किसानों, आदिवासियों और खेती से जुडे अनेक लोगों के लिए आजकल विकास का मतलब उनके प्राकृतिक संसाधनों, खासकर जमीन की लूट हो गया है। आदिवासी राज्य झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। झारखंड के एक इलाके में जमीन की...
स्थानीय ज्ञान, पडौस के संसाधन और समाज की देसी बनक के आधार पर विकास योजनाओं को रचा जाए तो नतीजा क्या, कैसा हो सकता है? इसे जानने के लिए भील आदिवासियों की ‘वागधारा’ जैसी संस्थाओं के काम पर नजर...
5 जून को भोपाल में प्रदेशव्यापी प्रदर्शन होगा
भोपाल, 28 मार्च। एकता परिषद सहित विभिन्न जनसंगठनों ने आज भोपाल में ‘‘पंच ज’’-जल, जंगल, जमीन, जन और जानवर-के संरक्षण, संवर्धन और आजीविका विषय को लेकर प्रदेश भर के आदिवासियों के साथ...
अंतिम व्यक्ति को न्याय दिलाने का माडल छत्तीसगढ़ सरकार पेश करे- राजगोपाल पी. व्ही.
धमतरी। पूरे प्रदेश से आये आदिवासियों ने वनाधिकार, पेसा और पोषण सुरक्षा की प्रमुख मांगों के साथ जंगल सत्याग्रह के सौंवे वर्ष पर आयोजित जनसभा का...
चाहे विधानसभाओं, संसद के चुनाव हों या जगह-जगह जारी समाजसेवा,नक्सलवाद हो या मौजूदा विकास की परियोजनाएं,आदिवासियों के बिना किसी की कोई दाल नहीं गलती। दूसरी तरफ,वे ही आदिवासी सर्वाधिक बदहाली भी भोगते हैं। देशभर में करीब आठ फीसदी आबादी...
आज सत्ता प्रतिष्ठान बिरसा मुंडा का नाम लेते हैं परन्तु यही सत्ता विकास के नाम पर लाखों आदिवासियों को उनके जल-जंगल-जमीन से बेदखल कर विस्थापित कर दिया है। विस्थापन की त्रासदी ऐसी की शहर के झुग्गी झोपड़ी में रहकर...
संसद में अपने पारित होने के करीब 26 साल बाद मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटैल ने ‘पंचायत उपबंध (अधिसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम – 1996’ यानि ‘पेसा’ को लागू करने के लिए संबंधित विभागों की सहमति मांगी है। जैसा...
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में सन 1987 से भील और भिलाला समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता नीलेश देसाई को वर्ष 2022 के लिए प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। नीलेश को...
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राजधानी दिल्ली से लगे नोएडा इलाके में दो बहुमंजिला इमारतों को हाल में ढहाया गया है। वजह है, इन इमारतों का भ्रष्ट तरीकों से अवैध निर्माण। एक विशालकाय इमारत की देश में पहली बार...
संविधान में आदिवासियों को मिले विशेष दर्जे को आमतौर पर अनदेखा किया जाता रहा है। मसलन – राज्यपालों को अनुसूचित क्षेत्रों में विशेषाधिकार दिए गए हैं, ताकि वे आदिवासियों की विशिष्ट जीवन पद्धतियों, खान-पान और भाषा आदि को देखते...