दिनेश चौधरी

मधुरानी की गायकी के मुरीद लोगों की सूची बहुत लंबी है। इंदिरा गांधी और डॉ जाकिर हुसैन इन्हें खूब सुनते थे। उनके एलबम ‘इंतज़ार’ में दिलीप कुमार ने अपनी आवाज दी है। मुम्बई में जब इसकी रिकॉर्डिंग चल रही थी, मधुरानी को सुनने के लिए जगजीत सिंह स्टूडियो पहुँच जाया करते थे। कैसेट के आवरण में जगजीत की टिप्पणी भी थी। उस्ताद मेहदी हसन तो मधुरानी को सुनने के लिए उनके घर ही पहुँच गए। वे संकोच में थीं कि शहंशाह-ए-ग़ज़ल को क्या ग़ज़ल सुनाई जाए? मेहदी हसन देर तक इसरार करते रहे। आखिरकार जब महफ़िल जमी तो देर तक जमी रही।

फैज़ाबाद ने हिंदुस्तान को दो मल्लिकाए-ग़ज़ल दीं। एक अख्तरी बाई फैजाबादी उर्फ बेगम अख्तर और दूसरी मधुरानी। बेगम अख्तर का नाम तो खूब हुआ पर मधुरानी कुछ कम चर्चा में आईं। मुमकिन है कि आप इस नाम से बहुत या बिल्कुल ही वाकिफ़ न हों। यों मधुरानी की कुल 12-15 गज़लें ही आपको यहाँ-वहाँ ढूँढने पर मिल पायेंगी, पर ये इतनी हैं कि आप इन्हें जिंदगी भर सुन सकते हैं। बगैर किसी उकताहट के, उतने ही आनन्द के साथ!

अपने जीवन में हैदराबाद कुल जमा एक बार जा सका, पर यह जेहन में बस कर रह गया। इस शहर की याद इसलिए नहीं रह गयी कि यहाँ चारमीनार, सालारजंग म्यूजियम या गोलकुंडा का किला देख सका था। इसलिए भी नहीं कि तब यहाँ के रेस्तरां में एक जैसी सफेद प्लेट-प्यालियों में बहुत ही उम्दा चाय पीने को मिलती थी और इनके सामने से गुजरते हुए बिरयानी की खुशबू फैली हुई होती थी। इस शहर को मैं मधुरानी की वजह से याद रखता हूँ, जिनका एक कैसेट मुझे यहाँ से हासिल हो सका था। यह वर्ष 90 के आस-पास की बात होगी। उन दिनों किसी भी बड़े शहर में जाना होता तो अपना एक-सूत्रीय कार्यक्रम यही होता कि गज़लों के कुछ दुर्लभ किस्म के कैसेट जुगाड़ कर लिए जाएँ। इस सिलसिले में कुछ ऐसे नाम हैं जो बहुत प्रचलित नहीं हैं पर उन्हें बार-बार सुनने का मन करता है। इनमें मधुरानी के अलावा पंडित गोविंद प्रसाद जयपुर वाले, उस्ताद हुसैन बख़्श और परवेज मेहदी जैसे नाम शामिल हैं। पंडित गोविंद प्रसाद जयपुर वाले आशा भोसले के गुरु थे। उस्ताद हुसैन बख़्श की गज़लों के मुरीद मेहदी हसन थे और परवेज मेहदी उस्ताद मेहदी हसन के शिष्य थे। पर फिलवक्त बात मधुरानी की हो रही है।

मधुरानी का नाम पहली बार भिलाई में पीनाज मसानी के मुँह से सुना था। वे एक संगीत-समारोह में शिरकत करने के लिए आई हुई थीं। उनके साथ जो तबला-वादक थे, वे कोई वसी साहब थे। कोरबा में चंदन दास के साथ भी आए थे। मैंने उन्हें पहचान लिया। वे प्रसन्न हो गए। जब भी किसी संगीतकार-गवैये की आप तारीफ करें तो रवायत है कि वह अचानक बहुत विनम्र हो बैठता है और कहता है कि, “जी, अभी तो हम सीख रहे हैं।” मैंने अनजाने में वार्तालाप के इस क्रम को उलट दिया और वसी साहब से पूछा, “अभी आप सीख रहे हैं?” इसका बारीक मतलब कुछ और ही निकलता है और यह मुझे बाद में समझ में आया। वे थोड़े असहज हो गए। फिर उन्होंने यह कहकर मामले को संभाल लिया कि, “जी, सीखना तो उम्र भर चलता रहता है।” पीनाज भी थीं। उन्होंने बताया कि उनका सीखना मधुरानी जी से हुआ। पीनाज की गायकी में मधुरानी की स्टाइल दिखती है, पर मधुरानी को सुनने के बाद पीनाज को सुनने का मन नहीं करता।

मधुरानी की गायकी के मुरीद लोगों की सूची बहुत लंबी है। इंदिरा गांधी और डॉ जाकिर हुसैन इन्हें खूब सुनते थे। उनके एलबम ‘इंतज़ार’ में दिलीप कुमार ने अपनी आवाज दी है। मुम्बई में जब इसकी रिकॉर्डिंग चल रही थी, मधुरानी को सुनने के लिए जगजीत सिंह स्टूडियो पहुँच जाया करते थे। कैसेट के आवरण में जगजीत की टिप्पणी भी थी। उस्ताद मेहदी हसन तो मधुरानी को सुनने के लिए उनके घर ही पहुँच गए। वे संकोच में थीं कि शहंशाह-ए-ग़ज़ल को क्या ग़ज़ल सुनाई जाए? मेहदी हसन देर तक इसरार करते रहे। आखिरकार जब महफ़िल जमी तो देर तक जमी रही। मेहदी हसन के बेटे इमरान हसन बताते हैं कि वे अक्सर कहा करते थे कि मधुरानी के माता-पिता ने सच्चे मोती दान किए होंगे, तभी उनके घर में इतनी बड़ी कलाकार ने जन्म लिया।

मधुरानी को संगीत में प्रारंभिक दिलचस्पी उनके चाचा की वजह से हुई जो मशहूर तबलावादक उस्ताद अहमद जान थिरकवा के शिष्य थे। वे खुद उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली खां और अमीर खां साहब की गायकी से बहुत प्रभावित रहीं। ग़ज़ल के मिजाज के अनुसार रागों को चुनना और फिर उन्हें बेहद दिलकश सुरों में ढालना मधुरानी की खासियत रही। सारी कम्पोजिशन खुद उनकी अपनी है। यदि आपको ‘गमन’ फ़िल्म की याद हो तो उसमें एक ग़ज़ल थी, “आपकी याद आती रही रात भर।” इसे नेशनल अवार्ड हासिल हुआ था। इसका संगीत जयदेव ने दिया था और गाया था छाया गांगुली ने। वे इन्हीं मधुरानी की शिष्या थीं।

उस्ताद शायरों के कलाम को भी उन्होंने जिस सरलता और सहजता के साथ गाया है, वह अद्भुत है। फैज की “ये दाग दाग उजाला” उनकी आवाज़ में सुनकर देखें, जिसके लिए दिलीप कुमार कहते हैं कि उनके गले से नूर के फव्वारे फूटते हैं। उन्होंने उस्ताद जौक, दाग, मीर, गालिब, मोमिन, फैज, शकील जैसे शायरों का कलाम चुना है और जिस मधुरता के साथ गाया है, उसे सुनकर लगता है कि उनका नाम मधुरानी कुछ सोचकर ही रखा गया होगा। ग़ज़ल गायन में ऐसी मिठास दुर्लभ है।

एक ग़ज़ल की कड़ी यहाँ दे रहा हूँ। गौर फरमाएं :

याद आता है, सुना था पहले

कोई अपना भी खुदा था पहले

जिस्म बनने में उसे देर लगी

कुछ उजाला-सा हुआ था पहले

शहर तो बाद में वीरान हुआ

अपना घर खाक हुआ था पहले

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दिनेश चौधरी
मध्‍यप्रदेश के जबलपुर शहर से सम्‍बद्ध रंगकर्म व लेखन-कार्य में सक्रिय दिनेश चौधरी ने कई नाटकों की किताब व पुस्तिकाओं का सम्पादन किया है। उन्‍होंने कुछ नाटकों का देश के विभिन्न नगरों में सफल मंचन भी किया है। लेख, फीचर, रपट, संस्मरण, व्यंग्य-आदि देश की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे है। सोशल मीडिया पर शहरनामा जबलपुर, घुमन्तूराम की कहानियाँ की श्रृंखला में अपने लेखन कर्म से विभिन्‍न शख्सियतों, स्‍थानों और फिल्‍मों के बारे में व्‍याख्‍यात्‍मक विश्‍लेषण पढने को मिलता है।

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