12 जून। गांधीवादी विचारक, पर्यावरण के सजग प्रहरी, पद्मश्री गोविंदन कुट्टी मेनन कर देह आज पंच तत्व में विलीन हो गई । शनिवार की दोपहर में रीजन पार्क मुक्तिधाम में अंतिम संस्कर किया गया। चिता को मुखाग्नि उनके बेटे गोपाल ने दी। श्री मेनन का शनिवार की सुबह इंदौर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया।
कुट्टीजी के निधन पर शहर-प्रदेश के प्रबुद्धजनों, स्नेहियों ने अपने श्रद्धा सुमन व्यक्त करते हुए अपनी स्मृतियां साझा की हैं। उनके निधन से न केवल इंदौर ने वरन मध्य प्रदेश ने एक महान समाज – सेवी विभूति और एक सजग पेड़ प्रेमी खो दिया है। हमेशा विनम्र और मधुर मुस्कान से सबका स्वागत करने वाले कुट्टी जी जीवन पर्यंत एक अध्येता रहे। उनमें जानने, समझने और सीखने की अदम्य ललक थी। वे हमेशा मध्य प्रदेश और इंदौर के पर्यावरण को बेहतर बनाने और समग्र विकास के चिंतित और विशेषज्ञों से चर्चारत रहते थे। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, मंत्री तुलसी सिलावट सहित अनेक रचनात्मक संस्थाओं ने अपनी भावभीनी श्रध्दांजलि अर्पित की है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरण मुद्दों के जानकार रवीन्द्र शुक्ला ने अपनी स्मृतियों को साझा करते हुए लिखा कि वे अपने अनेकानेक स्नेहियों और सहयोगियों के बीच ‘कुट्टी जी’ के संबोधन से लोकप्रिय थे। कस्तूरबा ट्रस्ट में उन्होंने विभिन्न खाद्यान्न और उद्यानिकी फसलों पर अनेक प्रयोग किए और उन्हें किसानों तक पहुंचाने का काम किया। मालवा निमाड़ क्षेत्र में जैविक खेती, गोबर गैस प्लांट और गायों की देशी नस्लों ( विशेषकर गीर नस्ल की गायों) को किसानों के बीच प्रचारित – प्रसारित करने में उन्होंने अनूठा योगदान किया। उनके नेतृत्व में कस्तूरबाग्राम कृषि क्षेत्र जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के एक मान्यता प्राप्त कृषि अनुसंधान तथा प्रसार केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। वृक्षारोपण, वन संवर्धन, जैव विविधता जल संरक्षण सहित पर्यावरण के विविध मुद्दों पर उन्होंने पूरे क्षेत्र में अनथक जमीनी काम किया और शहर दर शहर उनकी ख्याति फ़ैली। गांव वालों के लिए वे सच्चे मार्गदर्शक थे। उनसे मेरा परिचय लगभग 1975 में हुआ और यह निरंतर बना रहा है। मैं और मेरा परिवार हमेशा महसूस करता रहा है कि जैसे हम उनके परिवार के सदस्य हैं। इंदौर में और बाहर भी ऐसे अनेकानेक परिवार हैं जो उनका सान्निध्य पाकर विविध रूपों में उनसे प्रभावित हुए हैं। इंदौर के संवाद नगर में उनका निवास ही एक ‘पर्यावरण अनुकूल घर’ का अनूठा उदाहरण है।
‘दोपहर में मेरी सभी गाएं विश्राम करती हैं’ केवल एक बार संदेश प्रधानमंत्री जी तक पहुंचा दें
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे ने कहा कि प्रख्यात पर्यावरण चिंतक कुट्टी मेनन भौतिक रूप से अब हमारे मध्य नहीं रहे। हालांकि वे एक लंबे समय से स्वास्थ्यगत समस्याओं से जूझ रहे थे किंतु जब भी उनसे व्यक्तिगत रूप से भेंट हुई उनका आत्मविश्वास देखकर लग रहा था वे स्वास्थ्य समस्याओं से पार पा जाएंगे। पद्मश्री कुट्टी मेनन जी जैसे गौभक्तों को श्रद्धांजलि केवल एक ही रूप में दी जा सकती है कि हम उनके किसी ऐसे अनूठे प्रसंग को स्मरण करें जिससे उनकी उदात्त गोभक्ति और प्राणी जगत सहित पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम उभर कर हमारे मानस पटल पर छा जाए। प्रसंग उस समय का है जब श्री मेनन कस्तूरबाग्राम, इन्दौर की व्यवस्थाओं से जुड़े हुए थे, और गौशाला में गऊओं की सेवा में दिन -रात लगे रहते थे।
1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई का इन्दौर आगमन हुआ। कस्तूरबाग्राम की गौशाला की उन्होंने बहुत प्रशंसा सुनी थी इसलिए वे उसे देखना चाहते थे। प्रधानमंत्री जी के कहते ही व्यवस्थायें करने, जिलाधीश दौड़ पड़े। सूचना दी गई दोपहर में दो बजे प्रधानमंत्री जी गौशाला देखने आ रहे हैं। सभी प्रसन्न थे किन्तु श्री मेनन जी ने जिलाधीश महोदय से आग्रह किया’’ दोपहर में मेरी सभी गाएं विश्राम करती हैं। उनकी नींद के समय में माननीय प्रधानमंत्री जी न आएं तो अच्छा रहेगा।’’ अधिकारी चौंके। उनके लिए पशुओं के दोपहर विश्राम का प्रधानमंत्री जी की इच्छा के आगे कोई महत्व नहीं था। श्री मेनन ने आग्रह किया-’’ आप लोग केवल एक बार मेरा संदेश प्रधानमंत्री जी तक पहुंचा दें। आगे जैसा वे उचित समझें।’’ संदेश प्रधानमंत्री जी तक पहुंचा और आश्चर्य एक गोभक्त की भावनाओं को दूसरे गोभक्त ने तुरन्त भांप लिया और प्रधानमंत्री जी अपने अन्य कार्यक्रमों में परिवर्तन कर गायों के विश्राम के समय के पूर्व सुबह 10.30 -11.00 बजे ही गोशाला दर्शन हेतु पहुंचे। श्री मेनन ने एक -एक गाय से प्रधानमंत्री जी की ऐसे भेंट कराई जैसे परिवार के सदस्यों से मिलवा रहे हों।
इस समय देश को आप जैसे पर्यावरण रक्षकों की सख्त जरुरत थी
कस्तूरबा ग्राम से जुडे रहे शरद कटारिया ने बताया कि उन्होंने सिध्द किया कि व्यवहारिक ज्ञान क्लास रुम की पढ़ाई से ज्यादा कारगर होता है, निजी स्तर पर तो वे बहुत अध्ययनशील थे। अनुशासनप्रिय एवं ईमानदार प्रशासक थे वे । मेरा सौभाग्य है कि मुझे उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य मिला। उन्होंने मुझे (स्व. एम. एस. सोनवलकर सा. के साथ) कस्तूरबाग्राम स्थित अमृतबाग में फलों का बाग लगाने के लिए सर्वे और प्लानिंग का दायित्व सौंपा था। उस बाग के लिए कुट्टीजी स्वयं देशभर में भ्रमण कर पौधे लाए थे। वह बाग आज भी फल दे रहा है। संवाद नगर स्थित घने वृक्षों से आच्छादित उनके घर में लकड़ी के स्थान पर पत्थरों का ही ज्यादा उपयोग किया उन्होंने। एक बार मैंने उनसे पूछा कि घर के बगीचे में उन्होंने पेड़ अफलातूनी तरीके से क्यों उगाए हैं, तो उनका प्रकृतिप्रेम से ओतप्रोत उत्तर था : “इससे मुझे इस शहर में भी ऐसा लगता है जैसे मैं जंगल में ही निवासरत हूँ”
मेननजी हमारे यादों और कार्यों में हमेशा ‘ग्रीन’ रहेंगे
पद्मश्री जनक पलटा ने कहा कि कुट्टी मेननजी हमारे शब्दों, यादों और कार्यों में हमेशा ‘ग्रीन’ रहेंगे । उनका जीवन भारत माता की सेवा के लिए समर्पित है! उनकी भूमिका पर्यावरण के संरक्षक की रही है जबकि वे हमेशा एक माली की तरह काम करते थे जो पेड़ को प्यार करता था, बड़ा करता था और पेड़ को बचाता था। कस्तूरबा ग्राम में अमृत बाग एकमात्र ऐसी जगह थी जिसे मैं फरवरी 1989 में अपने ससुर को दिखा सकता था.. इंदौर और सांवदिया में मेरी पूरी जिंदगी कुट्टी जी के जनक बहन होने का गौरव से परिपूर्ण है । इंदौर में पेड़ों, जैविक खेती से जुड़े विशेष रूप से उनके मार्गदर्शन में उनके प्यार, समर्थन और कार्य की अविस्मरणीय यादें हैं ।
आसपास का निरीक्षण करो और सीखो, जहां समझ में नहीं आए तब पूछो
डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे, सह कार्याध्यक्ष, गोविज्ञान भारती ने कहा कि पद्मश्री कुट्टीजी के देवलोकगमन के साथ एक युग का अंत हो गया। उनका जाना हमारे लिए ऐसा ही है जैसे परिवार का कोई सदस्य चला गया। अपने क्षेत्र के वे विशेषज्ञ थे। केरल जैसे सुदूर प्रदेश से आकर इंदौर के कस्तूरबाग्राम को उन्होंने अपनी कर्मस्थली बनाया। कृषि और गोपालन के क्षेत्र में कुट्टीजी ने अतुलनीय योगदान दिया। गेहूं के नये बीज तैयार करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। मुझे याद है जब पांचवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान बालनिकेतन स्कूल से कस्तूरबाग्राम दिखाने के लिए ले गये थे, तब गौशाला में कुट्टीजी ने ही हम बच्चों का स्वागत किया था। उन्हें निकट से जानने का मौका तब मिला, जब मैं कस्तूरबाग्राम गौशाला में प्रशिक्षण प्राप्त करने गया। कुट्टीजी सुबह साढे चार-पांच बजे अपनी लेडीज साइकिल उठाते और पूरे कस्तूरबाग्राम की खेती का चक्कर लगाकर आखिर में गौशाला में आते थे। वहां से सभी प्रकार की जानकारी लेने के बाद जरूरी निर्देश देते। इसके बाद ग्वालियर मेले में गायों और नंदी को ले जाने का अवसर मिला। वहां पर कस्तूरबाग्राम की गाय और नंदी को अनेक पुरस्कार मिले।
कुट्टीजी का प्रशिक्षण देने का तरीका बिलकुल भिन्न था। अपने आसपास का निरीक्षण करो और सीखो, जहां समझ में नहीं आए तब पूछो। गोविभा मासिक पत्रिका के नियमित पाठक थे। उन्होंने विशेषांक प्रकाशित करने के लिए एकाधिक बार सामग्री उपलब्ध करायी। जब गोविभा में केरल का यात्रा वृत्तांत प्रकाशित किया तब उनकी खुशी देखने लायक थी। पर्यावरण रक्षण के प्रति उनका लगाव घर में लगे हुए विभिन्न किस्म के वृक्ष और पौधों को देखकर चल जाता है। उन्होंने आजीवन खादी धारण करने के व्रत का पालन किया।
आजीवन प्रयोगधर्मी और नवाचारी रहे
डॉ. मनोहर भंडारी ने बताया कि कुट्टीजी आजीवन प्रयोगधर्मी और नवाचारी रहे I वे अपने पेड़-पौधों को अपनी संतान की तरह प्यार और देखरेख करते थे और अक्सर उनसे एक तरफ़ा बातें किया करते थे I उनके लगाए पेड़-पौधें भी सामान्य से अधिक फल और फूलों से उनके स्नेह का अभिवादन करते रहे I विगत कुछ माहों से वे व्हील चेयर पर थे परन्तु वे हर दिन व्हील चेयर से अपने पेड़-पौधों से बतियाने अवश्य जाते थे I गायों से भी उन्हें बहुत लगाव था, एक बार प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी कस्तूरबा ग्राम आई थी और उन्होंने गांधीजी की प्रिय गाय ज्योति का उल्लेख किया तो मेनन साहब उन्हें ज्योति की सन्तति के पास ले गए, जिसका नाम उन्होंने ज्योति ही रखा था, उसे देखकर इन्दिराजी बहुत प्रसन्न हुई थी I यह मेरा सौभाग्य है कि मेरा उनसे परिचय 1992 में तब हुआ, जब वे संवाद नगर में हमारे घर के पीछे वाले मकान में रहने आए थे I मेनन साहब, मनोरमाजी मेनन और उनकी सासूमाँ बनाम नानीजी की सहजता के चलते हमारे सम्बन्ध पारिवारिक होते चले गए I
वे सभी पेड़-पौधें जो उनके द्वारा कस्तूरबा ग्राम, उनके आँगन और एमजीएम मेडिकल कॉलेज और अन्य स्थानों पर लगे होंगे, वे आज अवश्य बहुत उदास होंगे I
बता दें के जैविक कृषि के जानकार और गांधीवादी विचारक गोविंदन कुट्टी मेनन को उनकी सेवाओं के कारण 1991 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से विभूषित किया गया था। इसके पहले उन्हें उन्हें 1986 में भारत का पहला इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र पुरस्कार, 1989 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार ,वही 1989 में असाधारण प्रगतिशील कृषक का सम्मान के तौर लाल बहादुर शास्त्री अर्वाड से भी सम्मानित किया गया। केरल के थ्रीशुर जिले के कोडुंगलुर कस्बे में 2 मार्च 1940 में जन्में मेनन 60 के दशक में इंदौर के कस्तूरबा गांधी स्मारक ट्रस्ट से जुडे और फिर इंदौर के होकर रह गए। वे अपने आप को ‘मालवी केरेलियन’ के रूप में मानते थे, क्योंकि उनके मन में मालवा रच बस गया था।
[block rendering halted]