कुमार कृष्णन

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त राधा भट्ट का नाम गांधी-विनोबा युग के गांधीवादियों में प्रमुखता से शुमार किया जाता है। वर्ष 2025 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किए जाने की घोषणा हुई है। सम्मान से बड़ा राधा भट्ट का कद है।

संदर्भ : पद्मश्री सम्मान दिये जाने की घोषणा

93 वर्षीय राधा बहन भट्ट ने उत्तराखंड के कौसानी क्षेत्र में पहाड़ी महिलाओं को सशक्त बनाने और महिला, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, शराब विरोधी आंदोलन के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनके जीवन का सात दशक पहाड़ और पर्यावरण के मुद्दे पर संघर्ष रहा है। उनका संघर्ष उन्हें प्रेरणादायक व्यक्तित्व के अग्रणी श्रेणी लाकर खड़े करती है।

यात्राओं के क्रम में सुप्रसिद्ध गांधीवादी राधा भट्ट का सानिध्य मिलना काफी सुखद रहता है। उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिलता है। वह है जीवन का अनुशासन। असम के कोकराझार से कश्मीर तक की साईकिल यात्रा में मुझे उनके साथ लगातार साथ रहने का अवसर मिला। उन्होंने सर्व सेवा संघ, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। लक्ष्मी आश्रम कौसानी की अध्यक्ष राधा भट्ट 70 साल से उत्तराखंड के पहाड़ के लिए लड़ रही हैं। 1957 में भूदान आंदोलन के साथ उनकी पदयात्रा शुरू हुई। बालिका शिक्षा, पर्यावरण, जल, जंगल और जमीन की चिंता जागी। ग्राम स्वराज, शराब आंदोलन, युवा महिला सशक्तिरण और सर्वोदय आंदोलनों में उनकी बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी रही है। राधा दीदी ने 18 साल की उम्र में घर छोड़ दिया। उनका जीवन पूरी तरह समाज के लिए समर्पित है।

राधा भट्ट का जन्म 16 अक्तूबर 1933 में कमलापति और रेवती भट्ट के घर हुआ। अल्मोड़ा के पास धुरका गांव में सेना के एक पारंपरिक परिवार में जन्मीं राधा भट्ट को अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा क्योंकि लोग लड़कियों को शिक्षित करने के खिलाफ़ थे। उनके मुताबिक “मेरे पिता ने मुझे पाला-पोसा, जिन्होंने प्रचलित रूढ़िवादी मान्यता के खिलाफ़ विद्रोह किया कि चूँकि मैं गलत राशि में पैदा हुई हूँ, इसलिए उन्हें मुझे नहीं देखना चाहिए। उन्होंने मुझे भरपूर प्यार दिया। अपनी माँ के साथ मुझे पहाड़ी महिलाओं की कठिन दिनचर्या का एहसास हुआ, क्योंकि मैं उनके साथ चारा और जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने के लिए दूर-दूर तक जाती थी।”

उन्होंने माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वैवाहिक जीवन की बजाय समाज सेवा को चुना। वह 1951 में सरला बहन के संपर्क में आकर कौसानी आश्रम पहुंचे। वह सरला बहन द्वारा पहाड़ी महिलाओं में शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए स्थापित कस्तूरबा महिला आमंत्रण मंडल में शामिल हुईं।उनके मुताबिक , “यह मेरे लिए स्वतः ही आकर्षण था क्योंकि सरला पहाड़ी महिलाएं आत्मनिर्भर, रूमानी और शिक्षित बनना चाहती थीं। मैं उस समय 17 साल की थी और मिशन के लिए काम करने के लिए पूरी ऊर्जा से भरी हुई थी।”

1951 में वे 18 साल की उम्र में लक्ष्मी आश्रम कौसानी पहुंच गईं। गरीब घरों की बालिकाओं को पढ़ाना और उन्हें जीवन जीने की कला सीखाने लगीं।वह बालिकाओं में ऐसे रम गईं कि दस साल कब निकल गए। उन्होंने फिर घर की तरफ लौटकर नहीं देखा। सरला भवन की वे अनुयायी बन गईं। 1957 में भू-दान आंदोलन में भाग लिया। उत्तराखंड से पहली पदयात्रा शुरू की। उत्तर प्रदेश और असम में विनोबा भावे के साथ रहीं। 1961 से 1965 तक बंजर गांव, ग्राम स्वराज, शराब विरोधी आंदोलन, वन संरक्षण, युवा महिला सशक्तिकरण, गाय, बकरी चूंगाने वाली किशोरियों के उत्थान और सर्वोदय आदि कामों में व्यस्त रहीं। इस दौरान बौगाड़ में ग्रामीण नव निर्माण का काम किया । नशाबन्दी, वन, टिहरी बाँध तथा खनन विरोधी आन्दोलनों के बाद नदी बचाओ आन्दोलन में सक्रिय हिस्सेदारी रही।

उत्तराखंड के पहाड़ों में 25 बाल मंदिर के जरिए राधा भट्ट ने 15000 बच्चों को फायदा पहुंचाया। इसके साथ ही 1 लाख 60 हजार पेड़ लगाकर पर्यावरण संरक्षण की मशाल भी जलाई।
राधा भट्ट ने उत्तराखण्ड, हिमालय और शेष देश में लगातार यात्राएँ और जनान्दोलनों में शिरकत की। देश और विदेश में गांधी विचार, पर्यावरण, हिमालय, नयी तालीम, तिब्बत और जनान्दोलनों के साथ मानव तथा स्त्री अधिकार पर लगातार बोलती-लिखती रहीं। फिनलैंड डेनमार्क, नार्वे और फिनलैंड में वयस्‍क शिक्षा और लोक हाई स्कूल प्रणाली में डिप्लोमा किया। बेरीनाग में स्वराज मंडल की स्थापित की। महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, खादी ग्रामोद्योग की गतिविधियों को बढ़ाया।

1975 सरला बहन के 75 वें जन्मदिन पर पद यात्रा शुरू की। 75 दिनों की लंबी यात्रा में वन संरक्षण, चिपको आंदोलन, शराब का विरोध और ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए लोगों को जागरूक किया। 1976 में देवीधूरा ब्लाक से पदयात्रा शुरू की। 65 गांवों में यह यात्रा पहुंची। 40 बालवाड़ी, 30 महिला संगठन, 12 गांव को कृषि के लिए प्रेरित किया। 1980 में खनन के खिलाफ मोर्चा खोला। 2006 से 2010 तक राधा बहन में उत्तराखंड के हिमालय और नदियों का सर्वेक्षण किया। हाईड्रो पावर परियोजनाओं का विरोध किया। नदी में सुरंग बनाने, विस्फोटकों का इस्तेमाल आदि पर लोगों को जागरूक किया।1980 में कोपेहेगन, डेनमार्क में अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन, 1982 में अमेरिका में गांधी विचार, महिला एवं सामाजिक विकास सम्मेलन में भाग लिया। 1984 में सेंट जेवियर्स विश्वविद्यालय कनाडा में विकास और लोगों की पहल कार्यक्रम में भाग लिया। 1987 में रावलपिंडी, पाकिस्तान में दक्षिण एशिया ग्रामीण विकास सम्मेलन में भाग लिया।सभाओं को संबोधित किया।राधा बहन ने 1988 में स्वीडन में दो महीने तक 30 बैठकों को संबोधित किया। पर्यावरण, अहिंसा, महिला सशक्तीकरण पर चर्चा की। 1975 में डनेमार्क में अहिंसा पर तीन महीने का व्याख्यान दिया। 1998 में बीजिंग, चीन में विश्व महिला सम्मेलन में भाग लिया।

वे लक्ष्मी आश्रम, हिमालय सेवा संघ, गांधी स्मारक निधि, कस्तूरबा ट्रस्ट, गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, महिला हाट, गुजरात विद्यापीठ आदि से आप सदा अभिन्न रहीं और संस्था निर्माता-पोषक बनीं।

राधा बहन ने हिमालय की बेटी किताब भी लिखी है। जिसे जर्मन और डेनिस भाषा में भी प्रकाशित किया गया है। इसके अलावा ‘वे दिन वे लोग’ भी पुस्तक हैं। यह यात्रा संस्मरण पर आधारित पुस्तक है। उन्हें जमनालाल पुरस्कार, बाल सम्मान, इंदिरा प्रियदर्शनी पर्यावरण, गौदावरी गौरव पुरस्कार आदि से भी सम्मानित किया गया है।

उनका मानना है कि गांधी एक शाश्वत विचार है। वे कहतीं हैं गांधी ने एक सेवक की प्रार्थना लिखी थी,जिसे हम भी सायंकालीन प्रार्थना में गाया करते हैं ।”हे नम्रता के सागर ” के विशेष संबोधन से आरंभ होनेवाली प्रार्थना की एक महत्वपूर्ण पंक्ति है ” तू तभी मदद को आता है ,जब मनुष्य शून्य बनकर तेरी शरण लेता है। ” मनुष्य के शून्य बनने की घडी की स्पष्ट पहचान और उसका प्रत्यक्ष एहसास मुश्किल से ही होता है,पर जब होता है तो मनुष्य अपनी अहं की शक्ति को भूलकर मदद के लिए पुकारता है। यह स्थिति व्यक्तिगत रूप से भी होती है और एक राष्ट्र के सामूहिक रूप से भी। उनके मुताबिक गांधी ने सिखाया और करके दिखाया कि आम जन की संगठित ,समर्पित प्रतिवद्ध अहिंसक शक्ति में वह ऊर्जा है कि वह हिंसक शक्ति को पराजित कर देती है। गांधी के विचार और दर्शन को समझने की स्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है। जनतांत्रिक सरकारों की हिंसा , पूंजी जगत के अपराधियों की हिंसा ,देश की व्यवस्थाओं में लगी बची हिंसा और दलगत राजनीति में बढ़ती हिंसा से समाज निजात पाना चाहने लगा है। आज का जनतंत्र आम जन के हित से अधिक मुट्ठी भर पैसेवालों के पक्ष में चला गया है ।जनता को कोई राह नहीं दिखती ,ऐसे समय में जब “मनुष्य शून्य बनकर अंधकार में कुछ खोजने टटोलने लगता है , तब कोई प्रकाश मिलना चाहिए। वह प्रकाश हैं गांधी।

हमारा शरीर और जीवन समाज ने बनाया है, हम समाज को क्या दे सकते हैं, यह सिद्धांत होना चाहिए। आज देखे विश्व में हिंसा की पराकाष्ठा है। नशा, नशा का बोलबाला है। ऐसे में युवाओं की देनदारी बढ़ती जाती है। गांधी अपने अंतिम समय तक सोच, विचार और व्यवहार से युवा थे। इसलिए वे आज भी युवाओं के रोल मॉडल हैं। आज पूरी दुनिया कह रही है कि अगर धरती को बचाना है तो गांधी के रास्ते पर चलना होगा।