कृष्णाम्मल जगन्नाथन का संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा करने और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए समर्पित है। कृष्णाम्मल जगन्नाथन के कार्यों का ही फल है कि भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया है।
कृष्णाम्मल जगन्नाथन ने भूमिहीन और हाशिए पर पड़े लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद करने के पीछे एक लंबा सफर तय किया है। कृष्णाम्मल को हिंसा पसंद नहीं है। उनका मानना है कि बिना हिंसा के भी किसी भी समस्या को हल किया सकता है। भूमिहीन होने का दंश उन्होंने बचपन में झेला है और तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि भूमिहीनों को भूस्वामी बनाने के लिए आजीवन काम करूंगी।
कृष्णाम्मल जगन्नाथन का संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा करने और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए समर्पित है। कृष्णाम्मल जगन्नाथन के कार्यों का ही फल है कि भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया है।
तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले में जन्मी कृष्णाम्मल का परिवार भूमिहीन था। उनकी मां दैनिक मजदूर किया करती थी। गर्भावस्था के उन्नत चरण में होने के बावजूद उनकी मां को कठिन परिश्रम करना पड़ता था। इस सब चीजों को देखकर ही वह सामाजिक अन्याय से परिचित हुई। जब वह बहुत छोटी थी तभी उनके पिता का देहांत हो गया। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ लोगों के सहयोग से उन्होंने उच्चशिक्षा पूरी की। उनकी मां उन्हें हमेशा पीड़ितों के प्रति करुणा भाव ही सिखाया।
उसके बाद गांधीजी के सर्वोदय आन्दोलन से जुड़ गईं। वहीं वह अपने पति शंकरलिंगम जगन्नाथन से मिलीं। दोनों ने कसम खाई कि शादी करेंगे, तो आज़ाद भारत में ही। आखिरकार दोनों ने 1950 में शादी की। जिसके बाद दोनों पति-पत्नी ने मिलकर भूमिहीन किसानों को ज़मीन दिलाने का आन्दोलन शुरू किया।
वर्ष 1953 से 1967 के बीच उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के परिवर्तित रूप ग्रामदान आंदोलन में जमींदारों से अपनी भूमि का छठा हिस्सा भूमिहीनों को देने के लिए सहमत किया। इस तरह उन्होंने हजारों लोगों को जमीनी हक दिलाया। इस बीच नागापट्टिनम जिले में मकान मालिक से हुए मजदूरी विवाद के बाद महिलाओं व बच्चों समेत 42 लोगों को जला दिया गया, जिसने जीवन की दिशा बदल दी।
इस घटना ने कृष्णाम्मल जगन्नाथन को झिंझोड़कर कर रख दिया। तब उन्होंने जमींदारों और भूमिहीनों को बातचीत के लिए एक साथ लाने और भूमिहीनों को उचित मूल्य पर भूमि खरीदने में मदद करने के लिए तंजावुर जिले में लैंड फॉर टिलर्स फ्रीडम संस्था की स्थापना की। इसके माध्यम से उन्होंने करीब तेरह हजार परिवारों को न्यूनतम एक एकड़ जमीन मुहैया करवाई।
भूमि प्राप्त करने वालों का जीवन सुधारने के लिए उन्होंने गैर-कृषि मौसम के दौरान कार्यशालाओं का आयोजन कराया, ताकि लोगों को सिलाई, चटाई बुनाई, बढ़ईगीरी और चिनाई के माध्यम से पैसा कमाने का मौका मिल सके। नब्बे के दशक में जब कंप्यूटर आया, तो उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर घरों की लड़कियों के लिए कंप्यूटर प्रशिक्षण की कक्षाएं भी कराई।
कृष्णम्मा की अपने सर्वोदयी पति जगन्नाथन जी के साथ बिहार आंदोलन में सक्रिय भागीदारी थी। बोधगया में भूमि संघर्ष की बुनियाद दोनों ने डाली थी।
94 साल की हो चुकी जगन्नाथन ने दुनिया में कई बदलाव देखे हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन सबसे गरीब लोगों की सेवा में लगा दिया। वर्ष 2013 में पति की मौत के बाद उन्होंने भी बिस्तर पकड़ लिया। लेकिन, दवाओं दम पर वह दोबारा सक्रिय हो गई हैं।
वर्तमान में, उनका संगठन 500 घर बनाने का काम कर रहा है। यह घर उन लोगों के दिए जाएंगे जिनके घर 2018 के चक्रवात में नष्ट हो गए थे। अब तक 54 घर पूरे भी हो चुके हैं। वह हर झोपड़ी वाले को एक घर देना चाहती है। इस उम्र में भी एक बेहतर दुनिया बनाने का उनका जुनून अभी भी कम नहीं हुआ है।
कृष्णाम्मल जगन्नाथन अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए कई बड़े सम्मान से सम्मानित की जा चुकी हैं। समाज सेवा के क्षेत्र में उन्हें भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक, वर्ष 2020 में पद्म भूषण से नवाज़ा था। यही नहीं, 2008 में राइट लाइवलीहुड अवार्ड भी प्राप्त किया, जिसे उन्होंने अपने पति के साथ साझा किया है। इसके साथ ही वह कई अन्य सम्मान से भी सम्मानित हो चुकीं है।
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