रघु ठाकुर
23 मार्च डॉक्टर राम मनोहर लोहिया का जन्म दिवस है । डॉक्टर लोहिया का सारा जीवन संघर्षों का और मौलिक विचारों को देने का इतिहास है। जर्मनी से पढ़कर आने के बाद वे महात्मा गांधी की अगुवाई में आजादी के आंदोलन में शामिल हुए और 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद डॉक्टर लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने ही भूमिगत रहकर आंदोलन की कमान संभाली थी और लगातार लगभग ढाई वर्ष अपनी गिरफ्तारी होने तक देश की जनता और नौजवानों को आंदोलन के लिए प्रेरित करते रहे।
डॉक्टर लोहिया एक मौलिक विचारक थे, जिन्होंने अपने जीवन के कालखंड के बहुत आगे का विचार किया था। उनकी मृत्यु के बाद उनके आजादी के आंदोलन और समाजवादी आंदोलन के सहकर्मी लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि लोहिया बहुत आगे तक का सोचते थे इसलिए कई बार देश के लोग उन्हें समझ नहीं सके। लोहिया स्वत: भी जानते थे कि वे जो विचार दे रहे हैं वह 50 से 100 वर्ष बाद के लिए हैं और उन्हें विश्वास था कि भले ही उस समय का समाज उनके विचारों को समझ ना पा रहा हो परंतु किसी न किसी दिन समझेगा जरूर और इसलिए उन्होंने खुद यह कहा था कि लोग मेरी बात सुनेंगे शायद मेरे मरने के बाद पर सुनेंगे जरूर ।
12 अक्टूबर 1967 को 57 वर्ष की अल्पायु में उनके निधन के आज लगभग 67 वर्षों के बाद लोहिया के विचारों की गूंज फिर सुनाई पड़ने लगी है। बौद्धिक जगत विश्वविद्यालय में और दुनिया भर के विभिन्न देशों में लोहिया की चर्चा हो रही है। लोहिया शताब्दी वर्ष में भारत में व दुनिया के अनेक देशों के विश्वविद्यालय में लोहिया साहित्य और विचारों पर चर्चा हुई है।
डॉक्टर लोहिया ने अपने जीवन काल में सात क्रांतियां को दुनिया में परिवर्तन के लिए जरूरी बताया था। उन्हें सप्त क्रांति कहा जाता है। इन सप्त क्रांतियां में दुनिया में प्रचलित सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त करने का लक्ष्य था आर्थिक, सामाजिक असमानता, राजनीतिक असमानता, रंगभेद की समाप्ति, निशस्त्रीकरण, लैंगिक असमानता युद्ध की समाप्ति आदि इसमें शामिल थे। लोहिया अपने आप को विश्व नागरिक मानते थे और चाहते थे कि समूची दुनिया के 18 वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों द्वारा निर्वाचित विश्व संसद बने। आज दुनिया यह समस्याओं से जूझ रही है और जल रही है युद्ध का क्षेत्र बनी हुई है और हथियार के धुएं से और मनुष्यों की लाशों से दुनिया पट रही है इन सब का हाल विश्व सांसद ही हो सकता है आज की दुनिया में सीमंती आतंकवाद, धार्मिक आतंकवाद, नक्सली आतंकवाद जैसे अनेकों आतंकवादों से दुनिया प्रभावित वीपीएनआईटी है रूस यूक्रेन युद्ध को लगभग दो वर्ष होने को हैं इसराइल ने हमास को नष्ट करने के उद्देश्य से लगभग पूरी गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया है। अमेरिका ईरान के बीच छत में युद्ध चल रहा है किसी भी दिन खुलकर युद्ध में तब्दील हो सकता है इसकी आशंका बनी हुई है। भारत अफगानिस्तान के बीच पाक अधिकृत कश्मीर समस्या है। 1959 से तिब्बत पर चीन का कब्जा है। दलाई लामा व उनके हजारों अन्य निर्वाचित होकर जीवन बिता रहे। भारत की हजारों किलोमीटर भूमि पर चीन का कब्जा है। ऐसे ही दुनिया में सीमा विवाद युद्ध के लिए तनाव के कारण बने हुए हैं। निवार के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद अफगानिस्तान की तबाही छिपी हुई नहीं है। ईरान व इराक के युद्ध में हुई कई लाख मौतें युद्ध की भविष्यका को प्रमाणित करती हैं। समूची दुनिया में घुसपैठ की समस्या बढ़ रही है, जो कि भयावह तनाव अहिंसा का कारण बन रही है। पोलैंड की सीमा से हजारों लोग अमेरिका की सीमा में प्रवेश के लिए बर्फ में पड़े मार रहे हैं। वे अमेरिका में बसाना चाहते हैं क्यों और अमेरिका बेसन की स्थिति में नहीं है। म्यांमार से रोहिंग्या पलायन के लिए विवश किया जा रहे हैं। बेबी अन्य देशों में घुसपैठ या बनाकर घोषणा चाह रहे हैं। बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत की सीमा में प्रवेश कर रहे हैं। यह बड़ी समस्या है। इन सब का हाल डॉक्टर राम मनोहर लोहिया की विश्व सांसद के बनने से ही निकाल सकता है। हम प्रयास करेंगे कि समूचे देश में आगामी 23 मार्च को सभा विमर्श वह अन्य माध्यमों से संयुक्त राष्ट्र के सचिव को ज्ञापन भेजा जाए और हम अपील करेंगे की 23 मार्च को संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व सांसद दिवस घोषित करें। इस घोषणा में एक विचार पैदा होगा और लोग उसे और देखना विचार व चर्चा शुरू करेंगे। शिक्षित और प्रबुद्ध समाज का ध्यान आकर्षित होगा। हम प्रधानमंत्रीजी से भी अनुरोध करेंगे कि लोहिया की विश्व संसद की कल्पना भारत के प्राचीन सिद्धांत व संस्कृति को नया आयाम दे सकती है। वसुदेव कुटुंबकम भारतीय सभ्यता का शाश्वत मूल्य है। आज की दुनिया में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विश्व सांसद महत्वपूर्ण उपाय हो सकता है।
अगर एक दुनिया बनेगी तो नेक दुनिया बनेगी डॉक्टर लुधियाना जुलाई 1950 में एक लेख लिखा था- तीसरा खेमा विश्व परिपेक्ष में। दरअसल लोहिया ने 1947 से ही विश्व संसद की चर्चा शुरू कर दी थी और दुनिया में जहां-जहां भी उनके संपर्क के लोग थे उनके साथ विश्व संसद की कल्पना पर काम करने के लिए वह पहल करने लगे थे उनका यह लेख भी उसी का एक हिस्सा है, उसे लेकर कुछ अंश मैं यहां दे रहा हूं ।
भारत आज कितना ही गिरा हो उसकी 6000 साल और उससे भी अधिक पुरानी संस्कृति में कुछ बात तो है जो और संस्कृतियों और धर्म की रही लेकिन जिसे यहां अधिक पूर्णता मिली। विवेक के प्रकाश में सहानुभूति की कोमलता ज्ञान तब तक अधूरा है, जब तक सारे विश्व और उसकी प्रत्येक वस्तु के साथ तादात्म्य का अनुभव न हो ।मैं नहीं जानता की सहानुभूति की इस भावना को समाजवाद और वर्ग संघर्ष से कैसे जोड़ा जाए ।अगर ऐसा हो कि अन्याय को देखकर आंखों में सहानुभूति के आंसू और क्रोध की लाली एक साथ प्रकट हो तो भारत के समाजवाद ने सारे विश्व के लिए एक चमत्कार प्राप्त कर लिया होगा ।
विश्व सरकार का आंदोलन प्रगति पर है निश्चय ही इसमें कई धुँधलके और दरारें हैं। लेकिन इसका मुख्य विचार की सारे विश्व के लिए एक सर्वोच्च संस्था हो लोगों के दिलों में जगह बना रहा है कुछ लोगों को विश्व सरकार का विचार आज अयथार्थ और अव्यावहारिक लगता है । इसके बजाए वे क्षेत्रीय एकताओं के लिए काम करना बेहतर मानते हैं जैसे पश्चिमी यूरोप की सरकार ,एशिया की सरकार आदि। इसके साथ ही कई लोगों का विचार है कि एक आर्थिक विश्व के बिना एक राजनीतिक विश्व असंभव है। जबकि कुछ लोग विश्व सरकार को शुद्ध राजनीतिक स्तर तक ही रखना चाहते हैं। विश्व संघीय सरकार के लिए विश्व आंदोलन एक संगठन है, जिसका उद्देश्य है विश्व सरकार के लिए काम करने वाले सभी ग्रुपों और शक्तियों को इकट्ठा करना। इसका काम आसान नहीं है। कमजोरी और फूट इसके दो दोष हैं।
सभी वर्तमान अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं राष्ट्रों के बीच झगड़ों और षडयंत्रों के वितरण केंद्र हैं , इसलिए विश्व सरकार कि किसी भी गतिविधियों को इन संस्थाओं से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ को किसी ऐसे काम में मदद पहुंचाना जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंदिता में भाग लेना ना हो अलग बात है। लेकिन विश्व सरकार के आंदोलन को बिल्कुल नए सिरे से काम शुरू करना होगा और उसके लक्ष्य को संयुक्त राष्ट्र चार्टर में सुधार से गडमगड नहीं किया जाना चाहिए। इसका लक्ष्य होना चाहिए विश्व के सभी वयस्क नागरिकों द्वारा चुनी गई प्रतिनिधि सभा बुलाना।
राष्ट्रीय रूप से जिम्मेदार व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय रूप से गैर जिम्मेदार होते हैं और जो अंतरराष्ट्रीय रूप से जिम्मेदार हैं उनके पास अपने राष्ट्र में कोई जिम्मेदारी नहीं होती। जो लोग राष्ट्र में महत्वपूर्ण हैं उनके विचार विश्व नेतृत्व के लिए उन्हें आयोग्य बनाते हैं और जो इसके लिए योग्य होते हैं अपने राष्ट्र में महत्वहीन होते हैं। जब तक आंदोलन इस तथ्य को नहीं समझ लेता और विश्व सरकार के मुद्दे को लाखों करोड़ों कष्ट भोगियों तक नहीं ले जाता और उनके जीवन के साथ उसे नहीं जोड़ता तब तक वह दूसरे दर्जे के सांसदों के पीछे भाग कर तथा विख्यात व्यक्तियों तथा मंत्रियों के अर्थहीन संदेशों के आकर्षण में वँधकर कर अपना मजाक ही बनता रहेगा।
अनेक फूटों और दरारों का कारण पीछे उधॄत तार्किक क्रम का विश्वास रहा है । जैसे क्षेत्रीय संघ से विश्वसंघ या विश्व की राजनीतिक एकता से आर्थिक एकता। मैं खेद जनक कालक्रम को तो समझ सकता हूं किंतु तार्किक क्रम मेरी समझ से बाहर है । एक पूर्ण विचार बनाने की कोशिश कोशिश की जाना चाहिए। यद्यपि उसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ेगा।
इस प्रकार की विश्व दृष्टि के लिए महान आस्था की जरूरत होगी । संतुष्ट राष्ट्रों के लिए भूखे राष्ट्रों के साथ राजनीतिक और आर्थिक समानता की बात सोचना भी मुश्किल होगा। लेकिन क्या संतुष्ट राष्ट्र और व्यक्ति इतने विवेकशील होंगे कि इस असमानता को दूर करने के लिए तैयार हो जाएं या यूरोप और अमेरिका को यह बात समझ आएगी कि एशिया – अफ्रीका के निर्माण के बिना लक्ष्य पाना असंभव है तभी विश्व मंच शक्तिशाली बनेगा और विश्व सरकार अस्तित्व में आएगी ।
भारत सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ में इस तरह का प्रस्ताव पास करने के लिए पहल कर सकती है अगर यह पहल सफल ना हो तो उसे सीधे विश्व की विभिन्न सरकारों से बात चलाना चाहिए और जो इसके लिए राजी हो उनसे मिलकर काम शुरू कर देना चाहिए। मुझे यह बात बताने में प्रसन्नता हो रही है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्रों ने इस घोषणा पर दस्तक किए हैं कि वे अपने विश्वविद्यालय को विश्व नगर बताएंगे । कई गांवों ने भी ऐसा किया है यह आंदोलन फैलेगा ।मुझे उम्मीद है की महात्मा गांधी की जन्म भूमि पोरबंदर जल्दी ही मोरिया लाइव (वैश्विक रूप) होगा । मुझे यह बताकर खुशी हो रही है कि विश्व नागरिकता का एक कैलेंडर जल्दी ही खोला जाएगा इसके द्वारा भारत के समाजवादी मुखिया जयप्रकाश नारायण भारत में विश्व के पहले नागरिक बनेंगे शायद यह पहला उदाहरण होगा कि देश का राष्ट्रीय उत्तरदायित्व वाला नेता औपचारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्व वाला बनेगा ।
जब भारत जैसा देश गरीबी में पिस रहा हो और धर्म और जातियों से छिन्न भिन्न हो रहा हो तो दबे हुए भूखे ,भूमिहीन मजदूरों को विश्व नागरिक बनाने की बात हास्यापद लगेगी तथापि विश्व सरकार का यह आंदोलन समाजवाद के आंदोलन से मिलकर वह उत्तेजक यंत्र बनेगा जो दबे हुए लाखों करोड़ों लोगों की नई उम्मीद और कोशिश के लिए ऊपर उठाएगा ।
लोहिया के लेख के यह अंश बताते हैं कि 1950 से ही समाजवादी आंदोलन ने लोहिया के मार्गदर्शन में विश्व संसद व सरकार बनाने के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था, यहां तक की भारत में ही लोहिया की पहल पर विश्व नागरिकता का रजिस्टर तैयार करने का काम शुरू हुआ था। वह लोहिया की मृत्यु के बाद शिथिल हो गया । संयुक्त राष्ट्रसंघ अगर 23 मार्च को विश्व संसद दिवस घोषित करेगा तो समूची दुनिया में फिर से लोहिया का यह विचार तेजी से जन संवाद व जन विमर्श का केंद्र बनेगा और दुनिया विश्व संसद के बारे में सोचने व आगे बढ़ाने को प्रेरित होगी ।इसलिए हम सब मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव से अपील करें कि वह 23 मार्च को विश्व संसद दिवस घोषित करें ।