प्रकृति के अद्भुद सुंदर इलाकों को पर्यटन के नाम पर उजाडने का हमारा विकास-वादी चलन अब सुदूर लक्षद्वीप में पांव पसार रहा है। आदिवासी बहुल शांत और समझदार लोगों की कुछ हजार की बसाहट अब विकास-वादियों की आंख में खटकने लगी है। नतीजे में पर्यटन आधारित विकास की परियोजनाएं खडी की जाने लगी हैं। आखिर क्या हैं, लक्षद्वीप को विकसित करने की ये योजनाएं?
धरती पर स्वर्ग की क्या कल्पना हो सकती है? जहां लोग आपस में मिलकर रहते हों। कोई किसी से झगड़ा न करता हो। कोई अपराध न होता हो। आर्थिक विषमता ज्यादा न हो। लोगों को शराब या नशे की बुरी लत न हो। सभी लोगों को शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधाएं समान रूप से उपलब्ध हों। लोगों का पर्यावरण के साथ तालमेल हो, ताकि लोगों के जीने के तरीके में प्राकृतिक संसाधनों कर क्षरण या दोहन न हो। विकास का तरीका सतत हो। लोग कोविड जैसी बीमारी के प्रकोप से बचे रहें। यह कोई काल्पनिक जगह की बात नहीं हो रही। धरती और भारत में एक ऐसी जगह थी, जब तक सरकार ने यहां हस्तक्षेप नहीं किया था और गुजरात के एक भूतपूर्व गृहमंत्री प्रफुल पटेल को यहां प्रशासक बना कर नहीं भेजा था।
भारत के लिए सामाजिक, राजनीतिक व सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण लक्षद्वीप अरब महासागर में स्थित एक केन्द्र शासित प्रदेश है। जैव-विविधता व परिस्थितिकी इसकी विशेषता है। लोग शांतिप्रिय हैं व सामाजिक सौहार्द्य पसंद हैं। 93 प्रतिशत आबादी आदिवासी मुस्लिम हैं जिन्हें अनुसूचित अधिकार मिले हुए हैं। इन्हें अपनी संस्कृति, विविधता व विशेषता बनाए रखने का संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। जब से प्रफुल पटेल यहां प्रशासक बन कर आए हैं वे ताकत के बल पर यहां सब कुछ तहस-नहस कर देना चाहते है। अभी तक जो 34 प्रशासक आए, वे भारत सरकार में संयुक्त-सचिव स्तर के अधिकारी होते थे, जो स्थानीय लोगों व जिला पंचायत के जन प्रतिनिधियों के साथ मिलकर यहां का प्रशासन चलाते रहे थे। लक्षद्वीप को राज्य का दर्जा नहीं है और यहां का प्रशासक राज्यपाल या उप-राज्यपाल की भूमिका में भी नहीं हो सकता। वर्तमान प्रशासक प्रफुल पटेल एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और शासक व तानाशाह की भूमिका में यहां भाजपा का वर्चस्व कायम करना चाहते हैं।
प्रशासक पटैल खुद बता चुके हैं कि वे लक्षद्वीप को पड़ोसी मालदीव जैसी पर्यटन की दृष्टि से आकर्षक जगह बनाना चाहते हैं। लक्षद्वीप की 70,000 आबादी मुनाफाखोर पर्यटन व्यापारियों व उद्योगपतियों, जिनके लिए शराब व जुए के केन्द्र खोले जाएंगे, की हवस का शिकार बन खत्म हो जाएगी। यहां की विशेषता मूंगा अरब सागर में डूब जाएंगे।
लक्षद्वीप में एक साल से कोविड का कोई भी मामला नहीं था, क्योंकि कोच्चि, केरल से लक्षद्वीप आने वाले सभी लोगों को पहले अलग-थलग रखने की व्यवस्था थी। वर्तमान प्रशासक ने यह व्यवस्था खत्म कर दी और लक्षद्वीप पर कोविड के हजारों मरीज संक्रमित हो गए। विकास के नाम पर लोगों को अपनी जमीन से बेदखल किया जा रहा है। पर्यटन के विकास के नाम पर पारम्परिक मछली मारने के व्यवसाय को बर्बाद किया जा रहा है। खाड़ी में सोलर पैनल लगाकर लक्षद्वीप की वनस्पति व जीव जगत समेत परिस्थितिकी को हानि पहुंचेगी। जहां कोई अपराध का इतिहास न हो, जहां की जेलें खाली हों, वहां पर ‘समाज विरोधी गतिविधियों की रोकथाम विनियमन’ लागू कर प्रशासन का विरोध करने वालों को जेल भेजने की तैयारी है। शराब पर लगी पाबंदी को हटा दिया गया है। यह आश्चर्य की बात है कि प्रफुल पटेल, अमित शाह व नरेन्द्र मोदी तीनों गुजरात से हैं जहां, महात्मा गांधी का गृह राज्य होने के कारण, आजादी के समय से ही शराब पर रोक लगी हुई है।
लक्षद्वीप में मांसाहारी भोजन का प्रचलन है, किंतु प्रफुल पटेल ने एक ‘पशु संरक्षण विनियमन’ लागू किया है जिसके तहत गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। पशुपालन विभाग के साथ-साथ मुर्गी फार्म, मवेशी फार्म भी बंद कर दिए गए हैं और गौ-भैंस का मांस रखने व बेचने पर जुर्माना लगाया जा रहा है। छात्रों द्वारा विद्यालयों में मांसाहारी भोजन का सेवन करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। गौरतलब है कि भाजपा की ही सरकारों ने गोवा व पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां आबादी गौ-मांस का सेवन करती है वहां गौ-हत्या पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। किंतु एक छोटी सी आदिवासी आबादी के साथ वह मनमानी कर रही है। यदि ऐसा कोई निर्णय लिया भी जाना था तो इसपर लोगों के साथ विचार विमर्श होना चाहिए था। परम्परा के नाम पर मंदिरों में पशुओं की बलि को न रोककर मुस्लिम आबादी को गौ-भैंस मांस का सेवन करने से रोकना पशु प्रेम नहीं, बल्कि तुच्छ राजनीति है।
प्रफुल पटेल ने 15-20 वर्षों से संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। शैक्षणिक संस्थान बंद कर शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई है। नई नियुक्तियों पर रोक लगा दी है। पंचायत चुनाव में खड़े होने के लिए दो बच्चों से कम का मानक लागू कर दिया है। ‘लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन – 2021’ का बजट स्थानीय मजदूरों के हितों के खिलाफ है। इलाज के लिए हवाई एम्बुलेंस सेवा से स्थानीय नागरिक वंचित हो गए हैं। ये सारे निर्णय मनमाने तरीके से लिए गए हैं जो भाजपा सरकारों का काम करने का अब चिर-परिचित तरीका हो गया है।
प्रशासक की लक्षद्वीप को मालदीव जैसा पर्यटक स्थल बनाने की कोशिश यहां की पारिस्थितिक व सतत विकास की प्रक्रिया के विपरीत है। वे लोगों के अंदर भय पैदा कर यहां के लोकतंत्र व परम्परा को चुनौती दे रहे हैं। प्रशासक न्यायमूर्ति आर. रवीन्द्रन समिति की सतत विकास पर व्याख्या का उल्लंघन कर रहे हैं। यह देश के संविधान और उसकी प्रस्तावना में उल्लिखित उद्देश्यों का भी उल्लंघन है। यह लक्षद्वीप के लोगों में अलगाव की भावना लाकर भारत के संघीय ढांचे की भावना के लिए भी खतरा है।
लक्षद्वीप के समाज का चरित्र समाजादी है जहां न ज्यादा अमीरी है न ज्यादा गरीबी, जीवन स्तर एक जैसा है, शिक्षा व स्वास्थ्य के मानक बेहतर हैं, जनसंख्या वृद्धि पर स्वानुशासन पूर्वक नियंत्रण है, अधिकांश लोग एक धर्म को मानने वाले हैं, एक दूसरे को जानते हैं व यहां सामाजिक सौहार्द्य है। मछली मारना व नारियल उत्पादन आजीविका के स्रोत हैं। जैव विविधता व परिस्थितिकी की स्थिति अच्छी है। वर्तमान प्रशासक स्थानीय लोगों की इच्छा के खिलाफ लक्षद्वीप को मालदीव बनाना चाहता है। यह संविधान विरोधी है। लक्षद्वीप में सामान्य जीवन बहाल करने के लिए मौजूदा प्रशासक का हटाया जाना जरूरी है। लक्षद्वीप के औरत, आदमी, बच्चे, जवान सभी लक्षद्वीप को बचाने के लिए एक साथ आ गए हैं। (सप्रेस)
(ये आलेख केरल के भूतपूर्व सांसद थम्पन थॉमस एवं डॉ. संदीप पांडेय ने संयुक्त रूप से लिखा है। )
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