स्मृति शेष : श्रध्दांजलि
जगन्नाथ काका नहीं रहे| नर्मदा घाटी का एक और सितारा बुझ गया | सालों से वृध्दत्व को नकारते, कई बार गिरते, फ्रेकचर लेकर भी दौड़ते काका शांत हो गये| उनकी जीवनज्योत हमारे लिए जलती रहेगी जरुर !
जगन्नाथ काका सबसे पहली संस्थापक टीम के सदस्य थे| राजघाट पर 5-6 बुजुर्गो के साथ हमारी बैठकें होने लगी, 1987 में, तब वे भी नियमित हाजिर रहते थे| उनकी नियमितता और अनुशासन तो आखिर तक बना रहा| मीटिंग के बाद वे मुझे मोटरसाईकिल पर बड़वानी पहुंचाते और मैं गायत्री मंदिर में निवास करती| जगन्नाथ काका का ग्राम कुंडीया का घर धीरे -धीरे हमारे लिए खुल गये ।मकानों में से एक बन गया जैसे बोरलाय में, चिखल्दा में, कड़माल में, और अन्य जगहों के घर भी| उसके बाद उनके घर के अंदर के चौपाल पर न जाने कितनी बैठकें हुई, कितने निर्णय लिये गये, सभी कार्यकर्ताओं के नाश्ता–भोजन के साथ| गाय, बैल, भैंसों के साथ अपनी खेती पर पूरा ध्यान केंद्रित करने वाले जगन्नाथ काका घाटी के विनाश के बारे में सबसे चिंतित और उसे ‘विकास’ मानने से इन्कार करने वाले किसान रहे|
जगन्नाथ काका का परिवार और खेती भी बड़ी मात्रा में डूबग्रस्त होकर उन्होंने शासन से एक रुपया तक नहीं लिया| मूलत: आंदोलन के शुरुआत के दौर में वे भाजपा के साथ थे लेकिन अपनी पार्टी का कोई सहयोग न मिल पाने पर, उन्होंने पार्टी को जाहिर इस्तीफा दिया| ख़ास कारण रहा, सुंदरलाल पटवा ने 1990 मार्च में बाबा आमटे के साथ हुए भव्य प्रदर्शन के दौरान दिये लिखित आश्वासन पर, सत्ता में आने के बाद पलट जाना | उसके बाद वे पूर्णत: निर्दलीय रहे और अन्त तक आंदोलनकारी भी!
जगन्नाथ काका ने खेती के बदले नगद राशि का पूरा विरोध किया और खेतीहरों के हर दर्द को, हर समस्या को हर मंच से उठाया| आंदोलन के मुद्दे, रणनीति के बारे में पूरे जानकर और कार्यक्रम में समर्पित रहते थे काका! उन्होंने हर बड़े, लम्बे समय के कार्यक्रम में, चाहे फेरकुवा (गुजरात की सीमा) तक गयी 5000 की पैदल जनविकास यात्रा हो या दिल्ली, मुंबई के धरने – कार्यक्रम, अपनी आयोजन में कुशलता का एहसास दिया| आंदोलन के कार्यालय निर्माण में भी आशीष भाई और अन्यों के साथ जुड़े रहे जगन्नाथ काका|
अपनी पत्नी भूरी काकी को स्कूटर पर लेकर चल पड़ते थे काका 90 साल की उम्र में भी| भूरी काकी भी नाचते गाते, शासन प्रतिवाद करती थी! काका की गंभीरता और कटिबद्धता उनके शासन से संघर्षशील संवाद में प्रभावी साबित होती थी|
जगन्नाथ काका की 21 एकड़ जमीन बांध का जलस्तर पूर्ण उंचाई पर, 138.68 मी. पर, पहुंचते ही डूब गयी | और तो और, करीबन 35 एकड़ जमीन टापू बनने से काका के 2 बेटों के साथ सामायिक परिवार का बड़ा ही नुकसान हुआ | लेकिन उन्होंने स्वयं बोट लगाकर फसल निकालने की कोशिश जारी रखी| शासन के पास भीख नहीं मांगी| मध्यप्रदेश शासन ने खेती के बदले खेती उन्हें पहले 2005 में प्रस्तावित की, जो कि हम जांच करने गये तो पायी, पथराल और घास भी न उंगने वाली! भ्रष्टाचार जांच आयोग के अध्यक्ष न्या. श्रवणशंकर झा ने भी उसकी हकीकत जानी! दूसरी बार खेती प्रस्तावित की, जो काकड की और अतिक्रमित होने से काका ने नकारी| सर्वोच्च अदालत के 8.2.2017 के आदेश के बाद काका को जमीन के बदले शासन 60 लाख रूपये देने को तैयार थी जबकि उनका हक, आदेश के अनुसार कई गुना ज्यादा था इस मुददे पर अधिकार के प्रति सचेत अन्य किसानों के साथ, काका भी डटे रहे| आखिर तक इस मुद्दे पर निर्णय नहीं हुआ, न भाजपा से, न चर्चा करने वाली कांग्रेस शासन से भी!
शासन से एक रुपया न लेते हुए गुजर गये जगन्नाथ काका, स्वाभिमानी, संवेदनशील, स्पष्ट वक्ता और आजन्म युवा की उर्जा रखने वाले आंदोलनकारी जगन्नाथ काका ! उनक देहांत हमारी बेहद क्षति है |
उनका मृत्यु आज के रोज, सरदार सरोवर में पूर्ण जलस्तर तक पानी भर जाने की स्थिति में होना एक विशेष बात है| प्रधानमंत्री का जन्मदिन नर्मदा घाटी के लिए मृत्यु दिन होना कहते रहे, वही साबित हो चुका है| काका के खेत डूब में और घर में पानी घूस आने की स्थिति में काका चले गये हैं, संघर्ष को पीछे छोड़कर ! जगन्नाथ काका को विनम्र श्रध्दांजलि
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