निमिषा सिंह
निर्मला देशपांडे Nirmala Deshpande का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने अपने विचारों एवं कार्यों से गांधी और विनोबा को जोड़ने का कार्य किया। गांधी विचार के मूल तत्व संवाद को इन्होंने ‘गोली नही बोली चाहिए’ का रूप देकर विपरीत माहौल में भी शांति सद्भाव कायम किया। वे एक ऐसी कार्यकर्ता थी, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आदिवासियों, उत्पीड़ितों, महिला सशक्तिकरण और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए समर्पित कर दिया।
1 मई : 15 वां पुण्य स्मरण
19 अक्टूबर 1929 को नागपुर में विमला और पुरुषोतम यशवंत देशपांडे के घर जन्मी निर्मला जी का बचपन साहित्यिक परिवेश में बीता। पिता साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मराठी साहित्य के जाने – माने साहित्यकार थे। निर्मला देशपांडे नागपुर से ही राजनीति विज्ञान में एमए के पढ़ाई के बाद वहीं के मारीस कॉलेज में प्रोफेसर बन गई। दलितों, वंचितों और उत्पीड़ितों के साथ हो रहे भेदभाव से दीदी अक्सर व्याकुल हो जाती और अंततः एक दिन सुख-सुविधाओं को त्याग कर आजीवन अविवाहित रहने के संकल्प के साथ वह विनोबा भावे के पवनार आश्रम में आ गई।
1952 में दीदी विनोबा भावे के भूमिदान आंदोलन से जुड़ी और तकरीबन 40 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा में शामिल हुई। इस यात्रा में भूमिहीनों की दुर्दशा ने निर्मला जी को व्यवस्थागत उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित किया। भूमिदान आंदोलन के तहत गांधीजी के विचारों में विश्वास रखने वाले लोगों द्वारा दान की गई लाखों एकड़ जमीन भूमिहीनों और गरीबों में वितरित की गई। महात्मा गांधी द्वारा अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए 1932 में स्थापित हरिजन सेवक संघ से दीदी बतौर अध्यक्ष जुड़ी और लंबे समय तक उन्होंने वहाँ अपनी सेवा दी। विनोबा भावे ने अपने गुरु महात्मा गांधी के विचारों के प्रचार और प्रसार के लिए शांति सेना का गठन किया जिसकी कमांडर निर्मला जी को नियुक्त किया गया।
बेबाक बोलने वाली और माओवादियों को अपना दोस्त बताने वाली निर्मला देशपांडे Nirmala Deshpande एक समर्पित गांधीवादी थी, शायद इसीलिए उनके लिए नक्सलियों को समझना और उनके प्रति सहानुभूति रखना मुश्किल नहीं था। यह जानते हुए भी कि नक्सलियों के विरोध का तरीका गांधी विचारधारा से परे था, बावजूद इसके निर्मला जी ने नक्सलियों पर बल प्रयोग का विरोध किया। प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बराव के शब्दों में….निर्मला देशपांडे का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उन्होंने अपने विचारों एवं कार्यों से गांधी और विनोबा को जोड़ने का कार्य किया। गांधी विचार के मूल तत्व संवाद को इन्होंने ‘’गोली नही बोली चाहिए ‘’ का रूप देकर विपरीत माहौल में भी शांति सद्भाव कायम किया। समय-समय पर उत्पीड़ितों अल्पसंख्यकों के बेहतर भविष्य निर्माण के लिए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा प्रयास जारी रहा पर निर्मला देशपांडे एक ऐसी कार्यकर्ता थी, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन आदिवासियों, उत्पीड़ितों, महिला सशक्तिकरण और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए समर्पित कर दिया।
1984 में विभिन्न गांधीवादी संस्थानों और कार्यकर्त्ताओं को साथ जोड़कर विनोबा भावे के मार्गदर्शन में दीदी ने अखिल भारत रचनात्मक समाज की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य सामाजिक एवं सांप्रदायिक शांति और भाईचारे और एकता को बढ़ावा देना था। अखिल भारतीय रचनात्मक समाज दीदी द्वारा शुरू किया गया एक वैचारिक आंदोलन है। साथ ही नित्य नूतन पत्रिका के प्रकाशन की भी शुरुआत हुई, जो वैश्विक शांति और न्याय के अहिंसक विचारों को फैलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
डॉ. निर्मला देशपांडे, एक चेहरा जो अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपनी कूटनीति के लिए जाना जाता था। 1994 में कश्मीर में शांति मिशन और 1996 में भारत – पाकिस्तान वार्ता आयोजित कराने में निर्मला जी की अहम भूमिका रही। पंजाब और कश्मीर में हिंसा की चरम स्थिति में शांति मार्च के लिए निकल जाने वाली निर्मला जी ने चीनी दमन के खिलाफ तिब्बत में मुक्ति साधना का समर्थन कर तिब्बतियों के लिए भी अपनी आवाज बुलंद की।
गांधी ग्लोबल फॅमिली के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री एसपी वर्मा ने दीदी से जुड़े एक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि 1990 में आतंकवाद के दौर में दीदी जम्मू कश्मीर पहुंची, एक लाख लोगों को राशन बांटकर पीड़ितों की मदद की। कितने ही काम उन्होंने बिना रुपये के शुरू किये। राजनीति में 1997 से 2007 तक निर्मला जी ने बतौर राज्य सभा सदस्या अपनी सेवा दी। सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही निर्मलाजी एक प्रबुद्ध लेखिका भी थी। उनके द्वारा रचित विनोबा भावे की जीवनी, साहित्य को निर्मला जी द्वारा दी गई अमूल्य देन है। भूदान यात्रा के दौरान विनोबा भावे के प्रवचनों को लिपिबद्ध कर 40 खंडों में उन्होंने भूदान गंगा की रचना की। 2006 में उन्हें राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार और पदम विभूषण से सम्मानित किया गया। 2007 में निर्मला जी को राष्ट्रपति पद के लिए नामित भी किया गया था।
निर्मला देशपांडे एकलौती ऐसी शक्सियत थी, जिन्हें भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में प्यार और सम्मान मिला। 2009 में पाकिस्तान सरकार द्वारा आजादी की पूर्व संध्या पर उन्हें पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘सितारा ए इम्तियाज़’ से नवाजा गया। इंडिया पाकिस्तान सोल्जर इनिसिएटिव फॉर पीस, जिसकी स्थापना स्वयं निर्मला जी ने की थी, के रिटायर्ड मेजर जनरल एमए नाईक अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिए निर्मला जी के प्रयासों को याद करते हुए कहते है कि युद्ध में बड़ी तकलीफ होती है। दीदी निर्मला जी ने सही सोचा कि क्यों न प्रशिक्षित सैनिक व युद्धरत सैनिक ही शांति की बात सोचे। दीदी की प्रेरणा से हमने पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों और उनके बच्चों से बातचीत की और वहाँ भी हमें अमन की चाहत ही देखने को मिली।
79 वर्ष की आयु में 1 मई 2008 को दिल्ली स्थित अपने निवास पर निर्मला देशपांडे का नींद में ही देहांत हो गया। निश्चित तौर पर दीदी का निधन देश के लिए एक बड़ी क्षति थी। चूंकि उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने में समर्पित रहा इसलिए उनकी अस्थियाँ भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बहने वाली सिंधु नदी में प्रवाहित की गई। निर्मला देशपांडे ने एक बेहतर, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज की कल्पना की थी और इसी कोशिश में उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया। उनकी विचारधारा और दर्शन से हमें विश्व शांति, एकता और भाईचारे का संदेश मिलता है। यह संभव नहीं कि हम सब एक ही तरह से सोचे मगर हमारी बुनियाद सत्य और अहिंसा की रहे और इसी आधार पर विचार की सत्ता स्थापित करने के लिए हम सभी सतत प्रयत्नशील रहे।
सुश्री निमिषा सिंह दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार है।
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