27 अक्‍टूबर । 93 वर्षीय प्रख्यात गांधीवादी चिंतक एवं विचारक पदमश्री से सम्‍मानित डॉ. एसएन सुब्बराव ‘भाई जी’ का 26 अक्‍टूबर की देर रात जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में निधन हो गया। तीन दिन पूर्व उन्‍हें सांस में तकलीफ होने पर अस्‍पताल में भर्ती किया गया था, लेकिन 26 अक्‍टूबर की शाम को अचानक हृदयाघात होने से उनकी सेहत नाजुक थी। डाक्‍टरों ने इलाज के लिए उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा था। सुब्‍बरावजी के देहांत से गांधी विचार का एक और मजबूत स्‍तम्‍भ ढह गया। उनका अंतिम संस्‍कार जौरा में किया जाएगा।

गांधीवादी व्‍यक्तित्‍व के रूप में माने जाने वाले एस.एन सुब्बराव उन लोगों में से थे, जो 1942 के भारत छोड़ा आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए थे। सुब्बराव ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और के.कमराज जैसे दिग्गज नेताओं के साथ भी काम किया है। उन्‍होंने आचार्य विनोबा भावे के नेतृत्‍व में भूदान ग्रामदान आंदोलन में हिस्‍सा लिया। उनका जन्म कर्नाटक के बेंगलुरु में 7 फरवरी 1929 को हुआ था।

उन्होंने 1954 में पहला गांधी आश्रम, बागियों के लिए कुख्यात चंबल के जौरा गांव में 10 माह तक चलाया और अपने इस आश्रम के माध्यम से उन्होंने 1972 में कुख्यात डकैत मोहन सिंह, माधो सिंह सहित 600 से अधिक नामचीन डकैतों का आत्‍मसमर्पण करवाया।

ऐसे पड़ी थी जौरा में गांधी सेवा आश्रम की नींव

1960-70 के दौर में चंबल बेहद अशांत था। बीहड़ों की बंदूकों की गूंज दिल्ली तक सुनाई देती थी। आचार्य विनोबा भावे और भाई महावीर के प्रयासों से चंबल में पहला बागी समर्पण हुआ। इसमें लोकमन दीक्षित लुक्का सहित कई नामी बागियों ने आत्मसमर्पण किया। इसी दौरान गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बराव महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष पर चलाई गई प्रदर्शनी ट्रेन के प्रभारी थे। इसके संचालन से देशभर से चंदे की राशि आई।

यह राशि सरकार ने डॉ. सुब्बाराव को समर्पित कर दी। तब चंबल घाटी देश का सबसे अशांत क्षेत्र था। डॉ. सुब्बराव इस क्षेत्र में 1954 से आ रहे थे और उनकी ओर से यहां शिविर, गतिविधियां चलाई जा रही थीं। 1970 में जौरा में गांधी सेवा आश्रम की नींव पड़ी। दो वर्ष बाद ही यहां डॉ. सुब्बराव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में महात्मा गांधी की तस्वीर के सामने 572 बागियों ने अपने हथियार डाल दिए थे।

स्कूल में पढ़ते समय महात्मा गांधी की शिक्षा से सुब्बाराव प्रेरित थे। 9 अगस्त 1942 को मात्र 13 साल की उम्र में आजादी आंदोलन से जुड़ गए, ब्रिटिश पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने पर उन्होंने दीवार पर लिखा था ‘QUIT INDIA’. तभी से सुब्बराव स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए। छात्र जीवन के दौरान सुब्बराव ने स्टूडेंट कांग्रेस और राष्ट्र सेवा दल के कार्यक्रमों में लिया भाग था।

देश की तरूणाई के प्रेरणास्त्रोत

गांधी जी के जीवन दर्शन को भाईजी ने अपने जीवन में उतारा और गांधीजी के पदचिन्हों पर चलकर अपना समस्त जीवन समर्पित किया। अपने शिविरों के माध्यम से आपने लाखों युवाओं को प्रशिक्षित किया था। 93 वर्षीय भाई जी ने राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक के रूप में देश की तरूणाई को आंदोलित किया, वे देश की तरूणाई के प्रेरणास्त्रोत थे। उन्‍होंने देश विदेश के लाखों युवाओं में संस्कार, संस्कृति, अनेकता में एकता के विचार के बीच बोये है, जो आज प्रस्‍फुटित होकर देश – विदेश में अपने रचनात्‍मक कार्यों के माध्‍यम से टिमटिमा रहे है।

अनेक पुरस्‍कारों से नवाजा गया था

एसएन सुब्बराव को प्रतिष्ठित जमनालाल बजाज पुरस्कार से नवाजा गया। यह पुरस्कार उन्हें 6 नवंबर 2006 को मुंबई में इन्फोसिस के संरक्षक एनआर नारायणमूर्ति के हाथों मिला। इस पुरस्कार में उन्हें 5 लाख रुपए की राशि प्रदान की गई। इससे पूर्व सुब्बराव जी को राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से नवाजा गया था। काशी विद्यापीठ वाराणसी ने उन्‍हें मानद डाक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की थी।

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