संतोष पाटीदार

केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध, फायदे की उस खेती की संजीवनी बूटी या पारस पत्थर के इर्द गिर्द सिमट गया है जिसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी ) कहा जाता है। यह कुछ फसलों पर ही लागू है व देश के कुल लगभग 6 फीसदी किसानों को ही मिल पाता है। किसान शेष फसलों पर भी एमएसपी चाहते है। जबकि इस पर सरकार मौन है? इस मौन के रहस्य को क्या अगले आम चुनाव से जोड़कर देखा जाना सही होगा ? क्योंकि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों की आय को चुनावी साल सन 2022 तक दोगुना करने का दावा कई बार किया है।

हाल, फिलहाल दिल्ली में डेरा डाले उत्तर भारतीय किसान नए कानूनों को खत्म करने की मांग के साथ पूरा एमएसपी मिले, यह प्रावधान लागू करने के मुद्दे को प्रमुखता दे रहे है। वही, सरकार का फोकस  नए कानूनों पर  है। उल्लेखनीय है कि धान व कपास जैसी फसलों में कभी भी पूरा एमएसपी नहीं दिया जाता ।

10 बरस पहले एमएसपी मिलने की पैरवी की थी मोदी ने

लेकिन देश भर में आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में  किसानों का यह मान लेना कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार एमएसपी के पक्ष में नहीं है, यह धारणा काफी हद तक गलत समझी जानी चाहिए  क्योंकि मोदी अपनी दूरदृष्टि, गहरे अध्ययन व कड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते है और उन पर सफलतापूर्वक अमल भी करते है। इसकी वाज़िब वजह भी है । गुजरात के मुख्यमंत्री रहते उन्होंने आज से 10 बरस पहले ही अपनी एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट में पूरा एमएसपी मिलने की सिफारिश लागू करने की पैरवी की थी।  यह रिपोर्ट तब के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को आज के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सौपी थी, यानी खेती – बाड़ी के दिन पलटने की उम्मीद प्रधानमंत्री से की जा सकती है।

एमएसपी का  झगड़ा 2007 से डॉ एम एस स्वामीनाथन की उस रिपोर्ट का पिटारा खुलने से शुरू हुआ जिसमें भरपूर एमएसपी देने की मजबूत सिफारिश की गई थी । यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के लिए तैयार की गई थी। उस समय की यूपीए सरकार ने एमएसपी के जिन्न को बोतल में ही बन्द रखा । मोदी ने साहस के साथ चुनाव में किए वादे अनुसार स्वामीनाथन रिपोर्ट पर जैसे ही अमल शुरू किया, एमएसपी का जिन्न जाग गया। किसानों ने इसे रामबाण मान लिया। एक हद तक यह ठीक भी है पर इसके साईट इफ़ेक्ट भी है…. ।

यह रिपोर्ट अब किसानों के लिए उपयोगी

मोदी सरकार से एमएसपी की उम्मीदों को सहारा उस रिपोर्ट से मिलता है जो 2011 में मोदीजी ने केन्द्र को सौंपी  थी। यह रिपोर्ट अब किसानों के काम आ सकती है। 

तत्कालीन केंद्र की यूपीए सरकार को भी दाल- रोटी व  खाने – पीने की अन्य वस्तुओं की मंहगाई परेशान किये हुए थी। इसलिए गुजरात समेत चार राज्यों तमिलनाडू, आंध्रप्रदेश व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों का  उच्चस्तरीय वर्किंग ग्रुप , उपभोक्ता मामलों  के लिए  योग्य मुख्यमंत्री की लीडरशिप में बनाया गया । केंद्रीय खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय के अंतर्गत बने इस समूह का प्रमुख उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को बनाया गया।

अप्रैल 2010 को गठित इस समूह ने देशभर में रायशुमारी की व  गहन अध्ययन परिश्रम  कर  मार्च 2011 में अपनी रिपोर्ट तैयार की । उक्त मंत्रालय के तब के मंत्री के वी थॉमस थे। यह रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री को मोदी ने सौंपी । उस वक्त इस रिपोर्ट को तत्काल 15 दिनों में अमल में लाने की बात हुई थी। रिपोर्ट में एमसपी बढ़ाने पर विशेष जोर था ।

 तब से अब तक 10 बरस बाद तक महंगाई बेहिसाब बढ़ रही है, किसानों की भी हालत पतली होती जा रही है पर सरकार इन मसलों पर शांत है।

20 सिफारिशें और 64 एक्शन पॉइंट

मोदी समूह की इस रिपोर्ट में पूरी खेती का परिदृश्य बदलने के साथ मंहगाई पर नकेल के लिए 20 मजबूत सिफारिशों को 64 एक्शन पॉइंट में समेटा गया । मोदी रिपोर्ट में खेती के लिए खुले बाजार व अधिक से अधिक प्रतिस्पर्धी व्यापार को महत्व दिया गया ।

इस पांडुलिपि के पेज नम्बर 7 पर एमसपी प्रकट होता है। एमसपी के साथ वायदा बाजार व मण्डियों के एकाधिकार की लूट रोककर मंहगाई नियंत्रित करने की भी विधा बताई गई है। कह सकते है ,शायद कांग्रेस की यूपीए सरकार के नियंत्रक परिवार की  मोदी के प्रति नापसंदगी से रिपोर्ट निष्क्रिय रही।

नए कृषि कानून आने के बाद मोदी समूह की रिपोर्ट को पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने लपक लिया और नए कानूनों को लागू नही करने का ऐलान करने के दुःसाहस के साथ यह उदघोष कर दिया कि पंजाब में   निर्धारित एमसपी से कम दाम पर किसानों की उपज  नहीं बिकेगी। इस तरह की घोषणा महाराष्ट्र सरकार ने भी की । भारतीय जनता पार्टी को यह उम्मीद शायद नही थी। पंजाब की तरह  मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से जरूर आशा थी कि शायद वे भी एमसपी पर  इस तरह का निर्णय ले। क्योंकि खेती के आड़े आने वाले तमाम सरकार जनित संकटों के बाद भी  अपने पराक्रम से किसानों ने प्रदेश को राष्ट्र का शीर्ष कृषि कर्मण्य प्रदेश बनाया हुआ है पर किसानों को निराशा हाथ लगी।

इसलिए उक्त रिपोर्ट में शांत व उदारमना किसानों के लिए भी आशा की किरण है। हमेशा की तरह बिना आंदोलन व अधिकार मांगे बिना, बैठे -बिठाए, मप्र व अन्य सुबो के उदासीन किसान, उत्तर भारत के लड़ाके किसानों के तप की पुण्याई हाथ लगने की आस लगाए हुए है। 

रिपोर्ट की  चुनिन्दा मुख्य सिफारिश

 एमएसपी लागू करना 

  • किसानों की फसलें खासकर आवश्यक खाद्यान्न के व्यापार में किसानों के हित सुरक्षित रखना जरूरी है। इसलिए किसान व उपज खरीदने वालो के बीच व्यापार एमएसपी से कम दाम पर नहीं हो। इसका कानूनी प्रावधान जरूरी है। क्योंकि बाजार के कामकाज में बिचौलियों या आढ़तियों / व्यापारी वर्ग  की भूमिका अहम है। आढ़तिये  फसल खरीदने के लिए अधिकतर किसानों के साथ अग्रिम अनुबंध करते है । 
  • इसी से जुड़ा दूसरा सुझाव यह है कि विभिन्न फसलों की बुआई / बोनी की शुरुआत में ही सरकार को  एमएसपी की अग्रिम  घोषणा कर देनी चाहिए। एमएसपी को मंहगाई से जोड़ने से किसानों को उपज के  मूल्य  में फ़ेरबदल या पुर्नसंसोधन का अनुमान लगाने में आसानी होगी। जहाँ आवश्यक हो वहाँ एमएसपी का पुनः निरीक्षण होना चाहिए। इस तरह की व्यवस्था से किसान प्रोत्साहित होकर दाल व तिलहन / ऑयल सीड्स के उत्पादन में ज्यादा रुचि लेंगे। इससे दाल दलहन  तिलहन ऑयलसीड के लिए विदेशों पर निर्भरता खत्म होगी यानी देश आत्मनिर्भर होगा।
  • बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए मण्डियों के एकाधिकार को नियंत्रित करना ।  खुले बाजार को बढ़ावा देने से उपज के बेहतर दाम मिलेगे।  
  • देश मे कृषि का यूनिफाइड मार्केट (एक बाजार ) नहीं है। राज्यो के बीच अंतरराज्यीय बैरियर कृषि व्यापार में बाधक है । टैक्स संग्रहण की  इन बधाओं को सीमित करना होगा।  बाजारोन्मुखी व्यवस्था  किसानों को उपज के बेहतर मूल्य दिलाने में सहायक होगी।
  • कृषि व्यापार की जानकारियों में एकरूपता चाहिए। ट्रेड,स्टोरेज,लेनदेन आदि का एकीकृत सूचना तंत्र बने।
  • वायदा बाजार या फ्यूचर मार्केट में आवश्यक वस्तुओं के व्यपार पर रोक लगे। इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ गैर जमानती वारंट व विशेष कोर्ट बनाने की सिफारिश भी की गई है।

उल्लेखनीय है कि एफएमसी ने चावल,उडद व तुअर को वायदा बाजार से बाहर रखा है। कांट्रैक्ट फार्मिंग को भी खेती की बेहतरी में महत्वपूर्ण बताया गया है। आज नहीं तो कल, किसानों को  पूरा एमएसपी मिलना चाहिए ऐसा मानने वाले मोदी देश के अन्नदाता किसानों को निराश नहीं करेंगें। (सप्रेस)

Working-Group-Report_2010

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