मालवा निमाड़ के खेतों में पैदा होने वाली सरसों के साथ बैंगन, सोयाबीन आदि जैसी फसलों और साग-भाजी के साथ फल आपकी थाली में परोसे जाएं और इनके शाकाहारी या मांसाहार होने का भेद नहीं कर पाए तो क्या होगा? ऐसे प्रकृति प्रदत्त पूर्ण रूपेण स्वस्थ एवं पौष्टिक तत्वों से भरपूर शाकाहारी खाद्य पदार्थ के तत्वों में स्थाई रूप से मांसाहार हो तो आप क्या करेंगे? इसी तरह की नई फसलों को मंजूरी देने के लिए केंद्र सरकार ने कमर कसी है।
जीएम फसलों का मुद्दा फिर गरमाया
आने वाले दिनों में हो सकता है शुद्ध शाकाहार भोजन के तत्वों में मांसाहार स्थाई रूप से अपनी जगह बना ले। अनुवांशिक रूप से शुद्ध शाकाहार फसलों में जीवित जीवों के जीन यानी अनुवांशिक तत्व स्थाई रूप से डाल कर जो नई किस्म की फसल पैदा होगी उसे अनुवांशिक रूप से संशोधित या परिवर्तित जेनेटिकली मोडिफाइड जीएम फसल कहते हैं।। ऐसी फैसले जल्द ही आपकी भोजन की थाली में परोसने की तैयारी केंद्र सरकार कर रही है। केंद्र सरकार के मेन्यू में जी एम फसलें आ चुकी है। और कुछ समय बाद सरकार इन्हें मंजूरी देने की तैयारी में नजर आ रही है। सरसों किम को मंजूरी देने की तैयारी पहले से हो चुकी थी, मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था। कोर्ट ने अपने खंडित फैसला में सरकार को अनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों के लिए नीति वगैरा बनाने के लिए कहा है। बाद में खंडित फैसला वरना सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया और नहीं किसी और ने।
मालवा निमाड़ के खेतों में पैदा होने वाली सरसों के साथ बैंगन सोयाबीन आदि जैसी फसलों और साग भाजी के साथ फल आपकी थाली में परोसे जाएं और इनके शाकाहारी या मांसाहार होने का भेद नहीं कर पाए तो क्या होगा। ऐसे प्रकृति प्रदत्त पूर्ण रूपेण स्वस्थ एवं पौष्टिक तत्वों से भरपूर शाकाहारी खाद्य पदार्थ के तत्वों में स्थाई रूप से मांसाहार हो तो आप क्या करेंगे? निश्चित तौर पर ना तो शाकाहारियों की भावनाएं आहत होगी न ही भावना मैं उबाल आएगा ? जैसा तिरुपति बालाजी के प्रसाद में कथित मिलावट से कुछ दिनों के लिए राजनीतिक और धार्मिक शोर शराबा हुआ था।
देश के कई राज्यों में बीटी कॉटन या कपास पैदा किया जा रहा है। देसी किस्म के कपास में बैक्टीरिया का चिन्ह अनुवांशिक तत्व डाला गया हैं। यानी इसके जीन में जीव जंतु के तत्व आ गए हैं। ऐसा ही अन्य फसलों में भी हो सकता है। बीटी कपास की इस किस्म के बीज अमेरिका की मोनसेंटो कंपनी ने भारत में अपने एकाधिकार के साथ मन माने दाम पर बेचे। देसी बीज से पैदा होने वाली किस्म को इस बीटी किस्म ने खेतों से हटा दिया जबकि इस किस्म का बीज हर सीजन में हर बार खरीदना पड़ता है। देसी किस्म में ऐसा नहीं था। बैक्टीरिया का जीन कपास पर होने वाले कीट प्रकोप वॉल वर्म को रोकने के लिए था, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और यह किस्मत किसानों के लिए बेहद खाते का सौदा साबित हो रही है।
इसी तरह की नई फसलों को मंजूरी देने के लिए केंद्र सरकार ने कमर कसी है। इसका विरोध देश विदेश के अनेक गैर शासकीय संगठन, कृषि विशेषज्ञ के जानकार साथ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारतीय किसान संघ लंबे समय से कर रहे हैं।
किसान सम्मान ने जीएम फसलों के खिलाफ देशभर में जन जागरण के साथ राष्ट्रीय जागने के लिए एक अभियान शुरू किया है, इसके अंतर्गत देश के हर सांसद से किसान संघ पत्र के माध्यम से जीएम फसलों के बारे में वस्तु स्थिति स्पष्ट करेगा। सांसदों को पत्र देकर इसे लोकसभा और राज्यसभा में पेश करने के लिए कहां जायेगा।
जैसा कि सुना है, इस समय भी केंद्र सरकार और भाजपा में कोई भी सांसद द्वारा सरकार से संबंधित ऐसे मामलों में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं कर सकता। सरकार पर दबाव बनाने के लिए सांसद सहित अन्य कृषि संगठन और पर्यावरण समूह अपने-अपने स्तर पर अभियान चला रहे हैं। किसान संघ का कहना है कि जीएम फसलों के खिलाफ उसकी लड़ाई जारी रहेगी। उल्लेखनीय है कि 23 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जीएम फसलों के लिए नीति तय करने पर देश विदेश के विशेषज्ञों से सलाह कर मसौदा तैयार करने के लिए कहा था। यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इसमें बताते हैं कि विदेशी विशेषज्ञों का प्रभुत्व है।
संसद का आगामी शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से शुरू होगा, इस सत्र में जीएम फसलों के विषय को रखा जाए यह कोशिश होगी। इस बारे में कृषि विशेषज्ञ और लेखक देवेंदर शर्मा ने अपने आलेख के माध्यम से इस बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की।
शर्मा के अनुसार भारत में, बीटी कपास खेती के लिए स्वीकृत एकमात्र जीएम फसल है, जबकि चना, अरहर, मक्का और गन्ना जैसी कई अन्य फसलें अनुसंधान और क्षेत्र परीक्षण के विभिन्न चरणों में हैं।
सरकार ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों पर अपनी लंबे समय से विलंबित नीति का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसके लिए कृषि और जलवायु वैज्ञानिकों की एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई है, इस जानकारी से अवगत कृषि जानाकारों ने बताया।
कहा जा रहा हैं कृषि मंत्रालय इस काम के लिए पैनल का गठन करेगा जिसमें विदेश के विशेषज्ञ शामिल किए जाएंगे। अन्य देशों से जीएम फसलों के बारे में जानकारी ली जाएगी और जीएम फसलों पर काम करने वाले अन्य देशों के कृषि और जलवायु वैज्ञानिकों को मंत्रालय की पैनल में शामिल करेगा।
सूत्रों के अनुसार कृषि मंत्रालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालयों और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के परामर्श से कृषि वैज्ञानिकों का एक पैनल गठित किया है, जो अन्य देशों में किए गए जीएम फसल अनुसंधान का भी मूल्यांकन करेगा और अगले कुछ महीनों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
समिति के सदस्यों के नाम अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं नहीं इसकी जानकारी किसी को दी जा रही है। जानने के लिए पूछे गए प्रश्नों का उत्तर भी नहीं दिया गया। ऐसा क्यों है यह चिंता का विषय है। कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालयों को भेजे गए प्रश्नों का उत्तर शर्मा को कुछ समय पहले तक नहीं मिला था।
बताते हैं समिति के सदस्य चावल, कपास और पौध संरक्षण में विशेषज्ञता रखने वाले वैज्ञानिक हैं। 25 अक्टूबर 2022 को सरकार ने आयातित सरसों के तेल पर निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से स्वदेशी रूप से विकसित जीएम सरसों के पर्यावरणीय विमोचन को मंजूरी दी, जो देश के खाद्य तेल की खपत का लगभग 60% हिस्सा है। यह मंजूरी जीएम फसलों के लिए शीर्ष पर्यावरण प्राधिकरण जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) द्वारा 18 अक्टूबर 2022 को जीएम सरसों के विमोचन के लिए सशर्त मंजूरी दिए जाने के एक सप्ताह बाद आई। हालांकि, नवंबर 2023 में जीएम सरसों के विमोचन के लिए सरकारी परीक्षण को रोक दिया गया था, क्योंकि जीएम फसल विरोधी कार्यकर्ताओं ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।
दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह, भारत में भी जीएम फसलें एक विवादास्पद मुद्दा बनी हुई हैं, जो मुख्य रूप से कृषि प्रधान देश है। जीएम फसलें मानव और पशु स्वास्थ्य पर उनके कथित प्रभाव और गैर-जीएम फसलों को दूषित करने की उनकी क्षमता के लिए विवादास्पद बनी हुई हैं।