लोकतंत्र की बदहाली किसी से छिपी नहीं है,लेकिन उसे वापस पटरी पर कैसे लाया जाए?
आजादी के 75 वें वर्ष में कुछ माह के अंतराल से दो अति महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटनायें हुईं जिनका संबंध देश की सौ प्रतिशत जनता से...
इंसानी तरक्की को मापने के लिए ‘सकल घरेलू उत्पाद’(जीडीपी) जैसे जिन पैमानों का उपयोग किया जा रहा है, क्या वे सचमुच हमारे विकास को बता पाते हैं? क्या इनसे समाज में मौजूद गैर-बराबरी, अन्याय, हिंसा, शोषण आदि को भी...
आधुनिकता के तमाम फायदे उठाने और नतीजे में उससे पैदा हुई बदहाली को भुगतने के बाद ‘यूरोपीय संघ’ ने अब कानून बनाकर विकास की धारा को पलटने की कोशिश की है। बरसों से नदियों पर विशालकाय बांध खडे करने,...
तकरीबन साढ़े चार बिलियन लोगों को भूखा मरने पर बाध्य जिस समय पर दुनिया की "एक पीढ़ी" सबसे खराब भूख संकट का सामना कर रही है, उसी एक समय पर अमीर देशों ने बस अपने मुनाफे को देखा है।...
17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में पर्यावरण, कृषि, आजीविका, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर विमर्श
भोपाल, 8 जून। 17वीं अखिल भारतीय जन विज्ञान कांग्रेस में पर्यावरण, कृषि, आजीविका, लैंगिक समानता जैसे विषयों पर आज सेमिनार एवं कार्यशालाओं का आयोजन...
विकास की बदहवासी में आजकल उसी को अनदेखा करने का चलन हो गया है जिसकी कसमें खाकर विकास किया जाता है। पिछले दिनों केन्द्रीय केबिनेट ने मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड़ इलाके की सिंचाई और पेयजल क्षमता बढाने की...
डॉ. पीएस वोहरा
पिछले कुछ सालों के निजाम में हमारे आर्थिक विकास के लिए एक नया शब्द आया है – ‘आत्मनिर्भरता।अब देखना यह होगा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए जरूरी रोडमैप के अंतर्गत अर्थव्यवस्था के लिए बनने वाली दूरदर्शी आर्थिक...
करीब आधी सदी में पूंजी और इंसानों के ढेरों संसाधन लगाकर पश्चिमी मध्यप्रदेश में ‘सरदार सरोवर जल-विद्युत परियोजना’ खडी तो कर ली गई है, गाहे-बगाहे उसके गुणगान भी किए जाते हैं, लेकिन उसकी चपेट में आई ढाई सौ गांवों...
बरसों से नदी-जोड़ परियोजना का सपना देखने वालों को अब देश के तीस उत्कृष्ट विद्वान पर्यावरणविदों की चुनौती मिली है। इस योजना के तहत काटे जाने वाले जंगल तथा पेड़ों से वन्य-जीवन, जैव-विविधता तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव निश्चित...
विकास की तरह-तरह की किस्सा-गोइयों के बावजूद हमारे देश में सिंचित कृषि का कुल रकबा अब भी 40 फीसदी के आसपास ही है। जाहिर है, खेती की बाकी जरूरत का पानी मानसून की बरसात की उम्मीदों पर टिका होता...