बहुपठित उपन्यास ‘रागदरबारी’ के एक प्रसंग में कहा गया है कि लगता है, शिक्षा-व्यवस्था सड़क किनारे की ऐसी आवारा कुतिया है जिसे हर कोई गुजरता आदमी बेवजह लात जमा देता है। आजकल शिक्षा में किए जा रहे ना-ना प्रकार...
क्या हमारा संविधान रचने वालों ने कभी मौजूदा हालातों की कोई कल्पना की थी? क्या वे देख पा रहे थे कि देश सात-साढ़े सात दशकों में कहां-से-कहां पहुंच जाएगा? डॉ. आंबेडकर को शायद इसका भान था और इसीलिए वे...
भारत में बच्चों को शारीरिक दंड देने की आदत यथावत बनी हुई है| बच्चे को अनुशासित करने में इसकी व्यर्थता साबित होने के बावजूद| पिटा हुआ और घायल बच्चा कभी ज़िम्मेदार नागरिक नहीं बन सकता| एक इंसान के रूप...
2 अक्टूबर : गांधी जयंती पर विशेष
महिला-आरक्षण की मौजूदा बहसा-बहसी के बीचम-बीच अरविन्द मोहन की ‘गांधी की महिला फौज’ किताब हमें एक ऐसे नायाब अनुभव से रू-ब-रू करवाती है जिसमें बिना किसी तामझाम के गांधी ने अपनी पलटन में...
76 वें स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
आजादी के लगभग साढे़ सात दशकों बाद यह सीधा, सरल और सहज सवाल तो उठता ही है कि आखिर इतने सालों में हमने क्या हासिल किया? हम कहां पहुंचे? इस सवाल का कई...
76 वें स्वतंत्रता दिवस पर विशेष
हमारी आजादी के संघर्ष का अहम पडाव ’1942 का Quit India Movement ‘भारत छोडो’ आंदोलन भी रहा है। इस आन्दोलन से उत्पन्न चेतना के परिणामस्वरूप ही 1946 में जलसेना (नेवी) का विद्रोह हुआ,...
सवाल सिर्फ़ तत्कालीन हुकूमतों का ही नहीं है ! नागरिकों की एक बड़ी आबादी भी कुछ तो व्यवस्था-जनित कारणों और कुछ निजी तनावों के चलते गहरे अवसाद और मानसिक बीमारियों की शिकार होती जा रही है। समाज में अपराध...
इस दुनिया में प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक मनुष्य की कहानी ख़यालात बदलने से हालात बदलने की अंतहीन कहानी है। ख़यालात से हालात बदलते ही रहेंगे यह हमारी दुनिया या जिन्दगी का सत्य है। हमारे ख़यालातों से ही...
राजस्थान हमारे देश में पशुपालन के लिए जाना जाता है, लेकिन आजकल इसी पशुपालन के लिए सबसे जरूरी चारागाहों को लेकर भारी बवाल मचा है। एक तरफ, जमीन की लगातार बढ़ती ‘भूख’ है तो दूसरी तरफ, दुधारू, खेतिहर पशुओं...
आज फिर चुनावी राजनीति में गरीब और खास तौर से गरीबों की संख्या मुद्दा बनती जा रही है और संभव है काफी सारे मुद्दे हवा में उछालकर टेस्ट कर चुकी मोदी सरकार को अपनी यह ‘उपलब्धि’ चुनाव जिताने लायक...