मनमोहन श्रीवास्तव

आजादी के स्वतन्त्रता आंदोलन में कई ऐसे गुमनाम युवा विद्यार्थी हैं जो अपने सीमित साधनों में भी पूरी निष्ठा और समर्पण से अपने सुख, सपनों और पढ़ाई की आहुति देकर स्वतंत्रता के यज्ञ की पवित्र अग्नि को प्रज्वलित करते रहे।

14 विद्यार्थियों तथा कला और विज्ञान संकाय के 8 विषयों के साथ प्रथम नियमित प्राचार्य श्री इ.सी. चमले के नेतृत्व में होलकर महाविद्यालय में अध्यापन व्यवस्था प्रारंभ हुई। आज यह महाविद्यालय पूरी तरह से अपने आप को विज्ञान शिक्षा के लिए समर्पित करते हुए वर्तमान में डॉ सुरेश सिलावट के नेतृत्व में 12000 से अधिक छात्र-छात्राओं को विज्ञान के लगभग सभी आधुनिकतम और परंपरागत विषयों में पहले से बेहतर संसाधनों के साथ बी.एससी, एम.एससी, बी.सी.ए, एम.सी.ए तथा पीएच.डी के अध्ययन की श्रेष्ठतम सुविधाएंँ देते हुए शिक्षा जगत में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है। यह मध्य भारत क्षेत्र के एक प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में सुविख्यात है और इसके विद्यार्थी आज संपूर्ण विश्व में विभिन्न राष्ट्रों में अपने ज्ञान, प्रतिभा और कर्म निष्ठा से महाविद्यालय प्रदेश और देश का गौरव बढ़ा रहे हैं।

सन् 1905 में जब बंग – भंग के विरोध में स्वदेशी आंदोलन ने जोर पकड़ा तो होलकर महाविद्यालय के छात्रोंके मन में भी राष्ट्रीयता तथा स्वाधीनता की भावना हिलोरे लेने लगी। इस समय से ही होलकर महाविद्यालय के प्रांगण में देश हित में कार्य करने की भावना प्रबल होने लगी। छात्रों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से संगठित होकर अंग्रेजी शासन और नीतियों का विरोध प्रारंभ कर दिया।

22 जुलाई 1908 को लोकमान्य तिलक को 6 वर्षों की सजा सुनाई गई इस खबर ने तो मानो छात्रों की राष्ट्रीय चेतना को झकझोर दिया। यहीं से छात्र स्वतंत्रता आंदोलन को बल और विस्तार देने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर सामने आए। छात्रों ने इंदौर में तिलक जी की इस सजा के विरोध में हड़ताल आयोजित कर दी। 30 जुलाई से 4 अगस्त, 2008 तक मनाए जाने वाले गणेश उत्सव के दौरान इंदौर में राष्ट्रीय चेतना और भी मुखर हो गई। 

5 अगस्त 1908 को गणेश उत्सव के समापन का जुलूस निकाला गया जिसमें हजारों की संख्या में शिक्षार्थी,शिक्षक, कर्मचारी और जनता ने बढ़ -चढ़कर भाग लिया और वंदे मातरम् की पावन गूंज से इंदौर के आकाश को गुंजायमान कर दिया। इस जुलूस में तिलक, खुदीराम,बोस,अरविंद,घोष और विपिन चंद्र की जयकारों का जोश देखते ही बनता था। युवाओं की एकजुटता, जोश और आक्रोश ने प्रशासन की नींद उड़ा दी आर शासन दमनकारी नीति पर उतर आया। गणेशोत्सव में प्रो. गोखले द्वारा दिये भाषण ने सभी को अंचभित कर दिया। इसी भाषण के कारण तात्कालिक सरकार ने नोकरी से निकालाते हुए होलकर रियासत छोड़ने का फरमान जारी कर दिया । इसी तारतम्य में अंग्रेजी प्रशासन के दबाव में होलकर महाविद्यालय के विद्यार्थी भोपकर, चंदवासकर, दांडेकर, दवे, पंतवैद्य, नांदेड़कर, दुराफे और शेवड़े को आंदोलनकारी प्रदर्शन में भाग लेने तथा क्रांतिकारी विचारधारा और गतिविधियों में लिप्त होने के लिए दोषी मानते हुए कॉलेज प्रशासन ने महाविद्यालय से निष्कासित कर दिया।

1908 मे होलकर महाविद्यालय में क्रांतिकारियों से प्रेरित होकर छात्रों के एक संगठन ने गुप्त रूप से काम करना प्रारंभ कर दिया था । यह संगठन गुप्त तरीके से महाविद्यालय के सूचना पटल पर युगांतर जैसे राष्ट्रीय पत्र तथा खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों के संदेश नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दिया करता था। राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत पत्रिकाएं जैसे बंदे मातरम (अरविंद घोष), मॉडर्न रिव्यू ( रामानंद चटर्जी), केसरी युगांतर (तिलक )आदि सहजता से इस महाविद्यालय के विद्यार्थियों को चोरी छुपे पढ़ने के लिए उपलब्ध करा दी जाती थी।

होलकर महाविद्यालय से निष्कासन के निर्णय से दुखी होकर विनायक यशवंत शेवड़े अपने दो मकानों को गिरवी रखकर तथा महादेव नांदेड़कर अपने पिता की जेब से चुपचाप 300₹ निकाल कर प्राप्त धनराशि लेकर बिना घर पर बताए बम्बई प्रस्थान कर गए। नांदेड़कर ने अपना नाम बदलकर कुलकर्णी और पासपोर्ट पाने के लिए श्रीधर देव रख लिया, यह नाम उन दिनों इंदौर म्यूनिसिपैलिटी के इंजीनियर का था। सन् 1909 में ये दोनों विद्यार्थी मित्र अमेरिका चले गए। दोनों के लिए अमेरिका अनजान देश था इसलिए जाते समय श्री कृष्णा कर्वे का परिचय पत्र तथा अमेरिका में रह रहे श्रीधर वेंकटेश केतकर के लिए पत्र साथ में ले गए। यहांँ उल्लेखनीय है कि श्री कर्वे अभिनव भारत संस्था के लिए काम करते थे तथा जैकसन हत्या काण्ड के सूत्रधार रहे। शेवड़े ने कैलिफोर्निया में केमिकल इंजीनियर की शिक्षा पूर्ण की, साथ साथ गुप्त रूप से बम बनाने का काम सीखा। नांदेड़कर यहां विशुद्ध रूप से ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों से जुड़ गए हैं तथा पेसिफिक हिंदुस्तानी संस्था के सूत्रधार बने।

कालांतर में दोनों की मित्रता प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता लाला हरदयाल, डॉक्टर खानखोजे, विष्णु पिंगले आदि से हुई। इस मित्रता ने दोनों को अमेरिका तथा  ब्रिटेन,जर्मनी, जापान,कनाडा आदि देशों में कार्यरत भारतीय क्रांतिकारी संस्थाओं के साथ भारत की स्वाधीनता के लिए जागृति, प्रचार तथा मदद प्राप्त करने जैसे महत्वपूर्ण काम करने का अवसर प्रदान किया। नांदेड़कर का संबंध गदर पार्टी से भी रहा। नांदेड़कर को 1914 में बर्लिन कमेटी का हिस्सा बनने का अवसर प्राप्त हुआ। बर्लिन कमेटी का जो प्रतिनिधिमंडल सेनफ्रांसिस्को से बर्लिन के लिए रवाना हुआ उसमें नांदेड़कर भी थे। दुर्भाग्यवश इस प्रतिनिधिमंडल को अपने उद्देश्य में सफल हुए बिना ही लौटना पड़ा। 11 मार्च 1915 को क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित होने के कारण नांदेड़कर को मद्रास में गिरफ्तार करके होलकर रियासत को सौंप दिया गया। 1918 में सैनफ्रांसिस्को में जिन भारतीयों पर तटस्थता भंग करने के लिए मुकदमा चलाया गया, उनमें नांदेडकर भी सम्मिलित थे। मुकदमे के फैसले में नांदेड़कर को 3 माह का कठोर कारावास दिया गया। 

उल्लेखनीय है कि स्वतंत्रता आंदोलन में अपने आप को समर्पित कर देने के कारण नांदेड़कर उच्च शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रहे, जिसका उन्हें दुख अवश्य रहा पर उसके एवज में देश के प्रति कुछ कर गुजरने का शुभ अवसर मिलने के कारण कोई मलाल मन में नहीं रहा। इसका उल्लेख उन्होंने अपने पिता को लिखे पत्र में किया है उन्होंने लिखा कि, “यह सच है कि मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की, परंतु देश की स्वतंत्रता के अभाव में ऐसी शिक्षा मुझे सत्य प्रतीत नहीं होती”।

होलकर कॉलेज की ओर से स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता करने वालों में आनंद सिंह मेहता का नाम भी आदर सम्मान के साथ लिया जा सकता है, जिन्होंने 1936 में होलकर महाविद्यालय में प्रवेश लिया और 1942 में महाविद्यालय छोड़कर भारत छोड़ो आंदोलन में सम्मिलित हो गए। उस समय के होलकर कॉलेज के विद्यार्थियों को दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल, फिरोजशाह मेहता, सुरेंद्रनाथ बनर्जी के उन विचारों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया जिसमें उन्होंने परतंत्रता के कारण भारत को होने वाले आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक नुकसान का जिक्र किया था।

1931 में भगत सिंह को फांसी दी गई इस घटना से भारतीय युवा अत्यधिक आक्रोशित और अशांत हो गया था। भगत सिंह से प्रेरणा लेकर इंदौर के क्रांतिकारी विद्यार्थियों ने राजनीतिक उद्देश्य से धार डकैती कांड को भी अंजाम दिया। इस घटना में होलकर महाविद्यालय के छात्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी बने।

राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम को अधिक विस्तार और बल प्रदान करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर 1938 में अखिल भारतीय स्टूडेंट फेडरेशन का गठन हुआ। 1940 में इसकी इकाई का गठन इंदौर में भी हुआ और इस संगठन के दूसरे कार्यकाल के लिए होलकर महाविद्यालय के आनंदसिंह मेहता को अध्यक्ष तथा शंकर मेहता को महामंत्री नियुक्त किया गया। इस संगठन ने ओजस्वी छात्र नेताओं उद्धरेषे और नाथूलाल जैन के साथ मिलकर छात्रों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध वातावरण निर्मित करने तथा स्वतंत्रता के प्रति अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बम्बई अधिवेशन में ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ। गांधी जी ने यहांँ ‘करो या मरो’ का नारा देशवासियों को दिया। इस अधिवेशन में होलकर महाविद्यालय के छात्र आनंद सिंह मेहता, नाथूलाल जैन, जोहरीलाल झांझरिया, इंदु पाटकर आदि ने न केवल भाग लेने का निश्चय किया वरन् 9 अगस्त 1942 को बंबई के गोवालिया टैंक मैदान में जनता को संबोधित करने की तैयारी भी की, किंतु अंग्रेज प्रशासन ने 8 अगस्त की रात को ही इन सभी प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर इस आयोजन को विफल कर दिया।

विद्यार्थियों ने इंदौर लौट कर 13 अगस्त को इंदौर में जुलूस निकालने की योजना बनाई। इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए मेहता और उनके साथियों ने होलकर कॉलेज कैंपस में एक सभा आयोजित करना चाही। इसके लिए तत्कालीन प्राचार्य डॉ राजू से विधार्थियों ने अनुमति मांगी। प्राचार्य ने प्रशासन के दबाव में अनुमति देने से इंकार कर दिया तब इन विद्यार्थियों ने प्राचार्य का मान रखते हुए कॉलेज के गेट के बाहर मुंबई घटना के विरोध में सभा की तथा सांकेतिक हड़ताल भी की। इसी दिन शाम को प्रजामंडल कांग्रेस स्टूडेंट फेडरेशन और मजदूर संगठन ने सम्मिलित रूप से शहर में एक विशाल रैली निकाली जिसमें होलकर कॉलेज के क्रांतिकारी विचारधारा वाले विद्यार्थियों ने भी भाग लिया। इस रैली ने शहर के शांतिपूर्ण माहौल को अंग्रेजों के विरुद्ध तरंगायित कर दिया। तत्कालीन प्रशासन की दृष्टि में यह स्थिति चिंतनीय थी। प्रशासन इन स्थितियों के निर्माण में मेहता और उनके साथियों को जिम्मेदार समझता था। अतः उन्हें दंडित करने के लिए उनकी खोज में लग गया। विद्यार्थियों को अपने शुभचिंतकों द्वारा यह सूचना प्राप्त हो गई थी और वे भूमिगत हो गए। भूमिगत रहते हुए भी स्वतंत्रता के दीवाने इन छात्रों ने इस आंदोलन को अपनी पूरी ताकत से जीवित रखा। वे अपने साथियों को पत्र और बुलेटिन तैयार कर निरंतर देते रहे और इस तरह उन्होंने इस आंदोलन को कमजोर नहीं पड़ने दिया।

1942 के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में होलकर कॉलेज की छात्राओं ने कुमारी स्वराज लता गोयल (मुन्नी गुप्ता) के नेतृत्व में बढ़ चढ़कर भाग लिया तथा अपने साथी छात्रों के साथ मिलकर महाविद्यालय को आंदोलन का एक प्रमुख केन्द्र बना दिया। उस समय अधिकांश क्रांतिकारी छात्र-छात्राओं द्वारा विदेशी कपड़े और सामानों का बहिष्कार और उसकी होली जलाने का कार्य महाविद्यालय और सार्वजनिक स्थलों पर किया जाता रहा । इसी समय छात्राओं के एक समूह, जिसमें जिनी अंकल -सरिया, आसान गोदरेज, कमल कालेवर, इंदिरा भटनागर, मुन्नी गुप्ता जैसी छात्राएंँ शामिल थी ने खादी को अपना पहनावा बनाकर आंदोलन को नई ऊर्जा प्रदान की।

इसके साथ ही छात्र-छात्राओं के एक समूह, जिसमें पीडी शर्मा, मंडलोई, आसाराम भाटी, हरिगोविंद, आर.वी. ग्वाल, कुमारी खेर, इंदु पाटकर आदि शामिल थे ने अंग्रेजों के विरोध तथा स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में पोस्टर चस्पा करने का कार्य किया। जिससे आमजन भी आंदोलन से जुड़ने लगा।  कुछ विद्यार्थियों-  इंदु मेहता, मुन्नी गुप्ता,  विमल छोड़े, शालिनी काले व सुंदर सिंह आदि ने महाविद्यालय के गेट पर आंदोलन के समर्थन में धरना प्रदर्शन का काम किया। 

एक अन्य छात्रों के समूह जिसमें कन्हैयालाल डूंगरवाल, ओम प्रकाश रावल, होमी दाजी, गोवर्धनलाल ओझा,श्यामसुंदर झंवर,टी.के. जगदीश, शकुंतला पाटकर आदि, जो विद्यार्थी फेडरेशन के सदस्य भी थे, ने राष्ट्रीय आंदोलनकारी गतिविधियों के समर्थन में महापुरुषों की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित करते हुए नित्य प्रभात फेरियाँ निकाली।वहीं कुछ विद्यार्थियों ने जैसे मुन्नी गुप्ता, शर्मा,  जी.एल.ओझा, आरती कानूनगो, सुब्रत राय, एल पी सिंह, तेजसिंह सुराना आदि ने विशेष अवसरों पर कॉलेज में लगे अंग्रेजों के यूनियन झंडे को निकालकर भारत की स्वतंत्रता के प्रतीक तिरंगे झंडे को लहराने का  महत्त्वपूर्ण साहसी कार्य किया। इन सब गतिविधियों के लिए इन क्रांतिकारी छात्र नेताओं/ नेत्रियों को कभी-कभी पुलिस की लाठी तक खानी पड़ती तो कभी लंबे समय तक जेल में बैठना पड़ता।  

1945 में अखिल भारतीय स्तर पर विद्यार्थी कांग्रेस की स्थापना हुई। महाविद्यालय के कन्हैयालाल डूंगरवाल, गोवर्धनलाल ओझा, ओम प्रकाश रावल, झंवर आदि विद्यार्थी इससे सक्रिय रूप से जुड़ गए। इन्होंने 1946 के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी भाग लिया। इनके अतिरिक्त ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि राजू वैध, अनंत लागू,चंदन मेहता, नाथूलाल जैन, सरदार रणजीत सिंह,प्रताप सिन्हा, नंदकिशोर भट्ट,गोड़, श्याम सुंदर व्यास, मल्होत्रा,श्रीहरि महोदय, जगमोहन पंवार, मुक्ता श्रषि, हीरालाल शर्मा,अजित प्रसाद जैन आदि इंदौर के विधार्थी स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख थे। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज की सहायतार्थ के लिए इस महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने ₹3000 एकत्रित करके भेजे थे।

स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को महाविद्यालय के कैंटीन प्रभारी देवीसिंह का  समर्थन और प्रोत्साहन विशेष रहा।आंदोलन की गतिविधियों के संचालन के लिए वे अपना कक्ष उपलब्ध कराने के साथ ही आंदोलन की छोटी-छोटी सफलता पर खुश होकर विद्यार्थियों को प्रोत्साहन देने के लिए गुलाब जामुन खिलाते,तो कभी केशर का दूध पिलाकर मनोबल बढ़ाते। उस समय के शिक्षक तथा डॉ राजू जैसे प्राचार्य अपने प्रिय छात्र-छात्राओं की आंदोलनकारी गतिविधियों से भली भांति परिचित होने के बावजूद भी सार्वजनिक रूप से अनजान बनकर अपना समर्थन स्वतंत्रता आंदोलन को देते रहे। पुलिस और प्रशासन को महाविद्यालय के आंदोलनकारी छात्र नेताओं के नाम ना बताने के लिए प्राचार्य डॉ राजू को तो लिखित रूप में प्रशासन से माफी मांगना पड़ी थी, किंतु वे इससे विचलित नहीं हुए और न इसे आत्मसम्मान का मुद्दा बनाया।उनका निरंतर सहयोग आंदोलन को अप्रत्यक्ष रूप से बल देता रहा। 

डा मनमोहन प्रकाश श्रीवास्तव, शिक्षाविद एवं विज्ञान लेखक, इंदौर

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