन से ज्यादा गेहूं गोदामों में भंडारण के लिए स्वीकार नहीं किया गया है। इसकी मुख्य वजह खराब गुणवत्ता और गेहूं में अनुपात से कई गुना अधिक नमी बताई गई है। खरीदा गया गेहूं गोदामों में स्वीकृत नहीं होने से अभी 400 करोड़ से अधिक की राशि किसानों के खाते में ट्रांसफर नहीं की गई है। जब तक गोदामों में पूरा गेहूं स्वीकृत नहीं होता, तब तक किसानों का भुगतान होना मुश्किल है। अब इसके लिए जिम्मेदार कौन है? एक खबर इंदौर से है कि 85 लाख टन गेहूं उत्पादन की तुलना में भंडारण क्षमता लगभग 22 लाख टन ही है। इस कारण 25 करोड़ से ज्यादा कीमत का गेहूं जून की बरसात में भीगकर खराब हो गया है। इसके बाद भी ‘ओपन कैंप’ में रखा छह करोड़ रूपये से ज्यादा का लगभग 65 हजार टन गेहूं और खराब हुआ है। किसानों के लिये तो यह साल जैसे काल बन कर आया है। कोरोना ने उन्हें फसल को खेत से निकाल कर मंडी तक ले जाने में काफी परेशान किया है।
‘नियंत्रक महालेखा परीक्षक’ (सीएजी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नियोजन नहीं होने के कारण 2011-12 से 2014 -15 के बीच 5060.63 मेट्रिक टन अनाज सड गया है जिसमें 4557 मेट्रिक टन गेहूं था। एक समाचार पत्र के अनुसार 21 मार्च 2017 को ‘केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ ने संसद में दिये जबाब में बताया है कि मध्यप्रदेश के सरकारी गोदामों में 2013-14 और 2014-15 में करीब 157 लाख टन सड गया है जिसकी अनुमानित कीमत 3 हजार 800 करोड़ रुपए है। इसमें 103 लाख टन चावल और 54 लाख टन गेहूं शामिल है। बताया जाता है कि मिली-भगत के चलते अनाज को जान-बूझकर सडने दिया जाता है ताकि शराब कंपनियां बीयर व अन्य मादक पेय बनाने के लिए सडे हुए अनाज, खासकर गेहूँ को औने-पौने दाम पर खरीद सके। भारत में जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन होता है। इसके बावजूद लाखों लोगों को दो वक्त का भोजन नहीं मिल पाता। आए दिन ‘भूख से मौत’ के समाचार भी सुनने मिलते हैं। इसके विपरीत भारत में लगभग 60 हजार करोड़ रूपये का खाद्यान्न प्रति वर्ष बर्बाद हो जाता है, जो कुल खाद्यान्न उत्पादन का सात प्रतिशत है। इसका मुख्य कारण देश में अनाज, फल व सब्जियों के भंडारण की सुविधाओं का घोर अभाव है। दूसरी तरफ, ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यूएनओ) की ‘भूख सबंधी सलाना रिपोर्ट’ कहती है कि दुनिया में सबसे ज्यादा भुखमरी के शिकार भारतीय हैं। ‘यूएनओ’ के ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (एफएओ) की रिपोर्ट “द स्टेट आफ फूड इनसिक्यूरिटी इन द वर्ल्ड-2015” के मुताबिक ‘यह विचारणीय और चिंतनीय है कि खाद्यान्न उत्पादन में आत्म-निर्भर होकर भी भारत में भूख से जूझ रहे लोगों की संख्या चीन से ज्यादा है।’ वजह हर स्तर पर होने वाली अन्न की बर्बादी है। इसका बङा खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना पडेगा। सवाल है कि अगले 35 वर्षों में, जब हमारी आबादी 200 करोड़ होगी, तब हम सबको अन्न कैसे उपलब्ध करा पाएंगे? ‘कृषि मंत्रालय’ का कहना है कि पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि की तुलना में देश में अन्न की मांग कम बढी है। यह मांग उत्पादन से कम है। यानी भारत अब अन्न की कमी से उठकर ‘सरप्लस’ (अतिरिक्त) अन्न वाला देश बन गया है। देश में इस समय विश्व के कुल खाद्यान्न का करीब पंद्रह फीसद खपत होता है, लेकिन आज भी हमारे देश में अनाज का प्रति व्यक्ति वितरण बहुत कम है। यह विडम्बना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेती है ! http://www.spsmedia.in (सप्रेस)