क्रेडिटसाइट्स के एक अध्ययन से पता चला है कि भारतीय बैंकों के कुल ऋण का 45% कॉरपोरेट ऋण है। अगर ये ऋण न चुकाये जाएँ तो ये अपने साथ कई बैंकों को डुबो देंगे। इसके बावज़ूद, सरकारी बैंक भी कॉरपोरेट ऋण व्यवसाय में आगे बढ़कर शामिल हो रहे हैं। इसी कारण शाखाएं बंद कर हो रही हैं, कर्मचारियों की संख्या में कटौती हो रही हैं और छोटे ऋण भी धीरे धीरे गायब हो रहे हैं। संक्षेप में, सरकारी बैंक भी अधिक लाभ के लिए लोगों के बजाय कॉर्पोरेट्स को चुन रहे हैं। अडानी जैसे बड़े समूह की ऋण स्थिति देखकर बैंकों को चौकन्ना हो जाना चाहिए वर्ना उन्हें इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इन्ही सवालों के संदर्भ में पेश है सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी टीम व्दारा तैयार ‘हमारा पैसा हमारा हिसाब‘ का नया एपिसोड।[block rendering halted]