विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई)

प्रो. कन्हैया त्रिपाठी

जंगल की कटाई की जगह वृक्ष-रोपड़ संस्कृति हमारे जीवन का हिस्सा हो। उनकी देखरेख की संस्कृति हमारे जीवन की संस्कृति बने। यह तभी होगा जब हमारी विश्वास की सघनता बढ़ेगी इस प्रकृति से, जल से और हमारे जलवायु से। यह तभी होगा जब हम अपनी नवोदित पीढ़ी में भी प्रकृति से प्रेम करने का बीज अंकुरित कर सकेंगे। ऐसा करने पर, एक अहिंसक सुखद यात्रा का मनुष्य तभी भागीदार बन सकेगा जब हमारे जीवन में हमारे जीवन के संबल होंगे।

प्रतिवर्ष 3 मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाया जाता है। भारत में प्रेस को सदैव लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की संज्ञा दी जाती रही है क्योंकि लोकतंत्र की मजबूती में इसकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को बहुत अहम माना गया है लेकिन विडम्बना है कि विगत कुछ वर्षों से यहां भी प्रेस स्वतंत्रता के मामले में लगातार कमी देखी जा रही है। कलम को तलवार से भी ज्यादा ताकतवर और तलवार की धार से भी ज्यादा प्रभावी इसीलिए माना गया है क्योंकि इसी की सजगता के कारण न केवल भारत में बल्कि अनेक देशों में पिछले कुछ दशकों के भीतर बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हो सका, जिसके चलते बड़े-बड़े उद्योगपतियों, नेताओं तथा विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों को एक ही झटके में अर्श से फर्श पर आना पड़ा। यही कारण हैं कि समय-समय पर कलम रूपी इस हथियार को भोथरा बनाने या तोड़ने के कुचक्र होते रहे हैं और विभिन्न अवसरों पर न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में सच की कीमत कुछ पत्रकारों को अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ती है।

3 दिसम्बर 1950 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने सम्बोधन में कहा था, ‘‘मैं प्रेस पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, उसकी स्वतंत्रता के बेजा इस्तेमाल के तमाम खतरों के बावजूद पूरी तरह स्वतंत्र प्रेस रखना चाहूंगा क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता एक नारा भर नहीं है बल्कि लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है।’’ पिछले दशकों में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में स्थितियां काफी बदल गई हैं। आज दुनियाभर में पत्रकारों पर राजनीतिक, अपराधिक और आतंकी समूहों का सर्वाधिक खतरा है और भारत भी इस मामले में अछूता नहीं है। विड़म्बना है कि दुनियाभर के न्यूज रूम्स में सरकारी तथा निजी समूहों के कारण भय और तनाव में वृद्धि हुई है।

पेरिस स्थित ‘रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स’ (आरएसएफ) अथवा ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ नामक संस्था द्वारा हर साल अपनी वार्षिक रिपोर्ट में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर जो तथ्य प्रस्तुत किए जाते रहे हैं, वे सदैव चौंकाने वाले होते हैं। हालांकि यह अलग बात है कि कुछ देश इस रिपोर्ट में जारी किए जाने वाले आंकड़ों को पूर्वाग्रह से प्रेरित बताकर खारिज भी करते रहे हैं। ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ एक ऐसा गैर-लाभकारी संगठन है, जो विश्वभर के पत्रकारों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करने और मुकाबला करने के लिए कार्यरत है और प्रतिवर्ष ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ अर्थात् ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ नामक रिपोर्ट पेश करता है। ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ में उसने भारत सहित विभिन्न देशों में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति की विवेचना करते हुए स्पष्ट किया था कि किस प्रकार विश्वभर में पत्रकारों के खिलाफ घृणा हिंसा में बदल गई है, जिससे दुनियाभर में पत्रकारों में डर बढ़ा है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 के मुताबिक भारत 180 देशों में से 161वें स्थान पर पहुंच गया है जबकि 2022 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता की सूची में भारत 150वें पायदान पर खड़ा था। यह रिपोर्ट प्रेस स्वतंत्रता के लिए भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट का संकेत देती है। रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारों के साथ व्यवहार के लिए ‘संतोषजनक’ माने जाने वाले देशों की संख्या बढ़ रही है लेकिन ऐसी संख्या भी कम नहीं है, जहां स्थिति ‘बहुत गंभीर’ है।

रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स द्वारा जारी दुनियाभर के देशों की प्रेस फ्रीडम रैंकिंग में भारत जहां 2023 में 2022 के मुकाबले 11 पायदान नीचे गिरा, वहीं 2022 में भी 2021 की रैंकिंग के मुकाबले 8 स्थान नीचे फिसला था। 2021 की रैंकिंग में भारत का स्थान 142वां था। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 की सूची में शीर्ष 10 देशों में नॉर्वे, आयरलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, नीदरलैंड, लिथुआनिया, एस्टोनिया, पुर्तगाल तथा ईस्ट तिमोर शामिल हैं जबकि प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले देशों में 171वें पायदान से 180वें पायदान पर क्रमशः बहरीन, क्यूबा, म्यांमार, इरीट्रिया, सीरिया, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, वियतनाम, चीन तथा उत्तर कोरिया रहे।

भारत के लोकतंत्र को तो दुनिया का सबसे सफल और बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, वहीं अगर नार्वे जैसा छोटा सा देश प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में लगातार शीर्ष स्थान पर विराजमान है तो यह स्थिति भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश के लिए सही स्थिति नहीं है। प्रेस की आजादी के मामले में अगर भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देश हमसे आगे हैं तो गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है कि हम इस मामले में वर्ष दर वर्ष क्यों फिसल रहे हैं?

प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में यह गिरावट स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। प्रेस की स्वतंत्रता में कमी आने का सीधा और स्पष्ट संकेत यही है कि लोकतंत्र की मूल भावना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो अधिकार निहित है, उसमें धीरे-धीरे कमी आ रही है। समाज में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान रहा है, इसीलिए इसे लोकतंत्र का चौथा मजबूत स्तंभ माना गया है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार खासकर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा बगैर किसी जानकारी को जांचे-परखे केवल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए झूठ का बवंडर तैयार किया जाता है, उसे देखकर कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है मानो टीवी चैनल पर समाचाऱ या कोई न्यूज कार्यक्रम नहीं बल्कि कोई मसालेदार राजनीतिक फिल्म चल रही हो। इसका सबसे बड़ा नुकसान यही हो रहा है कि लोगों का विश्वास मीडिया पर निरंतर कम हो रहा है और लोगों का आकर्षण सोशल मीडिया की ओर बढ़ रहा है, जहां पहले से ही फेक न्यूज बहुत बड़ी समस्या मौजूद है तथा एआई इस समस्या को और ज्यादा बढ़ाने में बड़ा योगदान दे रही है।

भारतीय संविधान में प्रेस को अलग से स्वतंत्रता प्रदान नहीं की गई है बल्कि उसकी स्वतंत्रता भी नागरिकों की अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता में ही निहित है और देश की एकता तथा अखण्डता खतरे में पड़ने की स्थिति में इस स्वतंत्रता को बाधित भी किया जा सकता है किन्तु ऐसी कोई स्थिति निर्मित नहीं होने पर भी देश में पत्रकारिता का चुनौतीपूर्ण बनते जाना लोकतंत्र के हित में कदापि नहीं है बल्कि यह स्पष्ट रूप से कुछ शक्तियों द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के चौथे स्तंभ को ध्वस्त करने का ही प्रयास माना जाता है। कल्पना की जा सकती है कि प्रेस की स्वतंत्रता अगर इसी प्रकार सवालों के घेरे में रही तो पत्रकार कैसे पारदर्शिता के साथ अपने कार्य को अंजाम देते रहेंगे? प्रेस की स्वतंत्रता को बाधित करने के प्रयासों के चलते कैसे सच को उजागर कर उसे निष्पक्ष तरीके से जनता तक पहुंचाया जाना संभव होगा? देश में प्रेस की स्वतंत्रता बरकरार रहे, इसके लिए किसी मीडिया संस्थान से जुड़े पत्रकार हों या स्वतंत्र पत्रकार, उनकी सुरक्षा को लेकर कड़े कानून बनाए जाने की सख्त दरकार है ताकि बगैर किसी दबाव या भय के पत्रकार अपना कर्त्तव्य बखूबी निभाते रहें। हालांकि यह भी बेहद जरूरी है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ‘प्रेस’ को भी अपनी सीमाओं और मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए अपनी स्वतंत्रता का सही इस्तेमाल करना चाहिए।

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