दुनियाभर में तम्बाकू और उससे बने विभिन्न उत्पादों का उपभोग एक मानव निर्मित त्रासदी पैदा कर रहे हैं। इसमें तम्बाकू का अवैध व्यापार बढौतरी करता है। कोविड-19 महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन ने तम्बाकू के वैध व्यापार पर तो रोक लगाई थी, लेकिन अवैध रूप से उसकी बिक्री जारी रही। अब धीरे-धीरे तालाबंदी हटते ही फिर से तम्बाकू का धंधा जोर पकड रहा है। सवाल है कि तम्बाकू के इस आत्महंता व्यापार को कैसे रोका जा सकता है?
31 मई : ‘वर्ल्ड नो टुबैको डे’ (विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस)
तम्बाकू-जनित महामारियों से पूर्ण रूप से बचाव मुमकिन है, क्योंकि यह मानव निर्मित आपदा है। उद्योग अपने मुनाफे के लिए इस जानलेवा उत्पाद के व्यापार को बढ़ा रहे हैं, बदले में जनता की पूंजी और जान जा रही है और सरकारों के सतत विकास के प्रयास भी क्षतिग्रस्त हो रहे हैं।
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, जो लाभ तम्बाकू नियंत्रण नीतियों के अनुपालन से मिलता है वह अवैध तम्बाकू व्यापार से खतरे में पड़ जाता है और सरकारों को राजस्व का भी नुक्सान होता है। सस्ते अवैध तम्बाकू उत्पाद से तम्बाकू-जनित महामारी अधिक पनपती है और तम्बाकू नियंत्रण नीतियों और कानून का भी उल्लंघन होता है। ‘डब्ल्यूएचओ’ के अनुसार अवैध व्यापार से अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक गतिविधियाँ भी पोषित होती हैं।
तम्बाकू का अवैध व्यापार एक वैश्विक समस्या है, इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे निबटना जरूरी है। दुनिया के 180 से अधिक देशों ने 2012 में ‘वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि’ (‘डब्ल्यूएचओ’ फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन टुबैको कण्ट्रोल) को पारित किया है। कानूनी रूप से बाध्यकारी यह संधि 2018 से लगू की गई। इस संधि को 62 देश पारित कर चुके हैं जिनमें भारत भी शामिल है। इस संधि की धारा-15 सरकारों को ताकत देती है कि वे आपस में मिलकर तम्बाकू के अवैध व्यापार पर अंकुश लगा सकें।
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के डॉ. एमजी वलावन के अनुसार भारत सरकार ने 2018 में अवैध तम्बाकू व्यापार के उन्मूलन के लिए वैश्विक संधि को पारित किया है और तब से इस दिशा में कुछ कार्य भी हुआ है। डॉ. वलावन ने कहा कि ‘डब्ल्यूएचओ’ के अनुसार भारत में अवैध तम्बाकू व्यापार कुल सिगरेट खपत का छह प्रतिशत है, पर उद्योग इस आंकडे को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। भारत में अवैध सिगरेट का विक्रय मूल्य 75.3 करोड डॉलर है और सरकार को इससे 39 करोड डॉलर के राजस्व का नुक्सान होता है। डॉ. वलावन ने बताया कि भारत सरकार केन्या देश के मॉडल को अपने परिवेश में संशोधित कर अपना रही है जिसमें अवैध व्यापार के उन्मूलन के लिए हो रहे सभी कार्यों की कीमत उद्योगों को ही चुकानी पड़ेगी।
तम्बाकू-रहित विश्व के लिए समर्पित ‘स्मोक-फ्री पार्टनरशिप’ से जुड़े लुक जूस्सेन के मुताबिक कोविड-19 महामारी के कारण, 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 4.4 प्रतिशत सिकुड़ गयी है जिसके कारण अनेक देश आर्थिक मंदी का शिकार हो रहे हैं। यदि सरकारें अवैध तम्बाकू व्यापार पर अंकुश लगाएंगी तो राजस्व में तो वृद्धि होगी ही और जन स्वास्थ्य का लाभ भी मिलेगा। लुक जूस्सेन ने बताया कि हर साल अवैध तम्बाकू व्यापार से सरकारों को 40.5 अरब डॉलर के राजस्व का नुक्सान होता है और यदि अवैध तम्बाकू व्यापार का अंत हो जाए तो सरकारें कम-से-कम 21 अरब डालर का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त कर सकेंगी।
लुक जूस्सेन ने चेताया है कि तम्बाकू उद्योग अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य नीतियों में हस्तक्षेप करता रहा है। अवैध तम्बाकू व्यापार के मुद्दे पर भी तम्बाकू उद्योग ऐसा तंत्र सुझाता है जिसका नियंत्रण उसके पास रहे। ‘वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि’ में सरकारों ने इसीलिए धारा-5.3 को पारित किया, जिससे कि स्वास्थ्य नीति में तम्बाकू उद्योग के हस्तक्षेप पर पूर्ण विराम लगाया जा सके। जिन सरकारों ने अवैध तम्बाकू व्यापार को पूर्ण रूप से बंद करने के लिए वैश्विक संधि को पारित किया है, उनका वादा है कि सितम्बर 2023 तक वह ऐसी प्रभावकारी प्रणाली सक्रिय कर लेंगी।
दक्षिण-अफ्रीका की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन’ की डॉ हैना रोस का कहना है कि उनके देश में अवैध तम्बाकू व्यापार की समस्या तो जटिल है और सरकार ने अभी तक वैश्विक संधि को पारित भी नहीं किया है, लेकिन वहां तम्बाकू नियंत्रण और अवैध तम्बाकू व्यापार पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावकारी कदम उठाये गए हैं।
कोविड-19 महामारी में जब तालाबंदी लगी तो दक्षिण-अफ्रीका में पांच महीने तक तम्बाकू विक्रय पर प्रतिबन्ध लग गया था जो अन्य देशों की तुलना में, बहुत लम्बी अवधि रही। भारत में तालाबंदी के दौरान सिर्फ छह हफ्ते तम्बाकू विक्रय प्रतिबंधित रहा था और बोत्सवाना में 12 हफ्ते। परन्तु दक्षिण-अफ्रीका में लम्बी अवधि के लिए तम्बाकू विक्रय पर प्रतिबन्ध का असर कम रहा, क्योंकि अवैध व्यापार के जरिये सिगरेट बिक रही थी। ऐसा अनुमान है कि वहां एक-तिहाई तम्बाकू व्यापार अवैध है।
डॉ हैना रोस के शोध से ज्ञात हुआ कि तालाबंदी में नौ प्रतिशत लोग तम्बाकू सेवन को त्याग चुके थे और इनमें से दो-तिहाई, तालाबंदी और तम्बाकू विक्रय पर प्रतिबन्ध हटने के बाद भी तम्बाकू सेवन आरंभ नहीं कर रहे थे। चिंताजनक तथ्य यह है कि 93 प्रतिशत लोग तालाबंदी के दौरान तम्बाकू विक्रय पर प्रतिबन्ध के बावजूद अवैध तम्बाकू को खरीद रहे थे। अवैध सिगरेट की औसतन कीमत भी 250 प्रतिशत बढ़ गयी थी।
डॉ. हैना रोस के मुताबिक दक्षिण-अफ्रीका में तालाबंदी के दौरान तम्बाकू विक्रय तो प्रतिबंधित रहा पर निर्यात के लिए तम्बाकू उत्पाद बनाने पर प्रतिबन्ध नहीं था। आंकड़े बताते हैं कि तालाबंदी के दौरान तम्बाकू निर्यात काफी बढ़ गया था, पर सिगरेट या तो देश के बाहर गयी ही नहीं या बाहर जाकर वापस आ गयी, जिससे कि अवैध रूप से बिक सके। डॉ. हैना रोस की मांग है कि दक्षिण-अफ्रीका सरकार, अवैध व्यापार का अंत करने के लिए वैश्विक संधि को पारित करे और तम्बाकू उत्पाद पर कर को अनेक गुणा बढ़ाए।
‘वैश्विक तम्बाकू नियंत्रण संधि’ के सचिवालय से जुड़े रोड्रिगो सैंटोस फिजो ने कहा कि अवैध तम्बाकू व्यापार के पूर्ण अंत से न सिर्फ जन स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा बल्कि सरकारें राजस्व भी अधिक पाएंगी और सतत विकास के लिए अधिक गति से कार्य कर सकेंगी।
कोविड-19 होने पर गंभीर परिणाम और मृत्यु होने की सम्भावना उन रोगों से बढ़ जाती है जिसका जनक तम्बाकू है – हृदय रोग, कैंसर, डायबिटीज, श्वास सम्बन्धी रोग आदि। तम्बाकू उद्योग को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराना जरूरी है जिससे तम्बाकू से होने वाले मानव शरीर और पृथ्वी पर सभी नुक्सानों की पूरी भरपाई करने के लिए तम्बाकू उद्योगों को विवश किया जा सके।
डॉ. तारासिंह बाम, जो ‘इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग डिजीज’ के एशिया-पैसिफिक निदेशक हैं, कहते हैं कि मानव निर्मित तम्बाकू महामारी का पूर्ण रूप से अंत आवश्यक है, क्योंकि इससे पूर्ण रूप से बचाव मुमकिन है। इसके धंधे से जितना राजस्व आता है, उससे कई गुणा अधिक नुक्सान होता है और लाखों लोग तम्बाकू से मरते हैं। हर साल विश्व में 80 लाख से अधिक लोग तम्बाकू से मारे जाते हैं। तम्बाकू के व्यापार पर पूर्ण रोक लगाना जरूरी है, पर हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि तम्बाकू, अवैध हो या वैध, हर रूप में घातक है। (सप्रेस)
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