राजेन्द्र चौधरी

दुनिया भर में सम्पन्नता मापने का प्रचलित पैमाना ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (जीडीपी) ‘आर्थिक वृद्धि दर’ से ही उपजा है, लेकिन क्या यह किसी देश की वास्तविक सम्पन्नता को उजागर कर सकता है? इसी पैमाने पर अमरीका को यूरोप से अधिक सम्पन्न माना जाता है, लेकिन क्या यह मान्यता सही है?

कहा जाता है कि 2010 के बाद से अमरीकी अर्थव्यवस्था यूरोप की तुलना में दो-गुना तेज़ी से आगे बढ़ रही है और इसके लिए यूरोप में सरकारी दखलंदाजी को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। सवाल है कि क्या यूरोप के नागरिकों की स्थिति अमरीकियों से बदतर होती जा रही है? यह धारणा अपवाद नहीं हैं। आज का आर्थिक विमर्श ‘आर्थिक वृद्धि दर’ केन्द्रित हो गया है, हालाँकि दशकों पूर्व अर्थशास्त्री इसकी सीमाओं को रेखांकित कर चुके हैं। इस कमी को दूर करने के लिए सुख-समृद्धि के कई वैकल्पिक मापक आ गए हैं, परन्तु मुख्यधारा का विमर्श अभी भी ‘आर्थिक वृद्धि दर’ केन्द्रित ही बना हुआ है।

यूरोप और अमरीका के निवासियों की सुख-संतुष्टि की तुलना करने के लिए बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ती। दशकों से ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ समय-समय पर ‘मानव विकास रिपोर्ट’ प्रकाशित करता आ रहा है। सन् 2023-24 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अमरीका प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय के आधार पर दुनिया में नौवें क्रम पर है, परन्तु ‘मानव विकास सूचकांक’ के आधार पर इसका स्थान गिर कर 20वां रह जाता है। यूरोप के 12 देश ‘मानव विकास सूचकांक’ के मामले में अमरीका से आगे हैं जिनमें से 7 देश गैर-यूरोपीय हैं।

क्या ‘मानव विकास सूचकांक’ महत्वपूर्ण है? किस प्रकार इन 12 यूरोपीय देशों के नागरिकों की स्थिति आर्थिक वृद्धि में अमरीका से पिछड़ने के बावज़ूद बेहतर है? ‘मानव विकास सूचकांक’  खुशहाली के तीन पक्षों पर आधारित होता है – लम्बी एवं स्वस्थ जीवन की संभावना, निवासियों की ज्ञान तक पहुँच एवं उनका (भौतिक) जीवन स्तर। समान महत्व के इन तीन पक्षों का मूल्यांकन निम्न मापदंडों पर आधारित होता है : जीवन प्रत्याशा, शिक्षा प्राप्ति की अपेक्षित अवधि एवं 25 वर्ष से अधिक उम्र के निवासियों की शिक्षा अर्जन की अवधि तथा प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय। यानी ‘मानव विकास सूचकांक’ में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय भी शामिल है, उसकी अनदेखी नहीं की गई है, परन्तु उसे ही खुशहाली का एक मात्र पैमाना नहीं माना गया है।

‘मानव विकास सूचकांक’ में अमरीका का पिछड़ना स्पष्ट तौर पर इंगित करता है कि इन तीन महत्वपूर्ण पक्षों के समग्र मूल्यांकन में अमरीकी यूरोप के 12 देशों से पीछे हैं। उदाहरण के तौर पर अमरीका में जीवन प्रत्याशा 78.2 साल है, यानि आज जन्मा अमरीकी बच्चा औसतन 78.2 साल तक जीवित रहेगा। यूरोप के सभी देशों में जन्मे बच्चे इससे अधिक आयु पाएंगे। यूरोप में जीवन प्रत्याशा 84.7 वर्ष है। यानि अमरीकी बच्चा यूरोप में जन्मे बच्चे से 6.5 वर्ष कम आयु पायेगा। अमरीकी बच्चे को 16.4 वर्षों की शिक्षा मिलने की आशा है, जबकि यूरोप के 11 देशों में बच्चों को इससे लम्बी शिक्षा मिलेगी, अधिकतम 19.2 वर्षों तक। यूरोप के बच्चों को अमरीकी बच्चों से 2.8 वर्ष अधिक शिक्षा मिल सकती है।

बढ़ती आर्थिक वृद्धि के दौर में अमरीका के मानव विकास में कितना सुधार हुआ है? वह यूरोप से पिछड़ रहा है या उसको पकड़ रहा है? अमरीका के ‘मानव विकास मूल्य’ में वृद्धि तो हुई है, परन्तु वृद्धि की दर यूरोप के 12 देशों से कम रही है; आयरलैंड के ‘मानव विकास मूल्य’ में अमरीका के ‘मानव विकास मूल्य’ की वृद्धि दर से 4 गुना ज़्यादा तेज़ी से वृद्धि हुई है। इसके चलते 2015 से 2022 के बीच अमरीका ‘मानव विकास सूचकांक’ में 5 स्थान नीचे आया है। संभवतः यूरोप की सरकारों की दखलंदाज़ी, जिसे यूरोप की आर्थिक वृद्धि की धीमी गति का कारण माना गया है, यूरोप के नागरिकों के लिए शुभ रही हो !

अगर ‘मानव विकास सूचकांक’ की असमानता को देखा जाए, तो अमरीका न केवल यूरोपीय देशों, बल्कि तुर्की और कुछ लैटिन अमरीकी देशों को छोड़कर, दुनिया भर के उच्च ‘मानव विकास सूचकांक’ वाले सभी देशों से अधिक अ-समान राष्ट्र है। सबसे अमीर 1% अमरीकी अमरीका की राष्ट्रीय आय का 19% प्राप्त कर रहे हैं, जबकि सबसे गरीब 40% अमरीकियों को राष्ट्रीय आय का मात्र 16.6% मिल रहा है। यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि अमरीका में ‘मातृ-मृत्युदर’ (यानी प्रति 100,000 जीवित नवजातों पर, गर्भावस्था से संबंधित कारणों से होने वाली महिलाओं की मौतों की दर) यूरोप के उच्चतर ‘मानव विकास सूचकांक’ वाले 12 देशों से 10 गुना अधिक थी। इन सभी 12 देशों में महिलाओं की विधायिका में भागीदारी भी अमरीका से अधिक थी।

अमरीका न केवल अपने नागरिकों की देखभाल में कई यूरोपीय देशों से पिछड़ रहा है, बल्कि इन देशों की तुलना में पृथ्वी को अधिक नुकसान भी पहुंचा रहा है। अमरीका 12 यूरोपीय देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक कार्बन-डाइऑक्साइड पैदा करता है। यह 7 यूरोपीय देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति अधिक भौतिक प्राकृतिक संसाधनों (जो घरेलू मांग को पूरा करने के लिए उपयोग किए जाने वाले जैव-संसाधन, जीवाश्म-ईंधन, धातु-अयस्क और अधातु अयस्क का योग है) का प्रयोग भी कर रहा है। लक्जमबर्ग को छोड़कर अमरीका सभी यूरोपीय देशों की तुलना में पृथ्वी के संसाधनों का सबसे अधिक दोहन कर रहा है। यदि पृथ्वी के संसाधनों के दोहन को देखें तो अमरीका का ‘मानव विकास सूचकांक’ में स्थान 20वें स्थान से गिर कर 50वां हो जाएगा। स्पष्टतः अमरीकी आर्थिक वृद्धि का बोझ पूरी दुनिया पर पड़ रहा है।

तो क्या अमरीकी यूरोपवासियों से अधिक खुश हैं? इसके लिए हमें ‘विश्व खुशहाली रिपोर्ट’ (वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट) देखना होगा जिसे ‘ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय’ के ‘वेलबीइंग रिसर्च सेंटर’ द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क’ एवं अन्य संस्थानों के साथ मिलकर निकाला जाता है। इस रिपोर्ट में राष्ट्रों की खुशी का मूल्यांकन मुख्य रूप से ‘गैलप’ संस्था द्वारा दुनिया भर में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है। ताजा ‘विश्व खुशहाली रिपोर्ट’ के अनुसार अमरीका ऊपर से 23वें क्रम पर था और यूरोप के 15 देश उससे ऊपर थे, यानी 15 यूरोपीय देशों के निवासी अमरीकी लोगों से अधिक खुश थे। सन् 2006-10 से 2021-23 के बीच अमेरिका के ‘खुशी मूल्य’ में 0.545 अंकों की गिरावट आई है। यानी वर्ष-दर-वर्ष अमेरिकी कम खुश महसूस कर रहे हैं। इसके विपरीत, इस अवधि में, 28 यूरोपीय देशों के ‘खुशी मूल्य’ में सुधार हुआ था।

वास्तव में जब अमरीकी अर्थव्यवस्था यूरोप से दो गुनी तेजी से बढ़ रही थी और अमरीकियों की खुशी कम हो रही थी, उसी दौर में दुनिया भर के 119 देशों के खुशी स्कोर में सुधार हुआ था या इसमें गिरावट अमेरिका की तुलना में कम थी। जाहिर है, केवल अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर या उसके आकार के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था का मूल्यांकन ठीक नहीं है। किसी देश और अर्थव्यवस्था के समग्र मूल्यांकन के लिए अन्य पक्षों की पड़ताल भी की जानी चाहिए। इससे यह भी साबित होता है कि सरकार और समाज का अर्थव्यवस्था में दखल हमेशा हानिकारक नहीं होता।  

यह बात केवल अमरीका और यूरोप पर ही लागू नहीं होती, भारत पर भी लागू होती है। अब जबकि यह दावा किया जा रहा है कि भारत शीघ्र ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा, यह याद रखना चाहिए कि भारत ‘मानव विकास सूचकांक’ में ऊपर से 134वें क्रम पर है। श्रीलंका (78), भूटान (125) और बांग्लादेश (129) जैसे पड़ोसी देश हमसे आगे हैं। इसलिए आज जन्मा बांग्लादेशी बच्चा भारतीय बच्चे से 6 साल अधिक जीने की अपेक्षा कर सकता है, श्रीलंका का बच्चा 9 साल ज़्यादा और नेपाली बच्चा भी 2.8 साल ज़्यादा उम्र पा सकता है। स्पष्ट है कि किसी भी देश के लिए राष्ट्रीय आय एक महत्वपूर्ण सूचक है, परन्तु केवल इस पर निर्भर रहना बेवकूफी है। (सप्रेस)

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