दो दिन पहले आए केन्द्र के बजट पर प्रधानमंत्री ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि पिछले सालभर में कई ‘मिनी बजट’ आते रहे हैं और इस बार का बजट इसी श्रंखला का एक और पडाव भर होगा। एक फरवरी को संसद में दिए गए वित्तमंत्री के बजट भाषण से यह बात उजागर भी होती है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया है, उसे अगर कोई कॉरपोरेट हितैषी बजट कहता है, तो यह एक किस्म की नादानी और राजनीतिक धूर्तता ही है। 1991 में देश के भविष्य से बांध दी गईं नई आर्थिक नीतियों के बाद ऐसा कोई बजट नहीं रहा है, जिसका झुकाव कॉरपोरेट, उद्योगपतियों और धन्नासेठों की ओर न रहा हो। इस लिहाज से बीते करीब तीन दशकों में देश के कॉरपोरेटीकरण की दिशा में जो कदम धीमे उठाये जाते थे, उन्हें इस खास बजट में बेहद तेज कर दिया गया है। इतना तेज जिसकी उम्मीद धुर भाजपाई समर्थक और स्वदेशी विचारक भी नहीं कर रहे थे।
वित्तमंत्री ने बजट को छह हिस्सों में बांटा, जिन्हें उन्होंने 6 ‘पिलर्स’ कहा। हालांकि मोटे तौर पर यह बजट और वित्तमंत्री का भाषण तीन हिस्सों में बंटा हुआ है। पहले हिस्से में उन्होंने यह बताया है कि हम उद्योगपतियों को क्या और कैसे बेच रहे हैं। वहीं दूसरे में बताया गया है कि जो सरकारी संपत्ति, संस्थान, निगम सीधे तौर पर नहीं बेच पा रहे हैं, उसमें हम निवेश के जरिये कैसे कॉरपोरेट दखल बढ़ा रहे हैं। तीसरा हिस्सा वह है, जिसमें जनता के सरोकार की बातें तो हैं, लेकिन उन्हें इतना जटिल बनाकर बताया गया है कि चाहकर भी सीधे नतीजे निकाल पाना लगभग नामुमकिन है।
बजट में वित्तमंत्री ने कोरोना टीका से लेकर सैनिक स्कूल खोलने तक का ऐलान किया है, लेकिन मध्य वर्ग, जो बजट से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, उसके लिए बजट में कुछ भी खास नहीं है। न टैक्स सुधार की दिशा में कोई ठोस कदम है और न टैक्स स्लैब में बदलाव हुआ है। सरकार ने कोविड काल के इस पहले बजट में कोरोना, हेल्थ, वैक्सीन आदि पर काफी बयान दिए हैं और मौजूदा सरकार के डिजिटल के प्रति प्रेम का भी खूब गुणगान हुआ है।
75 साल से अधिक उम्र के लोगों को सरकार ने टैक्स से छूट दी है, लेकिन अगर इसे आप कोई बड़ी घोषणा मान रहे हैं, तो पहले तथ्य देख लीजिए। बजट भाषण में सीतारमण ने साफ कहा है कि केवल पेंशन और ब्याज आय वाले 75 साल से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयकर रिटर्न दाखिल करने की आवश्यकता नहीं होगी। ब्याज का भुगतान करने वाले बैंक अपनी ओर से कर की कटौती कर लेंगे। साफ है कि अन्य तरह की आय पर टैक्स रिर्टन दाखिल करना ही होगा। वहीं इस घोषणा से लाभ लेने वालों की संख्या बमुश्किल 3000 है। वैसे भी हमारे देश में 75 साल के व्यक्ति घरों की रोजमर्रा की आर्थिक गतिविधियों से बाहर हो जाते हैं और इन बुजुर्गों के बच्चे टैक्स से प्रभावित होते हैं।
सरकार ने अपने चहेते ‘डिजिटल इंडिया मिशन’ के लिए 3700 करोड़ रूपये का प्रस्ताव रखा है। यह इस महादेश के लिए ऊंट के मुंह में जीरा ही है क्योंकि अभी भी हमारी बड़ी आबादी डिजिटल की-बोर्ड से काफी दूर है। महज 28 प्रतिशत महिलाओं के हाथों में मोबाइल पहुंचा है और जिन युवाओं के हाथों में मोबाइल है, वह मनोरंजन का साधन ज्यादा है। ऐसे में एक डिजिटल नीति की सख्त जरूरत पिछले 10 सालों से महसूस की जा रही है, लेकिन उसकी कोई ठोस रूपरेखा बजट में देखने को नहीं मिली है।
एक तरफ वित्तमंत्री डिजिटल ट्रांजेक्शन से लेकर मजदूरों के लिए अलग वेबसाइट तक की बात कहती है, लेकिन जब वे अपना भाषण दे रही थीं, तो देश के किसानों तक, जो अपनी मांगों के लिए दिल्ली के ईर्द-गिर्द घेरा डाले हुए हैं, सरकार की आवाज नहीं पहुंच रही थी। वजह थी, दिल्ली के कई हिस्सों समेत आसपास के 17 जिलों में इंटरनेट की सुविधा का बंद होना। इसके पहले कश्मीर से लेकर बंगाल तक इंटरनेट सुविधा जब चाहे बंद कर दी जाती रही है। गोया इंटरनेट का इस्तेमाल महज अफवाहों के लिए ही होता है। ऐसी चाही-अनचाही इंटरनेट बंदी के वक्त डिजिटल पैमेंट से लेकर पढ़ाई और अन्य जरूरी ई-वर्क कैसे होंगे, इस पर सरकार की चुप्पी साफ करती है कि डिजिटल नीति के मामले में सरकार की कोई दिशा ही नहीं है।
बीते दस सालों में हमारे देश में कम-से-कम इतना आर्थिक शिक्षण तो हुआ ही है कि जो बजट महज सस्ता-महंगा जैसे सवालों के आसपास घूमता था, अब उस पर व्यापक चर्चा होने लगी है। इस बजट में वे दो चावल जिनसे खीर के पकने का अंदाजा लगाया जा सकता है, सोना-चांदी और मोबाइल हैं। बजट में मोबाइल पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई गई है, जिससे यह महंगा हो जाएगा और बताने की जरूरत नहीं है कि नए बनते समाज में मोबाइल हर एक नागरिक की जरूरत है। दूसरी ओर सोना-चांदी से कस्टम ड्यूटी घटाई गई है, और इसे भी आप बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि इस तरह की संपत्ति में निवेश कौन सा वर्ग करता है। सोने के प्रति भारतीयों का लोभ किसी से छुपा नहीं है, लेकिन सरकार भी जानती है कि देश की 85 प्रतिशत आबादी सोना-चांदी खरीदने की हैसियत नहीं रखती, जबकि 90 प्रतिशत आबादी को आज मोबाइल की जरूरत है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आगामी जनगणना के लिए 3,726 करोड़ रुपये आवंटित करने का प्रस्ताव रखते हुए बताया है कि पहली बार देश में डिजिटल जनगणना होगी। 2021 जनगणना का साल है और इसके साथ एक राजनीतिक सवाल ‘सीएए,’ ‘एनआरसी’ और ‘एनपीआर’ का भी जुड़ा हुआ है। बीते साल की शुरूआत में उभरे सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिले हैं, ऐसे में डिजिटल जनगणना की रूपरेखा एक ऐसे देश में कैसी और कितनी कारगर होगी, जहां अभी भी डिजिटल शिक्षण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है, यह देखना दिलचस्प होगा।
बजट भाषण में पेट्रोल पर 2.50 रुपये और डीजल पर 4 रुपये का ‘कृषि सेस’ लगाने का ऐलान किया गया है। ‘उज्ज्वला योजना’ में एक करोड़ और लाभार्थियों को शामिल करने की घोषणा हुई है, जो निश्चित तौर पर एक अच्छी पहल है, लेकिन दिक्कत यह है कि सरकार आम आदमी की रसोई की जरूरतों को लगातार महंगा करती जा रही है। इसमें गैस सिलिंडर तो सरकार से एक बार में मिल जाता है, लेकिन हर महीने होने वाली गैस की खपत लगातार महंगी होती जा रही है और अनाज से लेकर सब्जियों के बढ़ते दाम रसोई को महंगा कर रहे हैं। अब आगे सरकार गैस पाइप लाइनों को भी कॉरपोरेट को सौंपने जा रही है, जिससे आम आदमी की रसोई पूरी तरह से उद्योगपतियों के हाथों में होगी। ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम – 1955’ में सरकार पहले ही बदलाव कर चुकी है, जिसके विरोध में दिल्ली के आसपास किसान आंदोलनरत हैं।
कोरोना वैक्सीन को लेकर भी बजट में खूब चर्चा हुई है। 35,000 करोड़ रुपयों के ऐलान ने इसे सरकारी कोशिशों का ताज साबित किया है। हालांकि सरकार ने यह नहीं बताया है कि यह पैसा डिस्ट्रीब्यूशन पर खर्च होगा या फिर पूरी वैक्सीन ही सभी भारतीयों को मुफ्त में उपलब्ध होगी। इसी बीच दो अन्य टीकों के इस्तेमाल की मंजूरी ने भी सवालों की फेहरिस्त को बढ़ा दिया है। अभी तक के वैक्सीन के नतीजों से आम नागरिकों में चिंता है, लेकिन सवालों को देशद्रोह मानने वाली सरकार ने अपनी मंशा साफ कर दी है।
वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा है कि सरकार की योजना 1.75 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश की है। इसका अर्थ हुआ कि सरकारी संस्थाओं के बेचने का काम तेजी से जारी रहेगा। सरकार ने बीमा क्षेत्र में ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (एफडीआई) की सीमा 49 से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया है। साथ ही सात बंदरगाह परियोजनाओं से करीब 2000 करोड़ रुपए के विनिवेश की घोषणा की है। इसके अलावा पाइप लाइनों से लेकर रेलवे तक को बेचने की तेजी दिखाती है कि सरकार कॉरपोरेट के जरिये ही आम आदमी के हाथों में पैसा पहुंचाने की अपनी असफल हो चुकी नीति पर आगे बढ़ रही है। बुनियादी ढांचे से लेकर संस्थानों तक को कॉरपोरेट हाथों में सौंपकर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है।
कुल मिलाकर यह बजट आर्थिक नीतियों में कोई क्रांतिकारी बदलाव तो नहीं लाया है, लेकिन इसे आने वाले सालों में इस बात के लिए याद रखा जाएगा कि देश के कॉरपोरेटीकरण की प्रक्रिया में यहां से तेजी लाने की कोशिश की गई थी। सरकार ने अपनी नीतियों में साफ कर दिया है कि वह पहले कॉरपोरेट को पैसा देगी और उसके जरिये चलने वाली आर्थिक, ढांचागत और सर्विस सुविधाओं का फायदा नागरिकों तक पहुंचेगा। दिक्कत यह है कि सरकार की नौकरशाही व्यवस्था में जहां भ्रष्टाचार के जरिये जनता का पैसा अधिकारियों के घरों तक पहुंच जाया करता था, अब वह कॉरपोरेटीकरण के जरिये सीधे उद्योगपतियों की तिजोरियों में पहुंच जाएगा।(सप्रेस)
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