बहुत सीमित संसाधनों में भी जीवन निर्वाह हो सकता है, यह भाई जी से सीखा जा सकता है। दो खादी के झोलों में दो जोड़ कपड़े, एक टाइपराइटर, डायरी, कुछ किताबें, कागज और पोस्टकार्ड यही उनका घर था। हमेशा हाफ पैंट और खादी की शर्ट उनकी पोशाक थी, जो उनकी खास पहचान बन गयी थी।समय प्रबंधन और यात्रा के दौरान समय का बेहतर उपयोग भी भाईजी के व्यक्तित्व की विशेषता रही हैं।
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक डॉ. एस.एन.सुब्बाराव के अवसान से गांधीवाद का एक प्रमुख स्तम्भ ढह गया, देश विदेश के लाखों युवा उन्हें प्यार से भाई जी कहते थे। आपके पूर्वज तमिलनाडु से सेलम आए थे, इसी कारण उनका पूरा नाम सलेम नंजुंदइयाह सुब्बाराव प्रसिद्ध हुआ। तरुणाई के दिनों में महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण आपको 13 वर्ष की आयु में जेल यात्रा भी करना पड़ी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद आपका सारा जीवन युवाओं को राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति, सर्व धर्म समभाव और राष्ट्र निर्माण में जोड़ने मे बीता। भाई जी की आवाज़ में जादू था, वे कई भाषाओं में प्रेरक गीत गाते थे, उनके द्वारा गाया गया बहुभाषी अंतर – भारती गीत राष्ट्रीय एकता का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
भाई जी का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक सक्रियता का पर्याय था, जीवन में थकना और रुकना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था। राष्ट्रीय युवा योजना के माध्यम से भाई जी ने देश के हर प्रांत में युवाओं के लिए शिविर लगाए। देश-विदेश में युवा शिविरों में उनकी उपस्थिति से भारतीय जीवन मूल्य, स्वतन्त्रता संग्राम और गांधी दर्शन की त्रिवेणी धारा निरंतर प्रवाहमान रहती थी। जिन लोगो को भाई जी से मिलने का या उनका भाषण सुनने का अवसर मिला है वे जानते हैं कि भाई जी से मिलना, चर्चा करना या भाषण सुनना नए अनुभव के दौर से गुजरना होता था। संक्षेप में कहे तो गांधी युग और उनके संदर्भ भाई जी की चर्चा के मुख्य विषय होते थे।
सुब्बाराव जी का कोई स्थायी निवास नहीं था, ज़्यादातर समय वे प्रवास में रहते थे। बहुत सीमित संसाधनों में भी जीवन निर्वाह हो सकता है, यह भाई जी से सीखा जा सकता है। दो खादी के झोलों में दो जोड़ कपड़े, एक टाइपराइटर, डायरी, कुछ किताबें, कागज और पोस्टकार्ड यही उनका घर था। हमेशा हाफ पैंट और खादी की शर्ट उनकी पोशाक थी, जो उनकी खास पहचान बन गयी थी।समय प्रबंधन और यात्रा के दौरान समय का बेहतर उपयोग भी भाईजी के व्यक्तित्व की विशेषता रही हैं।
भाई जी की चंबल घाटी में डाकुओं के आत्मसमर्पण में प्रमुख भूमिका रही हैं। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चंबल घाटी दस्यु समस्या के कारण चर्चा में थी। ऐसी परिस्थितियों में चंबल घाटी में सुब्बाराव जी शांति स्थापना को लेकर विश्वास व आशा की किरण के रूप में अवतरित हुए और उनके गांधीवादी प्रयासों का ही असर हुआ जो बागी आत्मसमर्पण की ऐतिहासिक घटना के रूप में विश्व के सामने आया। महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना उस समय की तात्कालिक हिंसाग्रस्त चंबल घाटी में शांति स्थापित करने के लिए हुई और बाद में गांधीवादी सिद्धांतों के माध्यम से गरीब और वंचित समुदाय के जीवन में खुशहाली लाने के लिए अनेकों गतिविधियों की शुरुआत हुई।
वर्तमान में महात्मा गांधी सेवा आश्रम अपने कार्यों और गतिविधियों को समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए समर्पित है। खादी ग्रामोद्योग, वंचित समुदाय के बच्चों विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा, शोषित व वंचित समुदाय के बीच जनजागृति व प्राकृतिक संसाधनों पर वंचितों के अधिकार, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण, युवाओं के विकास में सहभागिता के लिए नेतृत्व विकास, महिला सशक्तिकरण, गरीबों की ताकत से गरीबोंमुखी नियमों के निर्माण की पहल आदि के माध्यम से समाज में शांति स्थापना करने के लिए कृत संकल्पित हैं।
युवाशक्ति में भाईजी का गहरा विश्वास था, इसलिए सुब्बाराव जी का पूरा जीवन युवाशक्ति के लिए समर्पित रहा। युवाओं के लिए उनका कहना था कि चौबीस घंटे की दिनचर्या में हर व्यक्ति को एक घंटे का समय अपनी देह के लिए और एक घंटे का समय अपने देश के लिए खर्च करना चाहिए। व्यक्तिगत समय में एक घंटे में स्वास्थ्य के लिए योग, व्यायाम आदि और देश के लिए एक घंटे के समय में पौधारोपण, साक्षरता और स्वच्छता जैसे राष्ट्रीय पहल के कामों में लगाएंगे तो स्वयं के साथ ही देश की तस्वीर भी बदलेगी।
भाईजी का मानना था कि हमे नदियों को बचाना हैं तो इन्हे युवाओं के हाथों में सौंप देना चाहिए। वे श्रमदान शब्द के इस्तेमाल को गलत मानते थे, उनका कहना था कि हम इसे श्रमसंस्कार कहेंगे तो बच्चों में शुरू से ही श्रम करने का संस्कार आएगा। दान से संस्कार ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, इसलिए वे श्रमदान नहीं श्रमसंस्कार शब्द के पक्षधर थे।
आज से पांच दशक पहले मुझे भाईजी के प्रथम दर्शन का अवसर मिला था। गांधी शताब्दी वर्ष के दौरान गांधी दर्शन ट्रेन को लेकर भाईजी ने पूरे देश का दौरा किया था, तब मैं खाचरौद के विक्रम उ.मा.वि. में नवीं कक्षा में पढ़ रहा था, खाचरौद के वरिष्ठ गांधीवादी कार्यकर्ता रामचन्द्र नवाल ने मुझे भाईजी से मिलवाया था। भाईजी की आत्मीयता और स्नेहपूर्ण आशीर्वाद का मेरे जीवन को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं। मुझ जैसे लाखों तरुणों के जीवन में नया उत्साह और जोश भरकर समाजसेवा के लिए समय देने का संकल्प कराने में भाईजी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
युवा जगत में भाईजी सर्वाधिक लोकप्रिय नाम हैं। भाईजी का आभामंडल इतना विस्तृत था कि उसने देश और काल की सीमा के बंधनों को तोड़कर युवाओं की कई पीढ़ियों को प्रभावित किया। युवा शिविरों में भाईजी के मार्गदर्शन में मुझे रचनात्मक कार्य करने का जो विशिष्ट अनुभव और गौरव मिला उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं हैं।
आज भाईजी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके कार्य और विचार आने वाली अनेक शताब्दियों तक नयी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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