कोल्हापुर 27 जून। कोल्हापुर में राजर्षि शाहू छत्रपति मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज की जयंती (26 जून) के अवसर महाराष्ट्र के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अभय बंग एवं डॉ. रानी बंग दंपति को प्रतिष्ठित ‘राजर्षि शाहू पुरस्कार’ Rajarshi Shahu Puraskar से सम्मानित किया गया। हर वर्ष पर विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्ति को ‘राजर्षि शाहू पुरस्कार’ से सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार में एक लाख रुपये नकद, एक स्मृति चिन्ह और प्रशंसा प्रमाण पत्र शामिल है।
उल्लेखनीय है कि डॉ. अभय बंग और डॉ. रानी बंग सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल community health care के क्षेत्र में अग्रणी हैं। उन्होंने आदिवासी जिले गढ़चिरौली में एक स्वैच्छिक संगठन सर्च (SEARCH) की स्थापना की और उन्हें स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने के लिए भारत के सबसे अविकसित और सबसे गरीब क्षेत्रों में से एक में आदिवासी लोगों के बीच रहकर और काम करते हुए लगभग चार दशक बिताए हैं।
इसके पूर्व ‘राजर्षि शाहू पुरस्कार’ चित्रा तपस्वी, वी शांताराम, कविवर्य कुसुमाग्रज, प्रो. एन. डी. पाटिल, शरद पवार, वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ माशेलकर, गायिका आशा भोसले, जयमाला शिलेदार, गणपतराव अंडालकर, अन्ना हजारे, तात्या राव लहाने आदि को प्रदान किया गया है।
कौन है डॉ. बंग दम्पति?
बंग दंपत्ति ने अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में सार्वजनिक स्वास्थ्य में मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद 1986 में भारत लौटने का फैसला किया। डॉक्टर दंपत्ति चिकित्सा का अभ्यास करने के लिए दुनिया में कहीं भी जा सकते थे, लेकिन उन्होंने भारत के सबसे गरीब जिलों में से एक महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के ग्रामीण और आदिवासी इलाके में काम करना चुना। उन्होंने सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ (SEARCH) की स्थापना की।
अपनी चिकित्सा शिक्षा के दौरान, उन्होंने विश्वविद्यालय और भारत में प्रथम स्थान, चार स्वर्ण पदक और मानद डी.एससी., डी.लिट. की उपाधि प्राप्त की। ग्रामीण स्वास्थ्य, बाल स्वास्थ्य, महिला स्वास्थ्य पर 38 शोध पत्र विभिन्न प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं जिनमें ‘द लैंसेट’ जैसी वैश्विक ख्याति की शोध पत्रिकाएँ भी शामिल हैं। इसके अलावा, ‘माई रियल हार्ट डिजीज’, ‘कौली पांगल’, ‘सेवाग्राम टू शोधग्राम’, डॉ. रानी बंग की ‘गोइन’, ‘कनोसा’ आदि पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं।
डॉ. अभय बंग एवं डॉ. रानी बंग को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 80 पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। अपने काम के लिए, उन्हें भारत सरकार से ‘पदमश्री पुरस्कार’ (2018) और दो अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार (2008), ‘महाराष्ट्र भूषण’ (2005), ‘भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईसीएमआर), साहित्यिक पुरस्कार’ प्राप्त हुए हैं। पुस्तक ‘गोइन’, और ‘आदिवासी सेवक’, और मुक्तिपाद एडिक्शन सेंटर को आदिवासियों के सामाजिक स्वास्थ्य पर शोध के लिए महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार मिला है। टाइम पत्रिका द्वारा ग्लोबल हेल्थ हीरोज के अलावा उन्हें चार मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
अभय बंग के मुताबिक, ‘सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि ग्रामीण इलाकों में बच्चों और नवजात शिशुओं की देखभाल कैसे की जाए। उस समय गढ़चिरौली में कुछ ही डॉक्टर थे और उनमें से कोई भी ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा नहीं दे रहा था। इसलिए हमने सोचा कि गांव के शिक्षित पुरुष और महिलाएं ही सबसे अच्छा समाधान होंगे। हमने उन्हें ‘आरोग्य दूत’ नाम दिया। हमने प्रत्येक गांव से एक पुरुष और एक महिला का चयन किया और उन्हें निमोनिया के मामले में मौखिक एंटीबायोटिक्स देकर बीमार बच्चे की जांच, निदान और देखभाल करने के लिए प्रशिक्षित किया। बंग दंपति के हस्तक्षेप के कारण प्रयोगात्मक 39 गांवों में बाल मृत्यु दर में भारी गिरावट आई, जो 2003 में भारत के आंकड़ों के बराबर पहुंच गई। आरोग्यदूतों के माध्यम से एचबीएनसीसी के इस मॉडल को बाद में भारत सरकार द्वारा आशा कार्यक्रम के रूप में स्वीकार और कार्यान्वित किया गया, जिसमें सभी भारतीय राज्यों में 10 लाख कर्मचारी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता के रूप में कार्यरत है।
डॉ. रानी और डॉ. अभय बंग उच्च रक्तचाप/स्ट्रोक जैसी गैर-संचारी बीमारियों पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं और जिले में शराब की लत पर भी काम कर रहे हैं। लोगों के स्वास्थ्य और जेब पर तंबाकू और शराब के भारी बोझ को कम करने के लिए 2015 में ‘शराब और तंबाकू मुक्त गढ़चिरौली’ के लिए जिला कार्यक्रम शुरू किया गया था।
डॉ. अभय बंग (जन्म 1950) का पालन-पोषण महात्मा गांधी के आश्रम में सेवाग्राम, वर्धा के पवित्र वातावरण में हुआ था। उनके पिता ठाकुरदास बंग एक स्वतंत्रता सेनानी एवं सर्वोदय आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में से एक थे, जबकि उनकी मां गांधीजी द्वारा शुरू किए गए स्कूल की प्राचार्य थीं। अपने युवा दिनों में उन्होंने सेवा, स्वराज, आत्म-निर्भरता और समाज के भीतर ही भारत की समस्याओं का समाधान खोजने के आदर्शों को आत्मसात किया। डॉ. रानी चंद्रपुर से आती हैं। उन्होंने नागपुर में एक साथ मेडिकल की पढ़ाई की।
आदिवासियों के लिए सर्च का मां दंतेश्वरी अस्पताल आज गढ़चिरौली के जंगल में स्थित ‘शोधग्राम’ परिसर में शीर्ष पायदान की चिकित्सा देखभाल का एक नखलिस्तान है, जहां दंपति ने आधार स्थापित करने का फैसला किया।
डॉ. बंग ने ग्रामीण भारत में लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और जनजातीय लोगों के जीवन में उल्लेखनीय योगदान दिया है। भारत सरकार ने डॉ. अभय बंग की अध्यक्षता में जनजातीय स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय विशेषज्ञ समिति नियुक्त की, जिसने भारत में 11 करोड़ जनजातीय लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल का एक रोड मैप तैयार किया है।
इसके अलावा, सर्च ने किशोरों के बीच प्रजनन और यौन स्वास्थ्य पर ‘तरुण्यभन’ नामक एक युवा चेतना कार्यक्रम शुरू किया है, और युवाओं को जीवन में एक उद्देश्य खोजने में मदद करने के लिए एक नेतृत्व विकास निर्माण कार्यक्रम शुरू किया है।
समाज की सेवा की गौरवशाली पारिवारिक परंपरा को जारी रखते हुए उनके दो बेटे डॉ. आनंद और अमृत तथा बहू डॉ. आरती गढ़चिरौली में सामुदायिक सेवा कार्य में शामिल हो गए हैं और अपने मिशन को जारी रखे हैं।
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