24 सितम्बर 1969 को शुरु हुई ‘राष्ट्रीय सेवा योजना’ National Service Scheme (एनएसएस) राष्ट्र की युवाशक्ति के व्यक्तित्व विकास हेतु एक सक्रिय कार्यक्रम है जिसने अपने आधी सदी से अधिक के जीवन में अनेक उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं। प्रस्तुत है, ‘रासेयो’ की 54 वीं सालगिरह पर राहुल सिंह परिहार का विशेष लेख।
बरसों के संघर्ष के बाद भारत को मिली स्वतंत्रता की सुबह महात्मा गांधी की आंखों में कुछ सपने थे – आज़ाद भारत को विकास की नई दिशा देने के। इस विकास की कर्णधार बनी हमारी विशिष्ट सम्पदा – युवा शक्ति। विचार था कि यदि राष्ट्र के विद्यार्थियों की शक्ति को राष्ट्रनिर्माण में लगाकर सामाजिक क्रांति का अग्रदूत बनाया जाए, तो प्रगति की रफ्तार तीव्र होगी। बापू के इसी अभिमत को साकार रूप देने का बीड़ा भारत सरकार ने उठाया और अनेक शिक्षाविद और प्रबुद्धजनों ने मन्थनोपरांत जन्म दिया एक अभिनव योजना को, जो आजाद भारत में सामाजिक क्रांति की जननी बनकर ‘राष्ट्रीय सेवा योजना’ (‘रासेयो’) कहलाई।
1948 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित ‘प्रथम शिक्षा आयोग’ से इस अभिनव पहल को आकार मिलना प्रारम्भ हुआ जो 1964-66 में ‘डॉ डीएस कोठारी आयोग’ की सिफारिशों से मूर्त रूप में आई व भारत सरकार द्वारा 24 सितम्बर 1969 को अखिल भारतीय स्तर पर लागू हो सकी। 54 वर्ष का विस्तृत इतिहास समेटे यह योजना अब अपने 55 वें वर्ष में प्रवेश कर रही है।
सामुदायिक विकास के लिए स्वैच्छिक आधार पर उच्च शिक्षा से जुडे युवाओं में सामाजिक सरोकार का भाव जागृत करके जनकल्याणकारी गतिविधियों में संलग्न करना, इस योजना का मूल उद्देश्य रहा। भारतीय छात्र समुदाय को दिशा एवं विचारधारा युक्त बनाकर व्यक्तित्व विकास का कार्य भी इस योजना के मूल में है। विद्वानों का मत भी है कि शिक्षा और सामाजिक प्रशिक्षण युवा विकास की कुंजी है। इसी क्रम में ‘रासेयो’ आज ऐसी पहल सिद्ध हुई है जो छात्रों-युवाओं को सामाजिक जागरूकता प्रदान कर राष्ट्रनिर्माण के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाने हेतु तैयार करती है।
‘युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय’ का ‘युवा कार्यक्रम विभाग’ केंद्र स्तर पर एवं ‘उच्च शिक्षा विभाग’ राज्य स्तर पर ‘रासेयो’ का संचालन एवं विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। प्रत्येक संस्था में नियुक्त कार्यक्रम अधिकारियों के निर्देशन में ‘रासेयो’ के स्वयंसेवक समाज में जनजागृति की मशाल जला रहे हैं। एक ओर ‘स्वयं सजे वसुंधरा सँवार दें’ का गान करते हुए ये स्वयंसेवक रक्तदान, अन्नदान, वस्त्रदान कर जीवनदान दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर गांव-गांव जाकर प्रौढ़ों को साक्षर करना, खुले में शौच मुक्ति पर जागरूकता एवं शिविरों का आयोजन कर जन-जन तक शासकीय योजनाओं का लाभ पहुचाने के सार्थक प्रयास कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण का संकल्प हो या पौधारोपण, स्वच्छता हेतु प्रयास हों या मतदाता जागरूकता, वित्तीय साक्षरता जैसे अभियान, सभी जगह ये स्वयंसेवक अग्रणी भूमिका अदा कर रहे हैं।
कोविड काल का प्रतिकूल समय इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जब हर इंसान अपनी जान बचाने चार-दीवारी में कैद था, उस समय ये परोपकारी स्वयंसेवक राहगीरों को भोजन वितरण, प्रशासन के साथ रोको-टोको अभियान में सहभागिता, यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग एवं मास्क-सेनिटाइजर वितरण जैसे लोककल्याणकारी कार्य में संलग्न थे। समाजहित के लिए कार्य करते-करते ‘रासेयो’ के कुछ स्वयंसेवक अपने जीवन की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे।
जहां एक ओर मानव प्रकृति के एक पहलू के रूप में हम इंसान को अपने कर्त्तव्यों से ही विमुख होते देखते हैं, वहाँ ये स्वयंसेवक अपने सेवाभावी व्यक्तित्व की पराकाष्ठा का लोहा प्रस्तुत करते हैं और अखिल विश्व के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करते हैं। ऐसे अनेक कार्यों की श्रृंखला अनवरत वृद्धि को है। श्रम के प्रति सम्मान का भाव ‘रासेयो’ विद्यार्थियों में बखूबी विकसित करती है। विद्यार्थी श्रमदान करते हैं, सड़क, नाली व जलाशय निर्माण, गहरीकरण और अनेक निर्माण कार्यों को स्वयं के श्रम से सिंचित करते हैं।
ग्रामीण युवाओं और महिलाओं के विकास के लिए कौशल विकास प्रशिक्षणों का आयोजन, शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षण कार्य, स्वास्थ्य जांच शिविरों का आयोजन कर निःशुल्क दवा वितरण, पल्स पोलियो प्रतिरक्षण अभियान, वर्षा-जल संचयन कार्य, लैंगिक संवेदीकरण, बालश्रम और तस्करी से मुक्ति हेतु अभियान चलाकर ‘रासेयो’ के स्वयंसेवक बाल अधिकार संरक्षण हेतु संकल्पित हैं।
भारत को डिजिटली साक्षर करने की शपथ के साथ ही कैशलेस इंडिया, वित्तीय साक्षरता, डिजिटली उपलब्ध सुविधाओं से जन-जन को जागरूक करने का कार्य भी स्वयंसेवक करते हैं। एड्स के प्रति जागरूकता फैलाना, सिकल सेल एनीमिया, टीबी और केंसर जैसे रोगों की रोकथाम के लिए भी ‘रासेयो’ के प्रयास समाज से छुपे नहीं हैं।
नवाचारों के प्रणेता होने के साथ-साथ ‘रासेयो’ के कार्यकर्ताओं में आठों प्रहर गतिशील होने का यथार्थ दृष्टिगोचर होता है। वास्तविकता में 54 वर्षों की यात्रा को जब धरातल पर आंकते हैं, तो सदैव पाते हैं कि वर्षों से मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों रूप में ‘रासेयो’ फलीभूत हुई है। देश के 37 विश्वविद्यालयों के करीब 40,000 स्वयंसेवकों से शुरू होने वाली यह योजना आज 40 लाख से अधिक स्वयसेवकों का परिवार बन चुकी है।
‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ (टिस) द्वारा ‘रासेयो’ पर किये गए एक शोध की रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि ‘रासेयो’ द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य नेक इरादे और प्रगतिशील विचारों से प्रेरित रहा है। युवाओं के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण प्रयोगों में से ‘रासेयो’ प्रमुख है क्योंकि जिस तरह से योजना के माध्यम से मूल्यों, व्यक्तित्व विकास, कला और नेतृत्व कौशल का विकास होता है, वह किसी अन्य माध्यम से सम्भव नहीं।
इस योजना ने स्वैच्छिक स्वयंसेवा के क्षेत्र में विश्व भर का ध्यान आकर्षित किया है और समयानुसार अपनी उपलब्धियों से अनेक कीर्तिमान स्थापित किये हैं। भारत सरकार भी ‘रासेयो’ कर्मियों द्वारा किये गए स्वैच्छिक उत्कृष्ट सेवा कार्यों को मान्यता प्रदान करते हुए ‘रासेयो’ पुरस्कार से सम्मानित करती है। ये पुरस्कार देश के ऐतिहासिक दरबार हॉल, राष्ट्रपति भवन में महामहिम द्वारा प्रदान किये जाते हैं।
‘रासेयो’ के उल्लेखनीय प्रयासों को ‘गणतंत्र दिवस परेड’ में प्रदर्शित किया जाता है जहाँ वह एकमात्र गैर-सैन्य दस्ता होता है जो स्वयं से पहले आप के परोपकारी भाव को कदमताल से समूचे विश्व को परिचित कराता है। विदेशी भूमि पर देश के गौरव को युवा राजदूत बनकर प्रदर्शित करने का सुअवसर भी युवाओं को ‘रासेयो’ से मिलता है। विशेष शिविर से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सहभागिता करके युवा स्वयंसेवक गर्व और सम्मान प्राप्त करते हैं।
‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ ने ‘रासेयो’ की महत्ता को समझते हुए 13 अगस्त 2015 को सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को इसे ‘इलेक्टिव पाठ्यक्रम’ के तौर पर पढ़ाने के निर्देश दिए। गर्व की बात है कि मध्यप्रदेश में इस क्षेत्र में अग्रणी राज्य की भूमिका निभाते हुए विगत दो सत्रों से ‘रासेयो’ को इलेक्टिव विषय के रूप में स्नातक के विद्यार्थियों को पढ़ाया एवं प्रशिक्षित किया जा रहा है।
मध्यप्रदेश राज्य में संचालित मुख्यमंत्री युवा इंटर्नशिप एक जनजुड़ाव का प्रयास है। इस हेतु राज्य स्तर पर श्रेष्ठ विद्यार्थियों की चयन प्रक्रिया आयोजित हुई जिसमें सर्वाधिक (लगभग 75%) ‘रासेयो’ के स्वयंसेवक चयनित हुए जो जन-जन तक जाकर शासन की विभिन्न योजनाओं को पहुँचाने हेतु सारथी हैं।
54 वर्ष की यात्रा की सफलता के साथ आज की व्यवस्था की चुनौतियों पर नजर डालना भी आवश्यक है। आधुनिकता का यह काल जहाँ प्रदर्शन ही श्रेष्ठता का मानक है, वहाँ ‘रासेयो’ जैसी योजनाएं अपने बुनियादी उद्देश्य से भटकती प्रतीत होती हैं। प्रकृति और समाज की इस प्रयोगशाला में जहाँ विद्यार्थी समुदाय को समझता व उत्थान हेतु कार्य करता है, आज महज़ फोटोग्राफी और प्रदर्शन तक सीमित हो गया है। यह आगामी पीढ़ी के दृष्टिकोण व इस योजना के मजबूत भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
इसे मजबूत करने के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि बुनियादी भाव को प्रभावित न करते हुए इसके संरचनात्मक और कार्यात्मक पहलुओं का सुधार हो। योजना का नियंत्रण सक्षम और प्रतिबद्ध हाथों में दिया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थियों को संवेदनशील व्यक्तित्व के रूप में प्रशिक्षित किया जा सके। मानव-इंजीनियरिंग और किशोर मनोविज्ञान के जटिल कार्य की आवश्यकता भी आज प्रतीत होती है।
भारत की शैक्षिक विचारधारा के विकास का एक सर्वेक्षण इस योजना के पूर्वाग्रह को स्पष्ट रूप से इंगित करता है। ‘रासेयो’ की प्रतिबद्धता, सामाजिक तत्परता उचित कार्यान्वयन देश और शिक्षा के सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु वरदान समान है। स्वयंसेवक भारतीय युवा हैं और प्रखर व्यक्तित्व, गतिशील और जीवंत वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऊर्जावान, साहसी और आत्मविश्वासी युवा समाज का वह अनुभाग है जिसमें क्षमता का असीम भंडार है और उस भंडार को ‘रासेयो’ जैसी समग्र योजना से अनिवार्यतः उन्मुख होना चाहिए जो निकट भविष्य में उदीयमान भारत को समृद्धि के शिखर तक पहुचाएगी। (सप्रेस)
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