यह शर्मनाक है कि आजादी की तीन चौथाई सदी गुजर जाने के बाद भी हमारी आधी आबादी को साफ-सुथरे शौचालय तक नसीब नहीं हैं। यह बदहाली सार्वजनिक स्थलों पर इतनी तकलीफदेह हो जाती है कि मुम्बई के एक एनजीओ...
महाराष्‍ट्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के सुदूर इलाकों से आई भीड की हिंसा की ताजा खबरों ने सभी को बेचैन कर दिया है। बे-वजह और आमतौर पर कमजोरों पर होने वाली ये घटनाएं मॉब-लिंचिंग सरीखी वीभत्‍सता में भी तब्‍दील...
कोल्‍हापुर 27 जून। कोल्हापुर में राजर्षि शाहू छत्रपति मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा  राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज की जयंती (26 जून) के अवसर महाराष्‍ट्र के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अभय बंग एवं डॉ. रानी बंग दंपति को प्रतिष्ठित 'राजर्षि शाहू पुरस्कार' Rajarshi...
जातियों और धर्मों में विभाजित हमारे समाज का एक बडा संकट, एक-दूसरे की अज्ञानता से उपजी हिंसक असहमतियां भी हैं। कतिपय राजनीतिक जमातें इसी अज्ञानता का लाभ लेकर लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भडकाती रहती हैं। मसलन - मध्यकालीन...
महिलाओं के लिए संपत्ति का अधिकार उन्हें केवल पूंजी या वस्तुओं पर मिलकियत भर नहीं देता, बल्कि उनमें एक आत्मविश्वास भी जगाता है। जाहिर है, हमारा मौजूदा सामाजिक ताना-बाना आत्मविश्वास से लबरेज महिला को मंजूर नहीं कर सकता। नतीजे...
कोरोना के बाद विश्‍व को टिकाने का रास्ता प्रकृति अनुकूलन ही है। प्रकृति के विपरीत समाजवाद में भी पूंजी की परिभाषा अच्छी नहीं थी, इसलिए पूंजीवाद और समाजवाद दोनों में ही प्राकृतिक आस्था नहीं है और प्राकृतिक संरक्षण सिमटा है। जब भी विश्‍व में प्रकृति के विपरीत ही सब काम होने लगे तो प्रकृति का बडा हुआ क्रोध महाविस्फोट बनता है और उससे प्राकृतिक आपदाएं निर्मित होती है। कोरोना को आपदा भी मान सकते है। महामारी केा प्रलय भी कहा जा सकता है। भारत इस महामारी से अपने परंपरागत ज्ञान आयुर्वेद द्वारा बहुत से कोरोना प्रभावितों को स्वस्थ बना सका है। बहुत लोगों के प्राण बचे है। इस आधुनिक आर्थिक तंत्र ने आयुर्वेद जैसी आरोग्य रक्षण पद्धति को सफल बनने का मौका ही नहीं दिया गया। उसने आर्थिक लाभ के लिए केवल चिकित्सा तंत्र को ही बढावा है।
‘नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो’ हर साल औरतों पर अपराधों की रिपोर्ट जारी करता है, लेकिन इससे प्रेरित होकर कोई कार्रवाई होती नहीं दिखती। विचित्र यह है कि औरतों पर होने वाले अपराधों में उत्तर भारत के राज्य हर...
स्‍मृति शेष गांधीवादी और वन अधिकार कार्यकर्ता मोहन हीराबाई हीरालाल का 23 जनवरी 25 को नागपुर के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे गढ़चिरौली जिले के लेखा-मेंढा गांव में 'मावा नाटे मावा राज' आंदोलन के स्तंभ थे। गांधी-विनोबा...
बच्चों के विरूद्ध अपराधों के मामलों में कानूनी प्रावधान अत्यावश्याक है। लेकिन कानून के साथ ही सामाजिक जागरूकता भी अत्यावश्यक है। इसे कानून के साथ ही सामाजिक समस्या अधिक माना जाना चाहिए। इस हेतु सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है...
अब तक जीवन-पद्धति से उपजी मानी जाने वाली बीमारी डायबिटीज या मधुमेह अब छोटे बच्चों में भी अपने पैर पसारने लगी है। जाहिर है, यह परिस्थिति सरकार, समाज और परिवार, सभी के सरोकार की है। अपने पास-पडौस के किसी...

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