
आउटर रिंग रोड के भूमि अधिग्रहण के विरोध में 15 माह चले आंदोलन के बाद किसानों को बड़ी जीत मिली। बढ़ी हुई गाइडलाइन के आधार पर अब उन्हें दो गुना मुआवज़ा मिलेगा। यह संघर्ष सिर्फ मुआवज़े की राशि नहीं, बल्कि कृषि भूमि और किसान की गरिमा की रक्षा का प्रतीक बना। सरकार की वर्षों पुरानी मुआवज़ा नीति पर सवाल उठाते हुए भारतीय किसान संघ ने एक ऐतिहासिक मोर्चा फतह किया।
प्रदेश में लंबे समय बाद किसानों की यह बड़ी जीत है। पुरानी और नई गाइडलाइन के बीच धनु राशि का यह अंतर भूमि अधिग्रहण की स्थिति में किसानों के लिए लाखों रुपए का होता। अब इस नुकसान की भरपाई किसानों के कहे अनुसार सरकार आर्बिट्रेशन के द्वारा करने की कोशिश करेगी। निश्चित तौर पर आंदोलन के कारण गाइडलाइन बड़ी और किसान एक भारी भरकम सरकारी महाठगी से बचे। भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में हुए आंदोलन ने गाइडलाइन के माध्यम से मुआवजे में की जाने वाली धोखाधड़ी को उजागर किया था और गाइडलाइन बढ़ाने की मांग की थी। सरकार को यह मांग माननीय पड़ी। इससे किसान बहुत बड़े नुकसान से बच गए जो सरकार की नीतियों के कारण हो रहा है। जैसा कि कृष्ण पाल सिंह कहते हैं यह आंदोलन की ऐतिहासिक जीत है।
किसानो की सामूहिक शक्ति की एक और विजय है, 15 महीने के लंबे संघर्ष के बाद पूर्वी व पश्चिमी रिंग रोड में नोटिफिकेशन जारी होने के बाद बड़ी हुई गाइडलाइन का लाभ किसानों को मिलने जा रहा है रेसीडेंसी कोठी पर किसान व किसान संघ के प्रतिनिधियों तथा जिलाधीश व NHAI प्रतिनिधियों के बीच बढ़ी हुई गाइडलाइन का दोगुना मुआवजा दिए जाने पर सैद्धांतिक सहमति बनी । यह किसानों और भारतीय किसान संघ के कार्यकर्ताओं के संघर्ष की जीत है। ऐसा आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है कि 15 सालों के बाद बढ़ी हुई गाइडलाइन से किसानों को मुआवजा दिया गया हो और गाइडलाइन भी 250 से 300 प्रतिशत तक बढ़ाई गई है यह भी अपने आप में ऐतिहासिक है।
प्रांत संगठन मंत्री अतुल माहेश्वरी, रमेश दांगी व लक्ष्मीनारायण पटेल भाई के मार्गदर्शन में यह ऐतिहासिक जीत हुई है.। प्रदेश के संगठन महामंत्री महेश चौधरी के साथ राष्ट्रीय महासचिव और राष्ट्रीय अध्यक्ष के मार्गदर्शन में किसान सम्मान में सकारात्मक और नीतिगत पहल की।
इस संघर्ष से मिले प्रतिफल से उत्साहित किसान केंद्रीय कानून अनुसार चार गुना मुआवजा लेने के लिए संघर्ष को और मजबूत करेंगे। जैसा किसान नेता अनिल व्यास और रमेश डांगी बताते हैं कि गाइडलाइन बढ़ाने के बाद अब प्रदेश सरकार के मुआवजा देने के फार्मूले को बदलने के लिए सरकार से लगातार मांग की जाएगी। सरकार द्वारा निर्धारित गुणांक एक यानी दो गुणा का मुआवजा भी महाठगी से कम नहीं है। किसान संघ ने केंद्र सरकार की तरह कानून रूप से दो गुणांक यानी चार गुना मुआवजे की अपनी पुरानी मांग मजबूती से रखी थी। हाल फिलहाल सरकार ने इसे नहीं माना लेकिन इस मांग को लेकर किसानों की लड़ाई आगे भी जारी रहेगी। इस मांग को लेकर किसानों की एक महापंचायत भी हो रही है इसका आयोजन किसान संघर्ष समिति ने किया है। इसके अलावा भी मालवा मे खेती की भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जगह-जगह किसानों के आंदोलन हो रहे हैं।
सरकार के एजेंडे में खेती किसानी शायद दोयम दर्जे की है लेकिन इसी जमीन को हथियाने के बाद में नामी कम और बेनामी ज्यादा की खरीदी बिक्री से करोड़ों रुपए कमाने का एजेंडा शायद सत्ता के लिए सर्वोपरि है। जानकार कहते हैं शायद यही वजह है कि हर कालखंड में उम्मीद से बैठाई जाने वाली सभी सरकारें काली पूंजी के बड़े निवेश पर आधारित विकास चाहती है। इसके बदले में गरीब आदिवासी दलित किसान मजदूर से उनके प्राकृतिक संसाधनों को लेकर या ज्यादा उपयुक्त शब्द होगा छीनकर पूंजीपतियों को देने के काम को आगे बढ़ती है और यह सब कुछ किया जाता है नगर केंद्रित व्यापार व्यवसाय और उद्योग आधारित पूंजी निवेश द्वारा। जो पूरी तरह से असमानता और पर्यावरण असंतुलन को बढ़ावा दे रहा है। संघ परिवार इस तरह के विकास का लगातार विरोध करता रहा है।
ऐसा विकास जो पूरी तरह से नकारा जा रहा है। और इसी विकास के नाम पर इंदौर के नेताओं और नौकरशाही ने आउटर रिंग रोड इकोनामिक कॉरिडोर, मेट्रोपॉलिटन सिटी मेट्रो ट्रेन जैसे मॉडल गढ़े हे। यह सोचे विचारे बिना की इसके लिए खेती की बेशक्कीमती भूमि जिसे हर हाल में बचाना जरूरी है, वह समाप्त हो जाएगी। ऐसे भांति-भांति के प्रोजेक्ट्स के लिए भूमि अधिग्रहण ठेके टेंडर सब कुछ जल्द से जल्द करने की होड़ मची। अब तक सब कुछ चुपचाप सहन कर रहे किसानों ने इस बार जमकर विरोध किया।
आउटर रिंग रोड के लिए किए जा रहे भूमि अधिग्रहण के विरोध में हुए इस आंदोलन ने प्रदेश के किसानों को अपने अधिकारों के प्रति सजग और संगठित कर दिया। एक लंबे अरसे बाद भूमि अधिग्रहण जैसे बेहद नाजुक और संवेदनशील विषय पर किसान संघ में एक राय बनी और आंदोलन खड़ा हुआ। मध्य प्रदेश में ज़ब ज़ब जो जो भी सरकार सत्ता मे आई, गांव, खेत खलियान दलित, आदिवासी, मजदूर और किसानों के वोटों से बनी लेकिन सरकार और उसके मंत्रियों नीति निर्धारकों सत्ता नियंत्रक के साथ ब्यूरोक्रेसी के लिए प्राथमिकता में इन्वेस्टमेंट और इन्वेस्टर्स ही है।
मंत्री नेताओं अफसरों के कहे अनुसार भूमि अधिग्रहण की एक तरफा कार्यवाही और मनमाने तरीके से तय किए मुआवजा के खिलाफ खड़े हुए किसानों के आंदोलन की अनुगुूंज प्रदेश ही नहीं अन्य राज्यों के साथ, भोपाल से लेकर दिल्ली तक सुनाई दे रही है। प्रदेश भर में विकास के नाम पर गांव किसान खेत खलिहान, पर्यावरण को कुचला जा रहा है। जमीन हथियाने के बदले दिया जाने वाला मुआवजा एक तरह से अंग्रेजी हुकूमत के काले कानून की तर्ज पर निर्धारित किया गया है।
जानबूझकर लागू की गई इस तरह की शोषण और लूट की नीति के कारण सामाजिक समस्याएं और सामाजिक आर्थिक अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आउटर रिंग रोड में गाइडलाइन तक भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने इतनी कम रखी कि मुआवजा न के बराबर किसानों को मिले। गाइडलाइन काम करने का फायदा उठाते हुए काला धन जमीनों में निवेश करने वाले सत्ता और व्यापार से जुड़े लोगों ने अच्छा खासा पूंजी निवेश किया होगा। इस गाइडलाइन की हकीकत को समझा भारतीय किसान संघ के नेताओं ने।
किसान संघ के संभागीय अध्यक्ष कृष्ण पाल सिंह ने संगठन के प्रांतीय युवा और क्रांतिकारी संगठन मंत्री अतुल माहेश्वरी के नेतृत्व में इस विषय को संगठन के प्रदेश और राष्ट्रीय पदाधिकारी के समक्ष रखा। किसान संघ आज ही नहीं वर्षों से देश खेती की भूमि और गांव को संरक्षित और सुरक्षित करने की नीति पर चल रहा है संघ अनेक मंचों पर बार-बार कह रहा है कि नगर केंद्रित विकास की पश्चिमी संस्कृति अवधारणा देश के लिए बड़ा संकट है।
इंदौर के मामले में मुआवजा और गाइडलाइन की सच्चाई को समझने के बाद इंदौर / मालवा प्रांत को विश्व विषय पर काम करने की जिम्मेदारी दी गई थी। कृष्णपाल सिंह और उनके साथी धर्मेंद्र देंगे अनिल व्यास प्रांत अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण पटेल आदि ने सबसे पहले प्रभावित गांवों की भूमि की गाइडलाइन, जो कि बीते 15 सालों से बधाई नहीं गई थी जबकि ऐसे गांव में जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं। सरकार मुआवजा गाइडलाइन से देती है। इस अन्याय का किसान संघ ने दबाव प्रभाव की चिंता के बिना विरोध किया। ताकत से मांग की गई की गाइडलाइन को वर्तमान बाजार मूल्य तक बढ़ाया जाए कलेक्टर आशीष सिंह ने इस सच्चाई को गंभीरता से लेते हुए गाइडलाइन बढ़ाने का काम किया। यह किसान संघ की बड़ी जीत थी उसके बाद मुआवजा राशि में अब काफी कुछ बढ़ोतरी होगी। यह सब आसान नहीं था और सरकारी तंत्र में असंभव जैसा था किसान संघ ने सरकार को समस्या का समाधान बताया और कलेक्टर ने पूरी तन्मयता के साथ इस कठिन गुत्थी को सुलझाया। आंदोलन से सरकार की भूमि अधिग्रहण की गाइडलाइन की काली नीति पर अंकुश लगेगा।
अब असली लड़ाई केंद्र के दो गुणांक से मध्य प्रदेश में मुआवजा देने की है किस संत इसे आगे ले जाएगा क्योंकि वह राष्ट्रीय स्तर पर इस विषय को गंभीरता से सरकार के सामने रख रहा है। अंग्रेजों की तरह खेती की भूमि का अधिग्रहण करने की सरकारी मानसिकता से ना बीजेपी ना कांग्रेस अछूतों रही।
पिछली सरकारों इनमें कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारों के जमाने से प्रदेश में यह नीति चली आ रही है जिसे मोहन यादव सरकार को बदलना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से वह इसे पोषित कर रही है। जबकि उम्मीद थी मुख्यमंत्री मोहन यादव ही ऐसे राजनेता है, जो अपने विधायक को मंत्रियों सांसदों और अफसर वर्ग के दबाव से बाहर आकर खेती की भूमि को बचाने और चार गुना मुआवजा देने का फैसला कर सकते हैं। जैसा कांग्रेस की यूपीए सरकार ने 2013 में भूमि अधिग्रहण का नया कानून लाने का साहस का इतिहास रचा था।
जो भी हो भारतीय किसान संघ के इस आंदोलन के बाद आउटर रिंग रोड और ऐसे ही अन्य कई प्रोजेक्ट के लिए कृषि की उपजाऊ भूमि का मनमाने तरीके से अधिग्रहण करने के पहले सरकार को अब सोचना पड़ेगा। किसान नेताओं का कहना है कि खेती किसानी के साथ सरकार की मनमानी नहीं रुकी तो भाजपा की शिवराज सरकार को 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्रामीण मतदाताओं ने जो सबक दिया वह फिर दोहराया जा सकता है।
किसान नेता बताते हैं कि आंदोलन को कमजोर करने के लिए इंदौर क्षेत्र के विधायक सांसद मंत्री नेता अफसर सभी ने सब तरह के हथकंडे और दाव पेज आजमाए। सत्ताधारी नेता इस तरह के धतकर्मों में सफल नहीं हो पाए। जबकि इन्हें कुर्सी पर किसानों ने ही बैठाया था यह बड़ी गलती थी। आंदोलन रुख नहीं और आखिर में बात मुख्यमंत्री से बातचीत करने पर जाकर रुकी। किसान इसके लिए भी तैयार थे फिर भी इस विषय को हफ्तों तक लटकाए रखा। मुख्यमंत्री भी जानते होंगे कि विकास के नाम पर भूमि स्वामियों के साथ हो रहे अन्याय का जवाब उनके पास इस समय नहीं है। है भी तो, वह इसका जवाब चाहते हुए भी देना नहीं चाहेंगे। और फिर भरोसमंद अफसर जो कहेंगे वह करना है क्योंकि मामला बहुआयामी भांति भांति के ” विकास” का है। अंततः प्रशासन के कप्तान ने मामले को बेहद गंभीरता और संवेेेनशीलता से समन्वय के साथ सुलझाया।