सचिन श्रीवास्तव

पिछले महीने सूचना प्रौद्योगिकी के नियमन की खातिर लाए गए कानून ने देशभर में व्यापक बहस खडी कर दी है। आखिर क्या हैं, ये कानून? और कैसे इनसे विशाल डिजिटल संसार पर नियमन हो पाएगा?

मौजूदा केंद्र सरकार अपने पिछले और नए कार्यकाल में लगातार विपक्ष समेत लोकतांत्रिक मंचों, संस्थाओं, संगठनों और सिविल सोसायटी के निशाने पर रही है। इसी कड़ी में ताजा विवाद देश की डिजिटल दुनिया पर नकेल कसने के नाम पर सरकार की ओर से लाए गए “सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम – 2021“ पर खड़ा हो गया है। 25 फरवरी को दो केन्द्रीय मंत्रियों रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर ने पत्रकार-वार्ता कर इस अध्यादेश के फायदे गिनाए। पेशे से वकील रविशंकर प्रसाद ने अपने शानदार तर्कों की शुरूआत करने से पहले जोर देकर कहा कि सरकार चाहती है कि सोशल मीडिया कंपनियां देश में आएं, वे यहां व्यापार करें, पैसा कमाएं, लेकिन सरकार इसके लिए कड़े नियमन करेगी। दिलचस्प यह है कि जिन कंपनियों के लिए सरकार कड़े नियमों का संजाल फैला रही है, उनकी सिरमौर फेसबुक और ट्विटर ने इन नये नियमों का स्वागत करते हुए कहा कि “हम तो अरसे से मांग करते रहे हैं कि सरकार हमारे लिए गाइड लाइन जारी करे और हम अपने मित्र भारत के लिए उन पर अमल करने के लिए तत्पर हैं।

इस पूरे वितंडे में सरकार ने जनता को जनता के खिलाफ खड़ा करने की जो युक्ति निकाली है, उसकी शुरूआत फरवरी के अंतिम सप्ताह में नियमन लाने के बजाय फरवरी के दूसरे सप्ताह में हुई। उस वक्त सरकार ने अपने नागरिकों के लिए साइबर अपराध स्वयंसेवक (Cyber Crime Volunteers) यानी साइबर जासूस बनने का रास्ता खोला दिया था। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे नागरिक जो अपने ही देश के अन्य नागरिकों के लिखे-पढ़े पर नजर रखें और उनमें अगर सरकार के नियमों के खिलाफ कोई कुछ लिखता है, तो उसकी सूचना सरकार तक पहुंचाने में मदद करें। यह एक तरह से अपनी जनता को, अपने फायदे के लिए, नागरिकों के ही खिलाफ करने की साजिश है, जिसे अंजाम देने में सरकार के कुछ सबसे आला दिमाग लगे हुए हैं। जब नागरिकों के बीच के जासूस सरकार को कथित संदिग्ध सामग्री की सूचना देंगे तो उसकी अगली कड़ी में नए नियमन के जरिये सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को कार्रवाई करने के लिए कहेगी और सवाल पूछने वाले, नीतियों की आलोचना करने वाले या सुरक्षित शासन करने में अन्य दिक्कतें पैदा करने वालों को दंडित करेगी। बात यहीं खत्म नहीं होती, इन जासूसों के अलावा, नागरिकों की अभिव्यक्ति को सीमित करने के लिए एक अलग व्यवस्था बनाने का प्रावधान नये नियमों में किया गया है।
क्या कहते हैं नए नियम?
25 फरवरी को जारी किए गए नए नियमों में मोटे तौर पर सोशल मीडिया कंपनियों और ओटीटी प्लेटफॉर्म से ‘स्व-नियमन’ की उम्मीद की गयी है। साथ ही कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिनसे मौजूदा सरकार के समर्थक, धार्मिक कट्टर समुदाय और नफरत फैलाने वालों को इनसे लाभ की आशंका है। इनकी बानगी देखते हैं।

अव्वल तो नियमन की यह नई नकेल सुनिश्चित करती है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अगर कोई आपत्तिजनक, शरारती पोस्ट या संदेश आता है, तो उसे सबसे पहले किसने लिखा, इसकी जानकारी सरकार को देनी जरूरी होगी। इन आपत्तिजनक संदेशों में धार्मिक भावना आहत होने, सरकार की नीतियों की आलोचना और ‘देश की सुरक्षा और संप्रभुता’ को खतरा वाली पोस्ट शामिल हैं। इतना ही नहीं किसी आन्दोलन में शामिल होने का आह्वान करना भी ‘देश की सुरक्षा को खतरा’ बताया गया है। ऐसे में साफ है कि सरकार के खिलाफ लिखी गई कोई भी बात, धार्मिक कट्टरता की आलोचना आदि से संबंधित पोस्ट करने वाले सरकार के निशाने पर होंगे। इनकी पहचान बताने का मामला निजता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। वहीं नये नियमों में दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई सोशल मीडिया यूजर्स की प्राइवेसी की कोई चर्चा नहीं है, बस उस पर हमला जरूर है।

इसी तरह नियम कहता है कि अश्लील सामग्री पोस्ट करने वाले की जानकारी सरकार को देनी होगी। इसके तहत यौन-व्यवहार में अल्पसंख्यक समूहों एलजीबीटीक्यूआईए के अधिकारों पर कुठाराघात किया गया है, जो खुद को बहुसंख्यक समुदाय की सेक्स-संबंधी प्रचलित धारणाओं से भिन्न पाते हैं और इंटरनेट की दुनिया में समान रूचि के लोगों से संवाद करते हैं।

नियमन में यह भी कहा गया है कि अगर सोशल मीडिया कंपनी को कोई एकाउंट डिलीट करना है या कोई कंटेंट हटाना है तो उसे यूजर को बताना होगा कि उसका कंटेंट क्यों हटाया जा रहा है। ध्यान रहे कि पिछले दिनों देश में कई दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं के एकाउंट सोशल मीडिया कंपनियों ने डिलीट किये थे। अब तक ऐसे मामलों को सोशल मीडिया फोरम पर ही निपटाया जाता रहा है, लेकिन अब ऐसे मामलों में सरकार हस्तक्षेप कर सकेगी।

नए नियमन का एक दिलचस्प पहलू है कि अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह उन सभी यूजर्स के अकाउंट को वैरीफाई यानी ‘सत्यापित’ करें जो अपनी पहचान सत्यापित करवाना चाहते हैं। वैरीफाइड अकाउंट को यह कंपनियां सामान्यतः ‘ब्लू टिक’ देती हैं। यह ‘ब्लू टिक’ सिर्फ पहचान के सत्यापन से ज्यादा ‘सेलिब्रिटी स्टेटस’ हासिल करने की ताकीद की तरह होता है। इसमें कई तरह का वैचारिक भेदभाव भी होता है। कंपनियां आमतौर पर उन्हें ‘ब्लू टिक’ नहीं देतीं जिनकी पोस्ट्स को वे अपने नियमों के मुताबिक आपत्तिजनक पाती हैं। इसी वजह से मौजूदा सरकार की ट्रोल-आर्मी के कई सदस्य लाखों फालोअर होने के बावजूद ‘ब्लू टिक’ से अब तक वंचित रहे हैं। नया नियमन उन्हें ‘ब्लू टिक’ के जरिये अफवाह फैलाने और भ्रमित करने की ताकत उपलब्ध कराता है।  
सोशल मीडिया कंपनियों पर नहीं होगी कोई कार्रवाई
नए नियमन जिन सोशल मीडिया कंपनियों के लिए बनाए गए हैं, उन पर किसी तरह की कोई कार्रवाई का जिक्र इनमें नहीं है। इसमें आपत्तिजनक पोस्ट लिखने वाले यूजर्स को पांच साल की जेल का प्रावधान किया गया है। हालांकि यह आईटी एक्ट के तहत पहले से चला आ रहा नियम है, जिसका उल्लेख फिर सरकार ने किया है। प्रेस कांफ्रेन्स में रविशंकर प्रसाद ने अपनी शाब्दिक चतुराई दिखाते हुए कहा कि नये नियमों में प्रावधान है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ‘आईटी एक्ट’ लागू होगा और उसी के अनुसार उनकी जिम्मेवारी तय की जाएगी। यह जिम्मेवारी क्या होगी, इस बारे में उनकी चुप्पी बहुत कुछ साफ कर देती है।

असल में आईटी एक्ट, 2000 में धारा 79 में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ‘सेफ हार्बर’ का प्रावधान है। यानी, किसी भी यूजर की पोस्ट के लिए इन प्लेटफार्म पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। नये नियम में इतना जरूर कहा है कि सेफ हार्बर का यह प्रावधान इन प्लेटफार्म पर लागू नहीं होगा, लेकिन तब जब वे सरकार के आदेश पर किसी पोस्ट को डिलीट नहीं करते हैं या डिलीट करने के बाद उसे अपने पास किसी भी तरह संरक्षित रखते हैं। यानी सोशल मीडिया कंपनियों की जिम्मेदारी महज सरकार के आदेश मानने तक महदूद है।

नए नियमों के मुताबिक, भारतीय संविधान और दंड-संहिता की भावनाओं का पालन करना इन कंपनियों की जिम्मेवारी नहीं है। न ही उन्हें इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता या दंडित किया जाएगा। कुल मिलाकर सरकार ने इनके जरिये तकनीकी दिग्गजों का देश में स्वागत किया है, जिसे खुद रविशंकर प्रसाद के शब्दों में कहें तो- वे यहां व्यापार करें, पैसा कमाएं। जो उन्होंने नहीं कहा उसका आशय साफ है कि यूजर्स के डाटा को अपनी दोस्त कंपनियों को बेचें, यूजर्स को एक उपभोक्ता मानते हुए उसका बाजार में मनचाहा इस्तेमाल करें, नागरिकों की आदतों को बदलें और उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा मनोरंजक कामों में उलझाएं रखें। साथ ही सरकार सोशल मीडिया से यह भी चाहती है कि उसके खिलाफ लिखे गए हर एक शब्द की जानकारी उस तक पहुंचाई जाए और उसके कहे मुताबिक संबंधित यूजर पर कार्रवाई हो। (सप्रेस) 

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