निमिषा सिंह
देश की आबादी में अनुसूचित जनजाति के लोगों की तादाद 8.6% है, लेकिन विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित होने वाले लोगों की कुल संख्या में अनुसूचित जनजाति के लोगों की तादाद 40 प्रतिशत है। जाहिर है, जनजातीय लोगों को जो भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची से आच्छादित हैं, भूमि-अधिग्रहण, विस्थापन...
आज के खाऊ-उडाऊ विकास के सामने कई लोग अपनी परम्पराओं, पद्धतियों को लेकर निष्ठा से डटे हैं। उनमें से एक देबजीत सरंगी भी थे। पिछली मई में करीब 54 साल की उम्र में उनका सदा के लिए विदा होना...
हाल में घोषित झारखंड विधानसभा चुनावों की 13 और 20 नवंबर की तारीखों ने अब तक कछुआ चाल से ठुमक रहे ‘पेसा कानून’ को फिर से हवा दे दी है। करीब तीन दशक पहले संसद में पारित आदिवासियों के...
पिछले कुछ सालों से आदिवासियों, वन-निवासियों की एकजुटता, संघर्ष और लगातार बढ़ती ताकत के चलते उनके हित में अनेक कानून बने हैं, सरकारें भी उन्हें संरक्षण देने की घोषणाएं करती रहती हैं, लेकिन क्या सचमुच इन प्रयासों से आदिवासियों...
देश-भर के आंदोलनों ने की मांग
देश के अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय नदी घाटी मंच द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में केंद्र और राज्य सरकारों की विकास संबंधित...
अभी, चार-साढ़े चार सौ साल पहले तक देश के कई इलाकों में राज करने वाले आदिवासी आज ‘अनुसूचित जनजाति’ के सरकारी खांचे में कैसे सिमट गए हैं? क्या उन्हें कोशिश करके कमजोर बनाया गया है? क्या हमारे देश के...
भारत में घुमंतू, अर्ध-घुमंतू और गैर-अधिसूचित जनजातियों के संरक्षण और भविष्य की योजनाओँ पर विचार विमर्श की प्रक्रिया चल रही है। गैर-अधिसूचित जनजातियों, घुमंतू जनजातियों और अर्ध-घुमंतू जनजातियों को भी गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे समुदायों...
आजादी के पचहत्तार साल में वन अधिकार पर अब जाकर कुछ बातें हो रही हैं और परंपरागत वनवासियों को कहीं-कहीं पट्टे दिए भी जा रहे हैं, लेकिन कुछ आदिवासी इलाके ऐसे हैं जहां जंगल को बचाने का विवेक...
नियामगिरी सुरक्षा समिति के आदिवासी नेताओं और समर्थकों के खिलाफ़ यू.ए.पी.ए - एफ.आई.आर और बेबुनियाद आरोप खारिज करने की मांग
मुंबई, 22 अगस्त। देशभर के 20 राष्ट्रीय नेटवर्क / संगठनों, 40 जन संगठनों और 350 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं,...
करीब सवा चार दशक पहले, जब पर्यावरण दुनिया के सामने एक आसन्न संकट की तरह उभर रहा था, भारत में ‘वन (संरक्षण) अधिनियम-1980’ बनाया गया था। अब विकास की बगटूट भागती अंधी दौड़ के सामने पर्यावरण ओझल होता...