निमाड़ में कपास खरीदी की हकीकत को उजागर करती एक रिपोर्ट

संतोष पाटीदार

उत्तर भारत के आंदोलनरत किसान कड़ाके की ठंड की परवाह किए बिना दिल्ली में ठीक उसी तरह मुस्तेद है, जैसे घुप्प अंधेरे की कडकड़ाती ठंड भरी रातों में सिंचाई की बिजली मिलने पर किसान खेतों में पानी फेरने या खेत सिंचित करने के लिए जी जान से मोर्चा लेते है । (दशकों से सरकारें किसानों से इसी तरह सरकारी हिसाब चुकता करती हैं।) विकट हालातों में खेती करने के बाद किसान को फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिलता ।

किसान आंदोलन के माध्यम से केन्द्र सरकार से खेती- बाड़ी के फायदे की खातिर  फसलों का पूरा समर्थन मूल्य चाहते है। इस आंदोलन में नए कृषि कानून को खत्म करने की भी मांगें हैं। हाल ही में लागू नए किसानी कानूनों के बाद सरकार की ओर से फसल का अधिकतम दाम दिलाने की जो कोशिश होनी चाहिए थी, वह नहीं की गई ।

कपास के कम दाम मिलने पर  आक्रोश

नए कानून जोर – शोर व बड़े फायदेमंद बदलाव के वादों की गूंज के बीच लागू किये जा रहे थे, ठीक उसी समय मुख्य नगदी फसल धान, कपास और सोयाबीन आदि खेत से खलिहान व वहाँ से मंडी बाज़ार की पारम्परिक यात्रा के लिए तैयार हो रही थी। ऐसे समय केंद्र को मुस्तैद रहना था पर सरकार ने गम्भीरता नहीं समझी इसलिए केन्द्र की हालिया नीति, कानून ,नियम और भरपूर दाम दिलाने की वचनबद्धता वगैरह के बाद  जब केंद्र सरकार खुद कपास की खरीदारी करने मण्डियों में आई तो सरकारी बोली सुनकर किसान ठगे रह गए। यानी केंद्र के नेतृत्व की नीतियों की अनुपालना उनकी नौकरशाही बिलकुल उलट तरीके से कैसे करती है यह निमाड़ सहित देशभर में जहाँ कपास की सरकारी खरीदी हो रही है वहाँ मण्डियों में देखी परखी जा सकती है । किसान हितैषी नए कृषि कानून की हकीकत कपास की खरीदी उजागर कर रही है। इसकी पूरी जानकारी मप्र के मुख्यमंत्री व केंद्र के मंत्रीगण को दी गई थी। लगे हाथों केंद्र सरकार को अपने नए कानून का परीक्षण निमाड़ की कपास मण्डियों में करना था क्योंकि किसानों द्वारा बीते करीब एक माह से कपास के कम दाम मिलने पर  लगातार आक्रोश जताया जा रहा है ।

केंद्र के नये कृषि कानून आने के बाद भी देशभर के किसानों हताश/ निराशा में कमी नहीं आई है ये इसी  से समझा जा सकता है। महामारी व मौसम की मार से जूझते किसानों को केन्द्र सरकार की सालाना घोषणा से  पूरा समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। सबसे ज्यादा  नुकसान कपास के भाव से हो रहा है। सरकारी खरीदी में ही समर्थन मूल्य नहीं  मिलने से किसानों में गुस्सा है। सोयाबीन तो बुरी तरह बर्बाद हुई । सरकार की दोहरी नीतियों ने तकलीफ़ और बढ़ा ! किसान की जेब में फसल का उचित दाम नहीं आने का मतलब ग्रामीण व शहरी बाज़ार की अर्थव्यवस्था कमजोर होना है।
फायदा निजी कम्पनियों, व्यापारियों और बिचौलियों को

यह जानते हुए भी केंद्रीय सरकारी एजेंसी भारतीय कपास निगम (सीसीआई ,कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया) द्वारा कपास का सरकारी भाव यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य 5800 रुपए प्रति क्विंटल नहीं दिया जा रहा है। जबकि देशभर में यह एकमात्र  एजेंसी ही कपास की सरकारी खरीदी के लिए अधिकृत है। किसान कहते है, समर्थन मूल्य तो दूर की बात है, सीसीआई वाजिब दाम देने को भी राजी नहीं है। इसका भरपूर फायदा निजी कम्पनियों व व्यापारियों और बिचौलियों को मिल रहा है जबकि किसानों को उपज का अधिकतम दाम दिलाने की मन्शा से खेती की पहरेदारी में नए तीन कानून हाल ही में केंद्र ने तैनात किये है। सरकारी खरीद की मनमानी से त्रस्त किसानों ने  औने-पौने दाम पर कपास व्यापारियों व जिंनिंग फैक्ट्रियों को बेच दिया। छोटे किसानों को तो बारिश से प्रभावित शुरुआती कपास 2 हजार रु क्विंटल में बेच देना पड़ा क्योंकि उन्हें कर्ज चुकाने व जीविकोपार्जन के लिए तत्काल पैसे चाहिए थे। उस समय तक सीसीआई भी खरीदी शुरू नहीं करता। कहा जाता है अधिकांश किसान मजबूर होकर जब व्यापारियों को कपास बेच देते है तब सीसीआई मंडी में खरीदी शुरू करने आता है। इस पर, खरीदी में जमाने भर के नखरे तयशुदा होते है यानी किसानों को पूरा समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिले, इसकी सरकारी शर्तें पहले से तय या नक्खी होती है। जैसे कपास में नमी 12 प्रतिशत से थोड़ी भी अधिक नहीं होना चाहिए। रेशे की निर्धारित लम्बाई उच्च मानक अनुसार होनी चाहिए। कपास थोड़ा भी पीले रंग या मौसम से प्रभावित नहीं होना चाहिये। मतलब आदर्श गुणवत्ता का कपास होने पर ही सरकारी समर्थन मूल्य के करीब दाम मिलेगा। यानि न 9 मन तेल न राधा का नाच …..की कहावत चरितार्थ होती है।

सीसीआई का खेल

इसके उलट एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम ) हर गुणवत्ता का गेंहू पूर्ण समर्थन मूल्य पर ख़रीदता है। गन्ने का सरकारी भाव भी निजी शक्कर कारखाने देने को बाध्य है। पर सीसीआई का खेल किसानों के हित में कभी नहीं रहा इसके पीछे बड़ा भ्रष्टाचार होने की आशंका  व्यक्त की जाती रही है।
सीसीआई द्वारा खरीदी शुरू करते ही धार जिला की मुख्य कपास मंडी धामनोद में कपास बेचने आए किसानों ने भाव नहीं मिलने पर हंगामा किया व मंडी गेट पर सीसीआई का विरोध करते ताले जड़ दिए। जैसा वहाँ किसानों की अगुआई कर रहे समीप ग्राम सुन्दरेल के युवा किसान राजेंद्र पाटीदार ने कहा कि सीसीआई 5800 रु प्रति क्विंटल की जगह 4000 रु से कम में  कपास खरीदी करना चाहती है। इससे कहीं ज़्यादा पैसा फसल पकाने पर लगा है । इसके पीछे कपास  की अधिक नमी व  गुणवत्ता कमजोर होने का हवाला दिया जता है। सीसीआई के नुमाइंदे कपास की नमी किस तरह ,कैसे व किस यन्त्र से  नापते है ,वह यन्त्र नमी का कितना सही आंकलन करता है,  उसके बारे में भी मंडी का अमला व  किसान कुछ नहीं जानते। क्योंकि क्रॉस चैकिंग का कोई साधन नहीं है।

अक्सर बेहतर कपास का  भी  क़्वालिटी के नाम पर बहुत कम मूल्य बताया जाता है या सरकारी खरीद नहीं कर कपास रिजेक्ट कर दिया जाता है। वही मौजूद व्यापारीगण सस्ते में वह कपास खरीद लेते है। ऐसा प्रतीत होता है ओर जैसी आशंका किसान व्यक्त करते है कि सीसीआई ,व्यापारियों और कपास माफिया के बीच मजबूत जोड- तोड़  बनी हुई है। जाहिर है कपास खरीद की नीति केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय के अफसरों द्वारा जमीनी हकीकत से दूर ठंडे बन्द कमरों में तय कर दी जाती है। 

सीसीआई की किसानों के लिए कठोर नियमों की लक्ष्मण रेखा

महेश्वर के समीप करौंदिया के किसान व भाजपा नेता किशोर पाटीदार कहते है सीसीआई जानबूझकर व्यापारी वर्ग को मनमाने दाम पर किसानों से कपास खरीदने की पूरी छूट देता है क्योंकि जब अधिकतर किसान कपास बेच चुके होते है तब सीसीआई किसानों के लिए कठोर नियमों की लक्ष्मण रेखा खींचते हुए मंडियों में आता है । यहाँ वह अपने साथ निजी कम्पनियों व व्यापारियों को भी साथ लेकर बोली लगाता है जो सरासर नियम विरुद्ध है। 

जानकार बताते है सरकार पहले किसानों को लुभाने , कपास का  समर्थन मूल्य घोषित करती है इससे अच्छे दाम मिलने की उम्मीद का भ्रम पैदा हो जाता है पर सीसीआई इस भ्रम को तोड़ देती है व सरकारी मंशा सामने आ जाती है। किशोर भाई कहते है कपास का समर्थन मूल्य व्यापारियों पर लागू नहीं होने से इन्हें  बहुत कम भाव पर कपास बेचने की मजबूरी होती है। इस पर सरकारी एजेंसी व निजी खरीद वालों की मिलीभगत किसानों को कही का नहीं छोड़ती।

सीसीआई फसल आने की शुरुआत की बजाए फसल आ जाने के करीब 2 माह बाद मंडी में आता है ।यही वजह है कि 6 हजार रु क्विंटल का अच्छा कपास भी 4 हजार रु में बेचना पड़ा है क्योंकि फसल को पैदा करने में बड़ा खर्चा आता है जो हर वर्ष हर सीजन में कर्ज से लिया जाता है । इसलिए किसानों को तत्काल नगद पैसे की जरुरत होती है । भण्डारण की भी समस्या होती है। भण्डारण पर 10 से 20 क्विंटल कपास का सुखत से वजन  कम हो जाता है यानी करीब 1 लाख रु का नुकसान।

भाजपा से जुडे किसान ही आंदोलन की राह पर

खरगोन के लोकसभा सांसद गजेन्द्र सिंह पटेल व बड़वानी के राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह को समस्या बताई व तत्काल राहत की मांग किसानों ने की थी। उन्हें मंडी मे बुलाया था किसानों ने लेकिन लगता है  व्यापारी वर्ग के दबाव प्रभाव में वे नही आए जबकि आने का वादा किया था । फिर भी   वे मंडी में किसानों की समस्या जानने नहीं आये । जबकि संघ व भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने उन्हें बुलाया था। निमाड़ में  संघ के व भाजपा के किसान ही आंदोलन की राह पर है । इन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी डी शर्मा के समक्ष मांग रखी है।  पंजाब सरकार की तरह हर फसल का पूरा समर्थन मूल्य किसानों को मिले ऐसा मध्यप्रदेश में भी सुनिश्चित करने की मांग निमाड़ के किसान कर रहे है। पर कोई ध्यान सरकार ने नहीं दिया।

ऐसे में कुल जमा सरकारें ही किसानों को आंदोलन के लिए मजूबर करती है।   

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