इंदौर 13 दिसंबर। खादी, भूदान, ग्रामोद्योग और ग्रामीणों के लिए समर्पित सर्वोदय कार्यकर्ता मणीन्‍द्र कुमार का 89 वर्ष की आयु में सोमवार को निधन हो गया। वे कई दिन से बीमार थे। वे आचार्य विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रेरित थे। युवावस्था में उन्होंने खादी धारण करने का संकल्प लिया और उसे जीवनभर निभाया। उन्होंने भूदान आंदोलन, ग्राम आंदोलन और नर्मदा आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की। मणीन्द्र भाई ने पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने और अंतिम-संस्कार को जीवन उपयोगी बनाने के लिये ‘वृक्ष जीवन संस्कार`के सार्थक तरीके की पैरवी की, जो मृत्यु संस्कारों की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। उनका अंतिम संस्‍कार 14 दिसंबर को 11 बजे व़ृक्ष जीवन संस्‍कार पद्धति से उज्‍जैन के सेवाधाम आश्रम के पास किया जाएगा।   

मणीन्‍द्र भाई  सर्वोदय विचार के तपोनिष्ठ कार्यकर्ता थे। अपनी युवा अवस्था से ही मणीन्‍द्र भाई सर्वोदय विचार के साथ जुड़े थे। सर्वोदय शिक्षण समिति माचला में ग्रामोद्योग प्रशिक्षण संस्‍थान के उपप्राचार्य के रूप में अपनी सेवाएं दी। पश्‍चात अंजड बडवानी में रहकर सर्वोदय आंदोलन के  कई रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया।

उन्होंने संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचारों से अनुप्रेरित होकर गतिविधियो में सक्रिय भागीदारी की,   इस वजह से उन्‍हें आपातकाल के दौरान  18 माह की जेल हुई ।  उन्होंने जेल में रहकर ‘जेल की डायरी’ लिखी थी, जो बाद में ‘एक और महाभारत’ के नाम से सर्व सेवा संघ प्रकाशन वाराणसी से प्रकाशित हुई जिसकी भूमिका प्रसिद्ध कवि विचारक भवानी प्रसाद मिश्र ने लिखी तथा आपातकाल आपातकाल के दिनों लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने दो शब्द लिखे। यह पुस्तक न केवल रोचक अपितु 1975 तक के भारत की घटनाओं का एक जीवंत दस्तावेज भी है।

21 नवंबर 1932 को बड़वानी में जन्मे मणीन्द्र कुमार उस माहौल में बढ़े हुए जब देश में गांधी की आंधी बह रही थी इनके पिता जी श्री फूलचंद जी यद्यपि गांधीवादी सक्रिय कार्यकर्ता नहीं थे तो भी उनका परिवार देशभक्ति और देश गुलामी से मुक्त करने की भावना से लबरेज था।  एक बड़े भाई तो स्वतंत्रता सेनानी थे यही उनका भी गहरा प्रभाव मणीन्द्र कुमार पर पडा। लिहाजा वे किशोरावस्था से ही खादी पहनने का और समाज सेवा का व्रत लेकर बड़े हुए। निमाड़ अंचल में श्री काशीनाथ त्रिवेदी के सान्निध्‍य में कार्य किया। राजघाट (बडवानी) में 1952 में आयोजित सर्वोदय मेले का श्री मणीन्द्र कुमार ने सफल संचालन कर अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया।

मणीन्द्र कुमार

युवा मणीन्द्र पर गांधी का रंग और गहरा गया महाविद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन दिनों संत विनोबा के प्रयोगों ने आकर्षित कर इन्हें जीवन की नई दिशा दी। विनोबा के प्रयोग देश की भूमि समस्या और सामाजिक जीवन के मसलों को सुलझाने के लिए थे। युवा मणीन्द्र बाबा विनोबा को समर्पित हो भूदान आंदोलन में कूद पड़े।

मणीन्द्र कुमार गांधी विचार क्षेत्र के विकास तथा प्रशिक्षक के रूप में स्थापित हुए और अनेक अवसरों पर इनकी सेवाएं ली गई। तत्कालीन मध्य भारत राज्य में 2 वर्ष गांधी तत्व प्रचार केंद्र के संचालन का दायित्व सफलतापूर्वक निर्वहन किया पश्चात इन के मार्गदर्शन में इंदौर, धार, बड़वानी, मंदसौर, उज्जैन, भोपाल एवं ग्‍वालियर के अध्ययन केंद्रों की स्थापना हुई। बाद में सेवाग्राम आश्रम में उच्च बुनियादी तालीम और सत्कार कार्यक्रम प्रभारी बने। ग्राम सेवा के कार्य करने हेतु उन्‍हें इंदौर में खादी ग्राम उद्योग विद्यालय में उपप्राचार्य के पद पर कार्य किया। वे  इंदौर में अध्ययनरत रहते हुए पत्रकारिता से भी जुड़े। लेखन प्रतिभा और संपादन कौशल को देख श्री बृजलाल बियानी ने इन्हें इंदौर से प्रकाश से मासिक पत्रिका ‘विश्व लोक’ के में संपादकीय विभाग में सहयोग किया। इंदौर नईदुनिया के अंशकालिक संवादाता नियुक्त किए गए।

अगस्त 1960 में भूदान पदयात्रा कार्यक्रम के अंतर्गत बाबा विनोबा के इंदौर और मालवा यात्रा निश्चित हुई मणीन्द्र भाई के साहित्यिक रुझान को दृष्टिगत रखकर विनोबा जी के प्रवचनों के विवरण तैयार करने एवं पद यात्रा में उनके साथ रहने का कार्य संभाला। मणीन्द्र भाई के आलेखों का संकलन एक पुस्तक के रूप में ‘इंदौर में संत विनोबा’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।  बाद में उन्‍होंने अखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ में कार्य किया।

इन्होंने अपने कस्बे अंजड़ में  मध्य भारत के वरिष्ठ सर्वोदय नेता श्री विश्वनाथ खोडै के साथ काम किया । मणीन्द्र भाई ने शुरुआत में ‘नर्मदा बचाओ, निर्माण बचाओ आंदोलन’ में प्रारंभिक योगदान दिया इसके बाद  मेधा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और कई बार जेल  भी गए।

उन्‍होंने जीवन के उत्‍तरार्ध्‍द में करीब तीन दशक तक ‘वृक्ष संस्कार` अभियान  को मूर्त रूप दिया। इसकी प्रेरणा  बाबा आमटे से ली थी। बाबा का मानना था कि इस विधि से अंतिम संस्कार करने से दुनिया का भला होगा ।  मृत्यु संस्कार के इस विकल्प पर ३०० व्यक्तियों ने अपनी रूचि दिखाते हुए मृत्यु इच्छापत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। मणीन्द्र भाई का मानना था कि निकट भविष्य में यह विचार समाज स्वीकार करेगा, क्योंकि वृक्ष संस्कार से मृत्यु भी सार्थक हो जाती है। इससे मृत व्यक्ति न केवल अमर हो जाता है, वह अनन्त भी हो जाता है। वृक्ष के जो बीज होते हैं, वे गिरकर, फिर बढेंगे एवं फैलते जाएंगे। वे बीज फिर वृक्ष बनेंगे और वृक्ष बनने की प्रक्रिया चलती और बढ़ती जाएगी । 

3 टिप्पणी

  1. सप्रेस की उत्तम विश्लेषणात्मक टीप स्व. मणीन्द्र भाई के व्यक्तित्व कृतित्व जीवन वृत्तांत को सही आकार देती हुई,,विनम्र श्रद्धांंजलि,, सादर नमन,,

  2. सादर नमन। ।
    बहुत कम अंतराल में इंदौर-मालव के सर्वोदय परिवार को दूसरी बड़ी क्षति। पहले किशोर भाई गए,, अब मणींद्र भाई।

  3. मणिन्द्र भाई ने अपना सारा जीवन गाँधीवादी मूल्यों के साथ जिया। अंजड़ (बड़वानी) में रहते हुए वे नर्मदा बचाओ आंदोलन सहित अन्य सामाजिक गति विधियों में सक्रिय रहे। गाँधीवादी मूल्यों में उनकी न सिर्फ गहन आस्था थी बल्कि ये मूल्य उनकी जीवन शैली का हिस्सा थे। संभवत: 1998 की सर्दियों की बात है। अंजड़ में उन्होंने अपने पैतृक निवास का एक हिस्सास किसी दुकानदार को किराए पर दिया था। जब उन्हें मकान की जरुरत पड़ी तो उन्होंने किराएदार से मकान खाली करने का आग्रह किया। लेकिन, किराएदार बदल गया था। उसने मकान खाली करने से इंकार करते हुए कोर्ट जाने की धमकी दे दी। मणिन्द्र भाई ने उसे समझाने की कोशिश की कि उन्होंहने रोजीरोटी की खातिर किए गए आग्रह के कारण अपना मकान उसे दुकान चलाने को दिया था। आज उन्हेंक अपने मकान की जरुरत है तो दुकानदार को मकान खाली कर देना चाहिए। लेकिन इस समझाईश का किराएदार पर कोई असर नहीं हुआ। मणिन्द्र भाई ने विवाद करने के बजाय गाँधीवादी मूल्यों का सहारा लिया। उन्होंंने अपने ही घर के सामने मौन वृत शुरु कर दिया। मौन वृत के तीसरे दिन नगरपंचायत अध्यक्ष और नगर के प्रभावशाली लोगों सहित कस्बेज के सैकड़ों लोग ने वृत स्थ ल पर जमा थे। सबने किराएदार को समझाया और उनका वृत तुड़वाया। इस तरह असंभव लगने वाले मामले में उन्होननें गाँधीवादी अस्त्र की कामयाबी साबित की।

    मणिन्द्र भाई की जिन मूल्यों और विचारों में आस्था थी उनके साथ वे समझौता नहीं करते थे, चाहे मामला कितना ही महत्वपूर्ण हो। पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्यक से वे अंतिम संस्कार की वृक्ष जीवन संस्कार पद्धति में विश्वास करते थे और इसको बढ़ावा देने हेतु लगातार प्रयास करते रहते थे। सहमत होने वालों से सहमति पत्र भी भरवाते थे। 2005 के आसपास उनके बड़े भाई और स्वतंमत्रता सैनानी स्व. सूरजमल लुंकड़ का निधन हुआ। लुंकड़ जी ने वृक्ष जीवन संस्कार पद्धति से अंतिम संस्का‍र हेतु सहमति-पत्र भरा था। अंतिम यात्रा के दौरान राजघाट (नर्मदा तट) स्थित गाँधी समाधि पर लुंकड़ जी की पार्थिव देह रख कर श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। सभा के अंत में मणिन्द्र भाई ने लुंकड़ जी का सहमति पत्र दिखाते हुए परिवार से उनकी इच्छा का सम्मान कऱते हुए उनका अंतिम संस्कारर वृक्ष जीवन संस्कार पद्धति से करने का आग्रह किया। जब परिवार में इस पर सहमति नहीं बनी तो मणिन्द्र भाई ने अंतिम संस्कार में शामिल न होने का कड़ा फैसला ले लिया तथा वे अपने अग्रज के अंतिम में शामिल नहीं हुए। मैनें सुना है कि मणिन्द्र भाई इसी कारण से अपने पिताजी के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए थे।

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