अहिंसक, शांतिपूर्ण और अब तक राजनीतिक दलों से परहेज करने वाले किसान आंदोलन का विकल्प-हीनता की मजबूरी में पनपा यह राजनीति-प्रेम उसे कहां ले जाएगा? कहने को भले ही किसान आंदोलन ‘किसी पार्टी विशेष की वकालत’ न करते हुए...
हम अन्य मुल्कों में लोकतंत्र पर होने वाले प्रहारों, बढ़ते अधिनायकवाद और विपक्ष की आवाज़ को दबाने वाली घटनाओं पर इरादतन चुप रहना चाहते हैं। ऐसा इसलिए कि जब इसी तरह की घटनाएँ हमारे यहाँ हों तो हमें भी...
पैंतालीस साल पहले के आपातकाल और आज की राजनीतिक परिस्थितियों के बीच एक और बात को लेकर फ़र्क़ किए जाने की ज़रूरत है। वह यह कि इंदिरा गांधी ने स्वयं को सत्ता में बनाए रखने के लिए सम्पूर्ण राजनीतिक...
नए स्टेडियम के नाम के साथ और भी कई चीजों के बदले जाने की शुरुआत की जा रही है। यानी काफ़ी कुछ बदला जाना अभी बाक़ी है और नागरिकों को उसकी तैयारी रखनी चाहिए। केवल सड़कों, इमारतों, शहरों और...
सवाल है कि ‘चमोली त्रासदी’ जैसी आपदाओं को, अपनी विकास की हठ में बार-बार खडी करने वाले राजनेताओं से धर्मगुरु किस मायने में भिन्न और बेहतर साबित होंगे? क्या वे अपने पास-पडौस के समाज, वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की कोई...
हमारे समय का सर्वाधिक विवादास्पद शब्द ‘विकास’ है और इसके प्रभाव में अधिकांश देशवासी कराह रहे हैं, लेकिन इसे लेकर किसी राजनीतिक मंच पर गहराई से विचार-विमर्श नहीं होता। उलटे मौजूदा विकास की अवधारणा को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां...
हाल के इस बजट को ही देखें तो अगले वित्त-वर्ष के लिए कृषि क्षेत्र को एक लाख 31,530 करोड रुपयों का आवंटन किया गया है, जो पिछले साल के बजट आवंटन से दस हजार करोड रुपए कम है, लेकिन...
बाइडन के व्हाइट हाउस में प्रवेश को लेकर भारत का सत्ता प्रतिष्ठान अंतरराष्ट्रीय राजनीति की ज़रूरतों के मान से कुछ ज़्यादा ही चौकन्ना हो गया लगता है। ’अबकी बार, ट्रम्प सरकार ’ के दूध से जली नई दिल्ली की...
‘गणतंत्र दिवस’ की 26 जनवरी पर पुलिस, प्रशासन और आंदोलनकारी किसानों के नेतृत्व के कतिपय हिस्से द्वारा अपनी-अपनी वजहों से की गईं गफलतों ने हिंसा और अराजकता का अप्रिय माहौल बना दिया था। लगने लगा था कि आजादी के...
छह महीने के राशन-पानी और चालित चोके-चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं ,क्या ऐसा मान लिया जाए ? जाँचें अब उनके...