जबलपुर की ‘श्री जानकी बैंड ऑफ वुमन’ ने सुरों में पिरोई कविताएं, सस्वर गान से श्रोताओं को किया मंत्रमुग्ध
इंदौर 19 जनवरी । भारतीय संस्कृति और परंपराओं को आधुनिकता के साथ जोड़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन। मध्य प्रदेश के जबलपुर की कॉलेज छात्राओं द्वारा स्थापित इस बैंड ने देशभर में न केवल अपनी अनूठी प्रस्तुति से पहचान बनाई है, बल्कि साहित्य और संगीत के संगम का एक प्रेरणादायक मॉडल भी प्रस्तुत किया है। यह समूह केवल एक बैंड नहीं, बल्कि कला और साहित्य का एक ऐसा समागम है।
ऐसा ही कला और साहित्य का समागम आज सुबह इंदौर में प्रस्तुत हुआ, जो एक अपने प्रकार का अनूठा, अभिनव और नवाचार से भरा संगीत कार्यक्रम था। जिसमें युवा महिला कलाकारों ने देश के विख्यात राष्ट्रीय कवि, साहित्यकार, और गीतकारों की लिखी हुई कालजयी रचनाओं को संगीत की सुर लहरियों में बांध कर सस्वर सम्यक गान किया। इन रचनाओं में माटी की सौंधी महक, देश प्रेम , करूणा, सदभाव, वीरता और भाईचारे के संदेश थे। यह आयोजन संस्था सेवा सुरभि के झंडा ऊंचा रहे हमारा अभियान के तहत रविवार की सुबह जाल सभागृह में आयोजित किया गया।
जबलपुर के इस महिला बैंड की सभी महिलाओं ने गायन के साथ वादन की भी अद्भुत प्रस्तुति देकर खचाखच भरे जाल सभागृह को देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम के रंग में भाव विभोर कर दिया। प्रारंभ में पद्मश्री जनक पलटा, उद्योगपति वीरेंद्र गोयल एवं नारायण अग्रवाल ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही हॉल श्रोताओं से भर गया था। इस बैंड की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह फिल्मी गीतों के बजाय भारतीय लोकगीतों और हिंदी साहित्य के महान कवियों की रचनाओं को प्रस्तुत करता है। बैंड द्वारा शुरुआत में छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की रचना भारत माता ग्राम वासिनी… से कीं। उसके बाद बुंदेलखंड का गीत भजो रे मन मोरे रघुवर… का सम्यक गान हुआ। लोक संगीत में घुली इस रचना में मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम के अनुशासित जीवन के साथ राम लखन के प्रेम को दर्शाया गया था और जब राष्ट्कवि माखनलाल चतुर्वेदी की कालजयी रचना चाह नहीं मैं सुर बाला के गहनों में गूंथा जाऊं…को सुनाने का क्रम आया तो कुछ देर के लिए सभागृह में उत्सुकता का माहौल बन गया।
छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद की रचना अरुण यह मधुमेय देश हमारा … हो या राष्ट्रीय कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की रचना वीरों का कैसा हो बसंत … के सामूहिक स्वर में प्रकृति के शृंगार, सौंदर्य के साथ होली पर्व पर लोक गीत भारत में मची है होरी रे होरी रे… पर खूब दाद मिली। सबसे अधिक दाद मिली गोंडवाना की महारानी दुर्गावती के शौर्य और सेवा कार्यो पर समर्पित गीत दुर्गाजी की जय बोलो, दुर्गावती बड़ी मर्दानी महारानी… गीत पर।
इन महिला गायकों ने सुभद्रा कुमारी चौहान की कालजयी रचना खूब लड़़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी, सुनाकर खूब तालियां बटोरी और समापन बांगला साहित्यकार बंकिमचंद्र चटोपाध्याय की अमर रचना वंदेमातरम् से किया, जिसे श्रोताओं ने पूरे समय खड़े होकर सुना। निश्चित ही इस बैंड ने ख्यातनाम साहित्यकारों की इन कविताओं को अपनी धुनों में सजाकर उन्हें नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया है।
यह बैंड केवल संगीत का समूह भर नहीं है; यह भारतीय साहित्य और लोक परंपरा का जीवंत चित्रण है। इन युवतियों का कोरस जब हिंदी साहित्य की भूली-बिसरी कविताओं और लोक संगीत को सुरों में पिरोता है, तो वह श्रोताओं को साहित्यिक और सांस्कृतिक यात्रा पर ले जाता है। इस कार्यक्रम की खास विशेषता यह रही कि सभी 11 महिला कलाकारों ने हारमोनियम से लेकर गिटार, तबला, की बोर्ड और शंख से सुरों का सजाया।
महिला बैंड की सफलता के पीछे संगीत शोधार्थी डॉ. शिप्रा सुल्लेरे और रंगमंच कलाकार सरदार दविंदर सिंह ग्रोवर का मार्गदर्शन है। आवाज़ के इन बिखरे हुए मोतियों को एक माला में पिरोने का काम किया सरदार दविन्दर सिंह ग्रोवर ने किया है। वे रंगमंच के कलाकार हैं। नाटकों में कई कि़रदार निभा चुके हैं और जबलपुर में नाट्य लोक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था के संचालक हैं। वहीं इन तरूणाई को एकजुट करने वाली नेपथ्य की शक्ति डॉ. शिप्रा सुल्लेरे हैं। वे संगीत की शोधार्थी रही हैं। भक्ति काल की कविता पर उन्होंने पीएचडी की उपाधि हासिल की है। वे ही इन प्रतिभाओं की गुरू भी है। दविन्दर और शिप्रा की रचनात्मक संधि पर श्री जानकी बैंड अस्तित्व में आया।
इस मौके पर श्री जानकी बैंड के प्रमुख और संगीत निर्देशक देवेंदर सिंह ग्रोवर और डॉ. क्षिप्रा सुल्लरे का संस्था की ओर से पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा, कुमार सिद्धार्थ एवं अनिल मंगल ने अटलजी की कविता ’ऊंचाई’ स्मृति चिन्ह भेंट कर अभिनंदन किया। अटलजी की कविता ’ऊंचाई’ का वाचन संजय पटेल ने किया। अंत में सभी महिला कलाकारों का भी सम्मान किया गया।
श्री जानकी बैंड ऑफ वूमन भारतीय साहित्य और संगीत को एक आधुनिक पहचान देने का प्रयास है। यह बैंड न केवल परंपराओं को संरक्षित कर रहा है, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य भी कर रहा है। साहित्यिक गीतों और लोक संगीत के प्रति इस बैंड का समर्पण समाज को यह संदेश देता है कि नवाचार और परंपरा का समन्वय न केवल संभव है, बल्कि यह नई संभावनाओं के द्वार भी खोलता है। श्री जानकी बैंड जैसी पहलें समाज और संस्कृति के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव का प्रतीक हैं।
प्रारंभ में अतिथि स्वागत साहित्यकार ज्योति जैन, प्रीति दुबे, अर्पिता तिवारी ने किया। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन संस्कृतिकर्मी संजय पटेल ने किया। आभार माना सेवा सुरभि के संयोजक ओमप्रकाश नरेडा ने। इस मौके पर पूर्व महापौर डॉ. उमाशशि शर्मा, पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा, अतुल सेठ, मोहन अग्रवाल, अनिल मंगल, डॉ. ओ. पी. जोशी, डॉ. रजनी भंडारी, डॉ. दिलीप वाघेला, डॉ. शंकरलाल गर्ग, कीर्ति राणा, कुमार सिद्धार्थ, हरेराम वाजपेयी सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।