हमारे समाज में महिलाएं, खासकर विवाहित महिलाएं सुरक्षित माने जाने वाले अपने-अपने घरों में भी असुरक्षित हैं और यह तब हो रहा है जब इसे लेकर तरह-तरह के कानून मौजूद हैं। क्या है, इस घरेलू हिंसा का दायरा? महिलाएं विवाह सरीखे सुरक्षित सामाजिक ढांचे में भी क्यों प्रताडित हैं?
अपने देश में महिलाओं के हित में अनेक कानून बने हैं। इसके बावजूद उन पर अत्याचार बढ़ रहे हैं और लगातार बढ़ रहे हैं। आए दिन देश के विभिन्न हिस्सों में घटी घटनाओं का आंकलन करें तो लगता है कि भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति बदतर है। दुनिया आधुनिक हो रही है पर लोगों की सोच पुरानी और महिला विरोधी है। उन्हें दबाया जाता है। चुप रहने की धमकी दी जाती है। संविधान में महिलाओं को दिए गए समानता के अधिकारों का भी उल्लंघन किया जाता है। उन पर बेखौफ होकर गैर-कानूनी, हिंसक जुल्म होते रहते हैं। छेड़छाड़, बलात्कार और हत्या जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। महिलाएं ना सिर्फ बाहर असुरक्षित हैं, बल्कि घरों की चहारदीवारी में भी महफूज नहीं हैं।
मीडिया की खबरों के मुताबिक मौजूदा साल के सबसे छोटे महीने फरवरी के मात्र एक पखवाड़े में ही घटी विभिन्न घटनाओं को देखें कि किस तरह से पति और ससुराल के लोग महिलाओं पर इतने बर्बर अत्याचार करते हैं कि उनकी जान तक चली जाती है या खुद फंदे से लटककर आत्महत्या करने को विवश हो रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि अपने देश में हर 25 मिनट पर एक शादीशुदा महिला आत्महत्या कर रही है। 2020 में आत्महत्या करने वाली कुल महिलाओं में शादीशुदा महिलाओं की संख्या 50 फ़ीसदी से ज्यादा थी।
वैसे दुनिया भर में अपने देश का नाम सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले देश के रूप में शुमार किया जाता है। दुनिया भर में 15 से 39 साल के वर्ग की महिलाओं में भारतीय महिलाओं की संख्या 36 फीसदी ज्यादा है। यह भयानक चिंता की बात है जिस पर समाज और सरकार को संवेदनशील होकर महिला सशक्तिकरण को हर हाल में बढ़ाने के लिए कारगर पहल करने की जरूरत है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक विवाहित महिलाओं में लगभग 8% महिलाएं यौन हिंसा और 41% महिलाएं अन्य विभिन्न प्रकार की हिंसा और शारीरिक उत्पीड़न का शिकार होती हैं। ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2020 में देश में हुई 1,53,052 आत्महत्याओं में से विवाहित महिलाओं की संख्या 14% थी जिसके लिए मुख्यत: पारिवारिक समस्याओं या विवाह से जुड़ी समस्याओं को जिम्मेदार बताया गया। जानकार बताते हैं कि महिलाओं की आत्महत्या का एक बहुत बड़ा कारण घरेलू हिंसा है। एक सर्वे के अनुसार 30% महिलाओं के साथ उनके पतियों ससुरालियों या अन्य रिश्तेदारों ने विभिन्न रूपों में हिंसा की।
अब इन घटनाओं को जानकर अंदाज़ लगाया जा सकता है कि घर, परिवार और देश के निर्माण में पुरुषों के समकक्ष योगदान देने वाली महिलाओं के साथ क्या सलूक किया जा रहा है। दो फरवरी को अहमदाबाद की एक युवती को शादी के बाद उसका पति पोलैंड ले गया, जहां उसे पता चला कि उसका पति महा शराबी और बदचलन है। युवती ने जब इस पर आपत्ति की तो उसका पति उसे मारपीट कर भारत में उसके मायके में छोड़कर पोलैंड वापस लौट गया।
इस घटना के पांचवें दिन 7 फरवरी को उत्तरप्रदेश में मैनपुरी के करीमगंज में खाना बनाने को लेकर एक महिला को उसके पति ने बुरी तरह मारा पीटा। पति गिरफ्तार हुआ। 11 फरवरी को पश्चिम बंगाल के आसनसोल में एक व्यक्ति ने किसी बात पर गुस्से में आकर अपनी पत्नी को जिंदा जला दिया। तीन दिन बाद 14 फरवरी को पंजाब के फरीदकोट में एक व्यक्ति ने घरेलू कलह के कारण अपनी पत्नी को मारा-पीटा और अंत में गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। 15 फरवरी को ग्वालियर से ड्यूटी से वापस लौट रही पत्नी को उसके पति ने मारपीट कर बुरी तरह घायल किया और उसे बचाने आई बुआ को भी नहीं बख्शा। उसे भी लात-घूंसों से पीटकर लहूलुहान कर दिया।
इसी दिन गुजरात के अहमदाबाद में एक महिला ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई कि उसके पति ने उसे तलाक दे दिया है, क्योंकि उसने अपने पति को दूध देने से पहले अपने बच्चों को दे दिया था। शिकायत में महिला ने यह भी दर्ज कराया कि सास और ससुर भी दहेज के लिए तंग करते रहते हैं।16 फरवरी को पंजाब के लुधियाना के गांव बुलारा में विवाहित महिला की बर्बर हत्या के आरोप में पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर मृतका के पति, ससुर और जेठ को हिरासत में लिया गया है। पंजाब में ही 17 फरवरी को कुछ महीने के बाद ससुराल वापस लौटी महिला की हत्या उसके पति ने कर दी।
ये घटनाएं हैं जो समाज की सतह पर आई या महिला ने हिम्मत की। नहीं तो अपने देश में शहर हो या गांव, हर जगह घरों में लाखों महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा हो रही हैं। लोकलाज और अपने भविष्य की आशंकाओं को देखते हुए पहले तो वे जी भर के सहती हैं। जिस दिन सहना मुश्किल होता है उस दिन अपनी जिंदगी की कहानी खत्म कर लेती है।
यह स्थिति तब है जब अपने देश में महिलाओं के विरुद्ध घरेलू हिंसा से निपटने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है। घर को स्वर्ग बनाने में लगी महिलाओं के लिए उनका ही घर नरक बनता जा रहा है जिसका बहुत बुरा असर बच्चों पर पड़ता है। नई पीढ़ी को बचाने के लिए महिलाओं को बचाना जरूरी है। (सप्रेस)
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