96 वर्षीय गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री सुमनताई का निधन
सेवाग्राम, 3 मई । गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री सुमनताई का आज 3 मई 21 (सोमवार) को कस्तूरबा अस्पताल में निधन हो गया। वे 96 वर्ष की थी। सुमन ताई महात्मा गांधी के दर्शन से प्रेरित होकर 20 साल की उम्र से ही सर्वोदय आंदोलन से जुडी थी। आप ख्यात गांधी विचार एवं अर्थशास्त्री दिवंगत डॉ. ठाकुरदास बंग की सहधर्मिणी थी। वह अलोडी में एक फार्म हाउस पर रह रही थी।
सुमन ताई ने महिलाश्रम में अध्यापन करके सेवाग्राम में बुनियादी शिक्षा के काम को पुनर्जीवित करके ग्रामीण महिलाओं के विकास के लिए एक बड़ा काम किया है, जो महात्मा गांधी के ‘नई तालीम’ पर केंद्रित था। उन्होंने आचार्य विनोबाजी के भूदान, ग्रामदान, ग्रामस्वामी आंदोलन में सक्रिय होकर इस विरासत को जारी रखा। 1974-75 में उन्हें लोकनायक जयप्रकाश नारायण के क्रांतिकारी आंदोलन के दौरान महिला संगठन की कमान संभालने के लिए जेल में डाल दिया गया था। 1977 में चेतना विकास संस्था के माध्यम से उन्होंने महिला और बाल विकास कार्यक्रम की जिम्मेदारी संभाली और अंतिम समय तक वे इससे जुडी रही।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ठाकुरदास बंग महात्मा गांधी का आशीर्वाद लेने वर्धा गए थे। वह अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि के लिए अमेरिका जा रहे थे। गांधी ने उनसे कहा कि यदि वह अर्थशास्त्र में अध्ययन करना चाहते हैं, तो उन्हें भारत के गांवों में जाना चाहिए। इसके बाद ठाकुरदास बंग अमेरिका नहीं गए और उन्होंने अपना पूरा जीवन ग्रामीण सामुदायिक कार्य को समर्पित कर दिया। उनके साथ मिलकर सुमन ताई ने कंधे से कंधा मिलाकर महिला एवं बाल कल्याण की सेवा में अपने को झोक दिया।
सुमनताई का जन्म 5 मई 1925 को जलगाँव जिले के एरंडोल में हुआ था। उसकी माँ का नाम सुंदरबाई और पिता गंगाधर मानपुरे था। मुंबई में डाक्टरी का अध्ययन करते हुए उन्होंने ठाकुरदास बंग से शादी की, उसने शिक्षा छोड़ दी और वर्धा आ गई। वर्धा आने के बाद बंग दंपति के परिवार और काम के कारण, उनका जीवन बदल गया।
बंग दंपति आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुडे और दोनों ने गांवों में रह कर भूदान के लिए काम किया। बाद में आचार्य विनोबा भावे के निर्देश पर दोनों बिहार चले गए। वे ग्रामदान के कार्य में सक्रिय भागीदार बने। बाद में वर्धा में साधना सदन से जुडकर महिलाओं व बच्चों के साथ आश्रम में काम करना शुरू किया। उन्होंने आश्रम के जीवन के संस्कारों को अपने दोनों बच्चों अशोक और डॉ अभय बंग को प्रदान किये।
काम का लंबा अनुभव होने के बाद, सुमन ताई ने वर्धा में चेतना विकास संस्थान के माध्यम से बाल कल्याण और महिला सशक्तीकरण का काम शुरू किया। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए चेतना विकास एक मील का पत्थर बन गया। लगभग 125 गाँवों में काम चल रहा है।
गांधीजी के विचारों से प्रेरित होकर, सुमनताई ने संगठन के माध्यम से अपना काम जारी रखा। अपनी वृद्धावस्था के बावजूद, सुमन ताई, जिन्होंने हमेशा काम को प्राथमिकता दी और ग्रामीण महिलाओं के लिए अथक परिश्रम किया। सुमन ताई को एक चैनल द्वारा ‘अनछ माझ झोका जीवन गौरव पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
सुमन बंग ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि 1947 में जब देश को ब्रिटिश राज से आजादी मिली उस समय मैं बहुत छोटी थी। उस समय हर किसी ने देश की तरक्की के सपने देखे। आज के समय में राजनेता एक भूखे इंसान की तरह है। जिस तरह से खाना देखकर भूखा उस पर टूट पड़ता है, ठीक उसी तरह आज कल के नेताओं की सत्ता की भूख है जिसे पाने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते हैं। देश को आजादी मिली नहीं थी बल्कि हम उसके लिए लड़े थे, लेकिन देश को आजादी मिलने के बाद सबकुछ बदल गया, देश में स्वार्थ की पॉलिटिक्स हुई।
सप्रेस के कुमार सिध्दार्थ ने सुमन ताई के निधन पर श्रध्दासुमन अर्पित करते हुए कहा कि सुमन ताई आजीवन नि:स्वार्थ भाव से सामुदायिक विकास के कार्यों में जुटी रही । तप, त्याग और सेवा की संगम थी सुमन ताई। गांधी बिरादरी के एक वरिष्ठ स्तम्भ का ढह जाना, गांधी विचार परम्परा की एक बडी क्षति है।
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