पर्यावरण संरक्षण हेतु ‘वृक्ष जीवन संस्कार पद्धति’ से किया गया अंतिम संस्कार
14 दिसंबर । वरिष्ठ गांधीवादी विचारक मणीन्द्र भाई का पार्थिव शरीर उज्जैन के सेवाधाम आश्रम के समीप ‘वृक्ष जीवन संस्कार पद्धति’ से भूमि संस्कार कर दफना दिया गया। सर्वोदय कार्यकर्ता मणीन्द्र कुमार का 89 वर्ष की आयु में सोमवार को निधन हो गया था। वे कई दिन से बीमार थे। मणीन्द्र भाई के निधन से सर्वोदय आंदोलन और सामाजिक को बड़ी क्षति के रूप में महसूस किया जायेगा। उन्होंने जीवन भर गाँधी-विनोबा के विचारों को आत्मसात किया।
इस मौके पर परिवारजनों के अलावा बडी संख्या में गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए। बडे सुपुत्र अखिलेश और निखिलेश ने वृक्ष जीवन संस्कार पद्धति की रस्म को निभाया। ‘वृक्ष जीवन संस्कार’ के इस तरीके में पहले करीब 6 फीट गहरा और 4 फीट चौडा गड्डा खोदा गया। उसमें पहले गोबर, गौ मूत्र और पेड़ों की पत्तियां डाली गई और उसके ऊपर मिट्टी का बिछौना बनाया गया। उसमें मणीन्द्र भाई की देह को लिटाया गया और गड्ढे को फिर मिट्टी से भर दिया गया। इसमें देह का भूमि संस्कार कर उसके ऊपर पौधे का रोपण किया गया। मृत शरीर में कैल्शियम, फास्फोरस एवं अनेक प्रकार के खनिज द्रव्य होते हैं। भूमि संस्कार के बाद शरीर खाद में बदल जाता है और ठीक उसके ऊपर उगने वाला पौधा उस खाद से आवश्यक तत्व ग्रहण कर वृक्ष बन जाता है, जो सालों तक मृत व्यक्ति की याद के रूप में जीवित रहता है।
वरिष्ठ सर्वोदय विचारक मणीन्द्रकुमार के देहांत होने पर विसर्जन आश्रम, कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट, गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र, सर्वोदय प्रेस समिति, सर्वोदय शिक्षण समिति, गांधी भवन ट्रस्ट, भोपाल, सेवा सुरभि सहित कई रचनात्मक संस्थाओं, गांधी विचारकों, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं ने अपनी भावभीनी श्रृद्धांजलि अर्पित की।
वरिष्ठ सर्वोदयी नेता एवं म.प्र गांधी स्मारक निधि के पूर्व मंत्री बालकृष्ण जोशी ने कहा कि मणीन्द्र भाई के निधन का समाचार सुनकर मुझे बडा आघात लगा। मेरे परिवार का उनके परिवार से बहुत ही निकट का संबंध रहा था। हम दोनों के परिवार अंजड से संबधित था। उनके भाईयों के साथ भी मेरा आत्मीय संबंध रहा। वे अत्यन्त निष्ठावान व्यक्ति थे। वे जीवन भर अपनी निष्ठा पर अडिग रहे। उन्होंने विनोबा भावे के साथ भूदान ग्रामदान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। जयप्रकाश नारायण के साथ कार्य करने की वजह से आपातकाल में हम दोनों जेल में साथ रहे। उनके निधन से हुई क्षति को भरा जाना संभव नहीं है।
मणीन्द्र भाई के निधन पर वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं सर्वोदय प्रेस सर्विस के संपादक राकेश दीवान ने कहा कि हमने वरिष्ठ सर्वोदयी व्यक्तित्व और सच्चे गांधी विचारक को खो दिया। देश की आजादी में योगदान देने वाले परिवार में जन्में मणीन्द्र भाई के मन में बचपन से ही गाँधी विचारों का प्रभाव रहा। उनका पूरा जीवनदानी व्यक्तित्व रहा। गांधी विचार के लोगों में यह बडी बात थी। अब जीवनदानियों की आबादी कम होते जा रही है, जिसमें मणीन्द्र भाई भी एक थे।
श्री दीवान ने कहा कि जीवनदानी व्यक्ति कोई एक ऐसा मुद्दा पकड़ते थे और वे उसी धुन में रमें रहते थे। मणीन्द्र भाई ने भी पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्ष संस्कार पद्धति के विचार को आत्मसात किया और जीवन के अंतिम पडाव तक इसके लिए प्रयासरत रहे। कई वरिष्ठ व लब्ध प्रतिष्टित व्यक्तियों को इस विचार से जोडा। पश्चिम मध्यप्रदेश में सर्वोदय आंदोलन और नर्मदा बचाओ आंदोलन को स्थापित करने में मणीन्द्र भाई के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उनका जाना दुखद है।
गांधी भवन ट्रस्ट के सचिव दयाराम नामदेव ने अपने शोक संदेश में कहा कि मणींद्र भाई ने समाज के वंचितों के लिए अपना जीवन लगाया। आपातकाल में उन्हें 18 माह जेल हुई। उन्होंने युवावस्था में गांधी तत्व प्रचार केंद्र जिम्मा संभाला तथा इंदौर, धार, बड़वानी, मंदसौर, उज्जैन, भोपाल एवं ग्वालियर में इन अध्ययन केंद्रों की स्थापना की। बाद में वे बुनियादी तालीम, खादी ग्रामोद्योग विद्यालय से जुडे।
पर्यावरण डाइजेस्ट के संपादक एवं पत्रकार डॉ. खुशालसिंह पुरोहित ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि मणीन्द्र भाई के योगदान को समाज नहीं भुला सकता है। मेरे लिए उनका जाना निजी क्षति है। सर्वोदय विचार को बढ़ाने के काम में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे जिंदादिल और फक्कड इंसान थे।
गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र, इंदौर के संयोजक एवं सामाजिक कार्यकर्ता श्री कुमार सिद्धार्थ ने कहा कि सर्वोदय जमात के कर्मठ और जुझारू कार्यकर्ता का अवसान न केवल हमारी पारिवारिक क्षति है। वरन सर्वोदय समाज का एक सशक्त स्तम्भ ढह गया है। मणीन्द्र भाई का मुझे सदैव पितातुल्य स्नेह मिलता रहा। उनके साथ वृक्ष संस्कार जीवन पद्धति के विचार को फैलाने व इसके प्रसार में सहयोगी बनने के साथ उनकी किताब ‘मृत्यु से जीवन की ओर ‘ (वृक्ष जीवन पद्धति से अंतिम संस्कार) के संपादन करने का भी मौका मिला था। उन्होंने मृत्यु उपरांत अपने विचार अनुरूप पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने और अंतिम-संस्कार को जीवन उपयोगी बनाने के लिये ‘वृक्ष जीवन संस्कार’ का सार्थक तरीका अपनाया, जो मृत्यु संस्कारों की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
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