किसी भी समाज में होने वाले आंदोलन उस समाज की जीवन्तता का प्रतीक होते हैं और इस लिहाज से देखें तो दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन, अपने तमाम सवालों के अलावा कृषि-क्षेत्र की जिन्दादिली का प्रतीक भी...
‘गणतंत्र दिवस’ की 26 जनवरी 71 साल पहले हमें अपने संविधान को अंगीकार करने की याद तो दिलाती ही है, साथ ही एक नागरिक की हैसियत से हमें अपने कर्तव्‍यों का बोध भी कराती है। इक्‍कीसवीं सदी के तीसरे...
किसान आंदोलन पर भी शिद्दत और नासमझी से सवाल उठाया गया है कि लाखों लोगों के भोजन (लंगर) और दूसरी व्यवस्थाओं का इंतजाम आखिर कैसे और कौन कर रहा है? कुछ अधिक ‘कल्पनाशील’ शहरी इसमें कनाडा, इंग्लेंड, अमरीका और...
बीस जनवरी दो हज़ार इक्कीस को वाशिंगटन में केवल सत्ता का शांतिपूर्ण तरीक़े से हस्तांतरण हुआ है, नागरिक-अशांति की आशंकाएँ न सिर्फ़ निरस्त नहीं हुईं हैं और पुख़्ता हो गईं हैं। देश की जनता का एक बड़ा प्रतिशत अभी...
किसान संघ की बेंगलुरू की चिंतन बैठक में दिल्ली में हो रहे किसान आंदोलन को लेकर चिंता व विचार मंथन होना ही था। बैठक का मुख्य मुद्दा भी यही था। क्योंकि अपने अनुषांगिक संघठन भारतीय जनता पार्टी...
कडकती ठंड और तेज बरसात में देश की राजधानी को घेरे बैठे किसानों को अब करीब डेढ महीना हो गया है, लेकिन मामला सुलझता नजर नहीं आता। किसान तीन नए कृषि कानूनों को खारिज करवाना चाहते हैं और सरकार...
‘तटस्‍थ लोकतंत्री’ की नजर से देखा जाए तो एक तरफ वह सरकार दिखाई देती है जिसने दो कानून और एक संशोधन लाने के लिए किसी तरह की कोई लोकतांत्रिक औपचारिकता नहीं बरती। ना तो किसान संगठनों, उनके प्रतिनिधियों से...
किसानों ने जिस लड़ाई की शुरुआत कर दी है वह इसलिए लम्बी चल सकती है कि उसने व्यवस्था के प्रति आम आदमी के उस डर को ख़त्म कर दिया है जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिलों में घर...
पुस्‍तक समीक्षा भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को लेकर तरह-तरह के मनगढंत किस्‍से-कहानियां प्रचलित हैं और इतिहास को पीठ दिखाने की राजनीति के इस दौर में ये कहानियां और भी चटखारे लेकर सुनी-कही जा रही हैं। ऐसे में...
दिल्‍ली की चौहद्दी पर पिछले करीब 21-22 दिनों से जारी किसान आंदोलन ने खेती-किसानी को कम-से-कम बहस के लायक तो बना ही दिया है। इस लिहाज से देखें तो पिछले तीन-साढे तीन सप्‍ताह देशभर के लिए कृषि-प्रशिक्षण का बेहतरीन...

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