मंथन अध्ययन केंद्र ने की अंतर्देशीय जलमार्ग कार्यक्रम की वर्तमान स्थिति पर केंद्रित रिपोर्ट जारी
सप्रेस डेस्क। सप्रेसमीडिया.इन
भारत में लगभग 14,500 किलोमीटर नौगम्य अंतर्देशीय जलमार्ग और करीब 7,517 किलोमीटर समुद्र तट है जल परिवहन को सुगम बनाने के उद्देश्य सेकेंद्र सरकार व्दारा इनके अधिकाँश हिस्सों को राष्ट्रीय जलमार्ग के रुप में विकसित किया जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे सडक़ एवं रेल नेटवर्क पर भीड़ व दबाव कम कर समग्र आर्थिक विकास को बढ़ाया जा सकेगा। सरकारी दावे के अनुसार समुद्र तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जल परिवहन ईंधन कुशल, पर्यावरण के अनुकूल एवं कम लागत वाले साधन बताए जाते हैं।
लेकिन हाल ही में मंथन अध्ययन केंद्र व्दारा अंतर्देशीय जलमार्गों की स्थिति पर जारी ‘राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्ग कार्यक्रम: दावों, प्रगति और प्रभावों की समीक्षा’ रिपेार्ट केंद्र सरकार के दावों की पोल खोलती प्रतीत होती है। रिपेार्ट के अनुसार तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जल परिवहन कार्यक्रम शुरू होने के पांच साल (2016-2021) बाद स्पष्ट है कि इनसे जिन लाभों के दावे किये गए थे, वे अब भी वास्तविकता से बहुत दूर है यानी इनके लाभों को बढ़ा – चढ़ा कर प्रचारित किया गया था। गौरतलब है कि भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के अपने खुद के अध्ययन के अनुसार 106 राष्ट्रीय जलमार्गों में से केवल 23 ही माल परिवहन की दृष्टि से व्यवहारिक प्रतीत होते हैं।
राष्ट्रीय अंतर्देशीय जलमार्ग कार्यक्रमों की समीक्षा रिपेार्ट के प्रमुख बिंदु
- इन जलमार्गों के प्रदर्शन के कारण इस क्षेत्र में अपेक्षित निवेश नहीं किया जा रहा है। जो निवेश हो रहा है वह भी वर्ल्ड बैंक द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त राष्ट्रीय जलमार्गों तक ही सीमित है।
- पहले चरण में प्रस्तावित 37 जलमार्गों में से केवल 21 जलमार्गों पर अभी तक काम शुरू भी नहीं हो पाया है। जिन जलमार्गों को आंशिक रुप से चालू या फिर प्रगतिरत बताया जा रहा है उनमें से कुछ तो पहले से ही चालू हैं।
- इन जलमार्गों से 90% से अधिक ढुलाई कोयला, लौह अयस्क, फ्लाई ऐश (राख), चूना पत्थर आदि जैसी वस्तुओं की होती हैं।
- वाराणसी (उत्तर प्रदेश) और साहिबगंज (झारखंड) के बहु-उद्देशीय टर्मिनलों के वास्तविक उपयोग की स्थिति बहुत दयनीय है। उदाहरण के लिए वाराणसी टर्मिनल से 14 महीनों में केवल 280 टन माल की ढुलाई हुई, जबकि लक्ष्य 3.5 मिलियन टन रखा गया था।
- सरकार द्वारा जलमार्गों से माल परिवहन को सड़क और रैल से सस्ता प्रचारित किया गया है जबकि इस दावे के पक्ष में सरकार ने कोई आँकड़े प्रस्तुत नहीं किए हैं। इससे संदेह होता है कि कहीं जल परिवहन की लागत सरकारी दावों से कहीं ज़्यादा तो नहीं है।
- जलमार्गों की विश्वसनीयता के संबंध में कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। पानी की गहराई, नदी के प्रवाह आदि के कारण नौका परिवहन में बाधाएँ आ रही हैं।
- अंतर्देशीय जलमार्गों के निर्माण, रखरखाव और संचालन के बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों दिखाई दे रहे हैं। जहाजों की आवाजाही से मछलियों की आबादी में गिरावट मछुआरों की आजीविका प्रभावित कर रही है। लुप्त होने के खतरे का सामना कर रही गंगा डॉल्फिन पर प्रतिकूल प्रभाव भी इनमें शामिल हैं।
- इन जलमार्गों में ढोए जाने वाले जहरीले रसायनों के रिसाव या दुर्घटनाओं के दौरान हानिकारक पदार्थों के फैलने/निकलने से बड़े पैमाने पर पानी के दूषित होने की संभावना होती है जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी, और नदी पर निर्भर समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ते हैं। पिछले दिनों ऐसी गंभीर दुर्घटनाए हो चुकी है।
- दुख की बात है कि राष्ट्रीय जलमार्ग और उनके बहु-उद्देशीय टर्मिनल जैसी पर्यावरणीय दृष्टि से काफी संवेदनशील इकाइयों को कानूनी रूप से बाध्यकारी पर्यावरणीय मंजूरी प्रक्रिया के बाहर रखा जा रहा है।
- रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि इतने सारे विपरीत प्रभावों तथा लाभों के अपेक्षित दावों के खोखले साबित हो जाने के बावजूद कॉर्पोरेट के हितों और छोटे उपयोगकर्ताओं-स्थानीय समुदायों, मछुआरों आदि के हितों के बीच में अंतर्विरोध होने पर अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण किसे प्राथमिकता देगा?
यह अध्ययन शोधकर्त्ता एवं जाने माने जल विशेषज्ञ श्रीपाद धर्माधिकारी और अवली वर्मा ने किया है। मंथन अध्ययन केंद्र पानी, ऊर्जा और ऊर्जा से संबंधित मुद्दों की निगरानी, विश्लेषण और अनुसंधान करने के लिए स्थापित किया गया है,जिसमें अर्थव्यवस्था के उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण से उत्पन्न नवीनतम विकास पर विशेष जोर दिया जाता है। केंद्र की गतिविधियाँ बड़वानी (मध्यप्रदेश) तथा पुणे से संचालित होती है। यह पूरी रिपोर्ट को मंथन अध्ययन केन्द्र की वेबसाईट पर यहाँ देखी जा सकती है- https://www.manthan-india.org/wp-content/uploads/2021/05/Grand-Plans-Many-Questions_CompressPdf.pdf
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