किसान संघ की बेंगलुरू की चिंतन बैठक में दिल्ली में हो रहे किसान आंदोलन को लेकर चिंता व विचार मंथन होना ही था। बैठक का मुख्य मुद्दा भी यही था। क्योंकि अपने अनुषांगिक संघठन भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार से उपेक्षित भारतीय किसान संघ ने 5 जून 2020 को अध्यादेश के आते ही देश की बीस हजार ग्राम समितियों के माध्यम से 450 जिलों में धरना ज्ञापन के माध्यम से इस बिल में सुधार को लेकर अपने सुझाव व प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय एवं कृषि मंत्री को भेजे थे । तब से ही भारतीय किसान संघ सरकार पर कानूनी सुधार के लिए दबाव बनाता आ रहा है ।
खेती किसानी के नए कानूनों पर पहले-पहल केन्द्र सरकार के समक्ष आपत्ति दर्ज करने वाला भारतीय किसान संघ सरकार की आफत बन गए नए कानूनों पर राष्ट्रीय मन्थन का महाभियान शुरू करने जा रहा है। सरकार के “ढाई – कानून” व किसान आंदोलन की चौसर पर “ढाई – घर” चलने की तमाम असफल कोशिशों के बाद थकी – हारी हुकूमत को किसान संघ ने सशर्त साथ देने का फैसला किया है। इन कानूनों में पुख्ता रद्दोबदल के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून व खाद्यान्न स्टॉक सीमा की छूट वापस लेने जैसी मांग के साथ किसान संघ गांव – गांव , खेत खलिहान तक पहुँच रहा है। ताकि किसानों में नए कानून को लेकर उपजे भ्रम को दूर किया जा सके। साथ ही कानून में बदलाव व समर्थन मूल्य कानून बनाने का दबाव सरकार पर बने।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संघठन भारतीय किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून की मांग व कानूनों में सुधार की अपनी 5 सूत्रीय मांग के साथ देशभर में अलख जगाएगा। इस बारे में किसान संघ के मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ राज्य के संघठन मंत्री महेश चौधरी ने बताया कि गणतंत्र दिवस पर किसान संघ के वार्षिक कार्यक्रम मातृभूमि पूजन के साथ हम करीब 1 लाख गाँवों में अपने 30 लाख किसानों तक पहुँचने का महाअभियान शुरू कर रहे है। किसान संघ अकेले मध्यप्रदेश के करीब 6 हजार गाँवों में किसानों से सम्पर्क करने जा रहा है। 26 जनवरी को मातृभूमि पूजन के साथ हमारे इस अभियान की शुरूआत होगी। एक पखवाड़े में यह सम्पर्क अभियान पूरा होगा।
बेंगलुरू में हुई भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में तीन दिन तक देशभर के 30 प्रांतों से आए 131 प्रतिनिधियों ने किसान आंदोलन को लेकर गहन मन्थन किया। दिल्ली में आंदोलन कर रहे किसानों व संघ की मांगें कुछ हद तक समान है। एक ही फ़र्क है ,संघ कानून वापसी के बजाए सुधार का पक्षधर है। किसान आंदोलन की समर्थन मूल्य कानून बनाने व खाद्यान्न स्टॉक की सीमा खत्म नही करने की मांग और बिजली बिल का विरोध जैसे मसले भी संघ की सूची में है। श्री चौधरी कहते है खेती के हित में इस अवसर का अधिकाधिक फायदा लेने की कोशिश सुधारों के माध्यम से भी हो तो संघ को गुरेज नहीं हैं। यह मौका भी हाथ से निकल गया तो हो सकता है सरकार खेती को उसके हाल पर छोड़ दे।इससे देश के किसान हताश हो जायेंगे।ं
ऐसे में स्वाभाविक है किसान संघ की बेंगलुरू की चिंतन बैठक में दिल्ली में हो रहे किसान आंदोलन को लेकर चिंता व विचार मंथन होना ही था। बैठक का मुख्य मुद्दा भी यही था। क्योंकि अपने अनुषांगिक संघठन भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार से उपेक्षित भारतीय किसान संघ ने 5 जून 2020 को अध्यादेश के आते ही देश की बीस हजार ग्राम समितियों के माध्यम से 450 जिलों में धरना ज्ञापन के माध्यम से इस बिल में सुधार को लेकर अपने सुझाव व प्रस्ताव प्रधानमंत्री कार्यालय एवं कृषि मंत्री को भेजे थे । तब से ही भारतीय किसान संघ सरकार पर कानूनी सुधार के लिए दबाव बनाता आ रहा है । यह बात अलग है सरकार ने संघ की मांगों को कोई तवज्जों नहीं दी न ही संघ नेताओं को किसी तरह का महत्व दिया गया । इसीलिए दिल्ली में किसान आंदोलन की शुरुआत में किसान संघ ने आंदोलन को समर्थन दिया था । इससे केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई थी । सरकार द्वारा संघ को किसी तरह आंदोलन से दूर कराया गया ।
कानूनी सुधार पर श्री चौधरी बताते है कि भारतीय किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के कानूनी अधिकार के साथ-साथ अन्य संशोधन करने के लिए कानूनी दायरे में आंदोलनरत रहा है।इस बारे में संघ की बैठक में लिये गए फैसलों की जानकारी देते हुए आप कहते है कि हमारी मांगें बहुत स्पष्ट है। संघ ने बैठक में पारित प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेज दिये है देखना है सरकार क्या करती है। संघ ने नए कानून में संशोधन की मांग की है ।
पहला तो किसानों से व्यापारी वर्ग धोखाधड़ी नहीं कर सके इसके लिये निजी व्यापारियों का केंद्र एवं राज्य स्तर पर बैंक सुरक्षा या बैंक गारंटी के साथ पंजीयन हो । इसकी जानकारी वेब पोर्टल पर दर्ज हो ।
दूसरा विषय , जिला स्तर पर कृषि न्यायालय की स्थापना हो (फास्ट ट्रेक कोर्ट )
तीसरा विषय है जीवन वस्तु अधिनियम से निर्यातक तथा प्रसंस्करण करने वाले बड़े उद्योगों को दी गई स्टाक सीमा की छूट वापिस करने का।
चौथी मांग कांट्रैक्ट फार्मिंग संविदा खेती करने वाली कंपनी एवं उद्योग को किसान का दर्जा नहीं दिए जाने की है।
पांचवा विषय है समर्थन मूल्य की अनिवार्यता के लिये सरकार कानून बनाए।
श्री चौधरी स्पष्ट करते है कि भारतीय किसान संघ पहले किसान आंदोलन के समर्थन में था बाद में आंदोलन का राजनीतिकरण होंने से संघ अलग हो गया। किसान आंदोलन के भटकने से भारतीय किसान संघ ने भी उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। संघ ने मांग की थी कि किसान आंदोलन व कानून के समाधान के लिए निष्पक्ष समिति गठित हो जिसमें देश के सभी पंजीकृत किसान संगठनों को लिया जाए । उच्चतम न्यायालय के निर्णय को सभी किसान संगठन स्वीकार करें।
श्री चौधरी ने कहा कि बेंगलुरु की बैठक में किसान आंदोलन के साथ कृषि कानूनों को लेकर किसानों में फैले भ्रम को दूर करने के उद्देश्य से किसानों के बीच हम जायेंगे। संघ के वार्षिक कार्यक्रम के तहत 26 जनवरी को अपने 30 लाख सदस्यों के साथ देश के 1 लाख गाँवों में कानून में सुधार की मांगों को लेकर जन जागरण अभियान शुरू होगा। इसके साथ ही तीन वर्षीय सदस्यता वर्ष के तहत देशभर में 600 से अधिक जिलों में 75000 से अधिक गांव में 750000 सदस्य बनाने का संकल्प बेंगलुरु की प्रतिनिधि सभा में लिया गया। भारतीय किसान संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा विगत 3 जनवरी को बेंगलुरु में संपन्न हुई थी।
कुल जमा किसान आंदोलन का जवाब देने भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार के बचाव में गांव- गांव , चौपाल- चौपाल के अभियान की उद्घघोषणा कर दो दिन में ही घर बैठ गई । भाजपा में चौपाल की जगह सोशल मीडिया व चैनल में आंदोलनरत हो गई है नतीजे में मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारतीय किसान संघ को अपनी केंद्र सरकार व भाजपा के किये धरे का वजन ढोना पड़ रहा है। यह अलग बात है भाजपा व इसकी सरकारों और नेताओं ने किसान संघ की उपेक्षा व इसे कमजोर करने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
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