यात्रा वृत्तांत
लगभग 8 महीने घर के भीतर बंधे रहने के बाद यह पहला मौक़ा था जब फिर से यात्रा में निकल पड़ना था I इन 8-9 महीनों में दुनिया में कितनी सारी उथल-पुथल हो गयी I जैसे दुनिया ने अपना घूमना ही रोक दिया और हम सब मुंह के बल अचानक गिरे I दुनिया में सबसे पसंदीदा जगह घर भी एक कैदखाना सा लगने लगा I देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था चर्मरा सी गयी I इससे सही तरीके से उबार पाने के लिए अभी एक लंबा वक़्त लगना ही है I लेकिन एक बात जो गौर करने वाली है वह यह कि गाँव से पलायन कर जा शहर बसे हुए और अपने पारंपरिक व्यव्य्साय और कला को छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर हो चुके लोग अपने गाँव की ओर वापस चल पड़े I और गाँव में ही एक लंबा वक़्त बिताया I और अपनी स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की ओर जुड़े I अपनी ज़मीन से जुड़े I
इसी अहिंसक स्थानीय अर्थव्यवस्था को थोडा और गहराई से समझने के लिए एकता परिषद् और अंश हैप्पीनेस सोसायटी ने मिलकर 18 से 25 नवंबर तक गो रूर्बन बस यात्रा की योजना बनायी I मुझे भी इस यात्रा में शामिल होने का मौक़ा मिला I यह यात्रा इटारसी से चलकर कटनी में एक चार दिवसीय कैम्प के साथ ख़तम होगी
मैं और मेरे कुछ दोस्त पथरौटा, इटारसी में भारत कालिंग पहुंचे, यात्रा की शुरुआत यहीं से होनी थी I यात्रा के पहले दिन सुबह-सुबह 5 बजे उठना पड़ा I उगता हुआ लाल सूरज न जाने कितने सालों बाद देखने मिला I हमें स्थानीय अर्थव्यवस्था के अहिंसक परिवेश को समझने के लिए तीन अलग-अलग व्यवसाय की प्रक्रिया को समझने का मौक़ा मिला यह तीनों व्यवसाय इटारसी के पथरौटा नाम के गाँव में पिछले कुछ सालों में शुरू हुए I हम सभी तीन समूहों में बंटकर इन तीनों स्थानीय व्यवसायों को समझने के लिए और बातचीत करने के लिए निकले I इन तीन व्यवसायों में एक रेस्टोरेंट था जिसको शुरू करने वाली पहले खेती किया करते थेI दूसरा व्यवसाय कबाड़ का था, कबाड़ से भी किस तरह बिज़नेस तैयार किया जा सकता है यह जानना बड़ा ही रोचक रहाI एक युवा किसान से भी मुलाकात करने का मौक़ा मिला जो जैविक खेती करते हैं I इन तीनों ही व्यवसायों में हमने स्थानीय अर्थव्यवस्था के अहिसंक परिवेश को समझने और उनपर बातचीत करने को कोशिश की I दिन भर बिताने के बाद अब हमारी यात्रा का रात्री पड़ाव था सुहागपुर के पास चेडका नामक गाँव I जिसे एक गांधी ग्राम की उपाधि प्राप्त है I कुछ समय हमें इस गाँव के लोगों से मिलने और बातचीत करने का मौका मिलेगा I … यात्रा तो जारी है ही I