किसी को शारीरिक क्षति पहुंचाने की आज भी सर्वाधिक आसान तरकीब सड़क दुर्घटना है। मोटर, ट्रक, दो-पहिया जैसे स्वचालित वाहनों से किसी को ठोंक देने और नतीजे में गंभीर चोट, मृत्यु तक का दंड, जुर्माना आज भी परिणामों के मुकाबले बेहद कम है, लेकिन कानूनों के इस पेंच को सुधारने के प्रति सरकारें लापरवाह हैं।
देश की परिवहन व्यवस्था में सड़क परिवहन का महत्वपूर्ण स्थान है। सड़क व्यवसायिक और व्यापारिक हितों को तो पूरा करती ही है, इसके साथ ही भारतीय समाज को मजबूती प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सड़क और सड़क परिवहन स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, सुरक्षा आदि संबन्धित सेवाओं को आम जनों से जोड़ने और सामाजिक ताना-बाना बुनने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट ‘बेसिक रोड स्टेटिस्टिक्स – 2017-18’ के अनुसार वर्ष 1950-51 में सड़क की लंबाई 2.06 लाख किलोमीटर थी, जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 44.09 लाख किलोमीटर हो गई है। इसी दौरान ‘राष्ट्रीय राजमार्ग’ 0.9 लाख किलोमीटर से बढ़कर 1.26 लाख किलोमीटर हो गए हैं। वर्ष 2017-18 की स्थिति में ‘प्रादेशिक राजमार्ग’ की लंबाई 1.86 लाख किलोमीटर है। वर्ष 2018 की स्थिति में मध्यप्रदेश में समस्त सडकों की लंबाई 36.39 लाख किलोमीटर थी।
सडकों की वृद्धि के साथ ही वाहनों के पंजीयन में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। भारत सरकार की रिपोर्ट ‘स्टेटिस्टीकल ईयरबुक इंडिया – 2017’ के अनुसार पिछले 15 वर्षों में वाहनों की संख्या में भी बड़ी वृद्धि हुई है। इस दौरान 50.06 करोड़ वाहनों से बढ़कर 190.9 करोड़ हो गए हैं। मध्यप्रदेश में भी 0.30 करोड़ वाहन बढ़कर 1.11 करोड़ हो गए हैं।
वैसे हर दिन ही देश और प्रदेश से सड़क दुर्घटनाओं और इससे हुई मौतों की खबरें आती रहती हैं, जिसमें चालक और सवारी की मौत तो कभी-कभी पूरे परिवार या वाहन की अधिकांश सवारियों की मौतों की खबर से मन विचलित हो जाता है। इन दुर्घटनाओं के जो मुख्य कारण बताए जाते हैं उनमें वाहन तेज गति से चलाना, लापरवाही से चलाना, शराब पीकर चलाना आदि प्रमुख हैं। कुछ दुर्घटनाओं में सड़क के गड्ढे या सड़क का खराब होना भी बताया जाता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में नशे में धुत्त चालक, उसकी कार के नीचे फंसे व्यक्ति को तीन किलोमीटर तक घसीटता ले गया जिससे व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई।
इन सारी सड़क दुर्घटनाओं को अपराध की नजर से कभी देखा ही नहीं गया। पुराने कानून अंग्रेजों के ज़माने के कानूनों से प्रेरित थे। उस जमाने में अंग्रेजों और राजा-रजबाडों के पास ही स्वचालित वाहन हुआ करते थे और इसलिए उनकी सुगमता के अनुसार ही कानून बनाए गए थे। देश के आजाद होने के बाद भी हम इसी राह पर चले। आज भी यदि जान-बूझकर या अनजाने में लापरवाही के कारण किसी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है तो सजा मिलना आसान नहीं है। देश में कई ‘हिट एण्ड रन’ प्रकरणों में या तो आरोपी बरी हो जाते हैं या फिर मामूली जुर्माने के बाद छूट जाते हैं।
वर्ष 2014 में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद ‘मोटर वाहन एक्ट – 1988’ में संशोधन की चर्चा होने लगी थी। इसमें खासकर लापरवाही से वाहन चलाने या शराब पीकर वाहन चलाने को अपराध की श्रेणी में रखे जाने और भारी जुर्माने की पैरवी की गई थी। देश में वर्ष 2019 में नए ‘परिवहन कानून’ को लागू किया गया, जिसमें भारी-भरकम दंड, सुधारात्मक उपाय, प्रावधानों का सरलीकरण और सजा का प्रावधान किया गया, लेकिन देश के कई प्रदेशों में, जिनमें मध्यप्रदेश भी शामिल है, यह लागू नहीं किया गया।
देश में अब यह एक परंपरा बन गई है कि महत्वपूर्ण मामलों में कोर्ट को दखल देना पड़ता है। सडक दुर्घटनाओं के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने जुलाई 2015 में समस्त राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके फालोअप के अंतर्गत नवम्बर 2015 में समस्त राज्य सरकारों को कमेटी द्वारा लक्ष्य प्राप्ति के लिए समयबद्ध पत्र जारी किया गया था। इस पत्र के मुताबिक वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटनाओं में 50 प्रतिशत की कमी लाना था। मध्यप्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय की समिति की अनुशंसाओं के क्रियान्वयन के लिए जिलावार सड़क सुरक्षा कार्य योजना को प्रस्तुत किया गया। कमेटी ने इसके 12 बिन्दुओं का परीक्षण कर पांच बिन्दुओं पर ही संतुष्टि जताते हुए मई 2019 में राज्य सरकार को अवगत कराया। कमेटी ने बाकी के अन्य बिन्दुओं पर कार्यवाही हेतु राज्य सरकार को निर्देशित किया है।
हाल ही मे मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आरबी मलिमथ एवं न्यायाधीश विजय कुमार शुक्ला की युगल बैंच ने अवैध ऑटो और ओवरलोडिंग सहित रूट को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि “एमपी के अधिकारी न्यायालय के आदेशों को गंभीरता से नहीं लेते. इसका मतलब ये नहीं है कि आगे भी ये सब बर्दाश्त किया जाएगा.”
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार का पक्ष रख रहे परिवहन आयुक्त ने अधिवक्ता के माध्यम से उच्च न्यालय में हलफनामा प्रस्तुत कर जानकारी दी कि “केन्द्रीय मोटर व्हीकल अमेंडमेंट एक्ट 2019 तुरंत लागू किया जाएगा, इस कानून को सरकार 45 दिन में अमल में लाएगी।” हालांकि कोविड-19 ने भी इसे लागू करने में चुनौती प्रस्तुत की है। लाकडाउन में सार्वजनिक परिवहन में कई प्रतिबंध लगने के कारण पूरे परिवहन उद्योग पर ही विपरीत असर पड़ा है। खंडवा में हुई दुर्घटना और उसके रोकथाम के उपाय, जिसमें संशोधित ‘परिवहन एक्ट – 2019’ का क्रियान्वयन शामिल है, पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया। यह सरकार की मंशा और मजबूरी दोनों पर सवाल खड़े करता है।
सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन लाने पर जोर देना होगा जिसके लिए अच्छी आदतें अपनाना और सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन प्रमुख है। यातायात नियमों के पालन के लिए दो पहिया वाहन चलाते वक्त हेलमेट पहनना, कार में सीट-बेल्ट लगाना, इसके लिए समुदाय में जागरूकता लाना होगा। यातायात के संबंध में वर्तमान कानूनों में सख्ती पर ज्यादा जोर दिया गया है, परंतु कानूनी सख्ती में जमीनी क्रियान्वयन की अपनी चुनौतियाँ और नए आयाम हैं। सड़क दुर्घटनाओं को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं, इसके लिए कई क्षेत्रों में काम करने वाले सरकारी विभागों की भूमिका भी तय करना जरूरी है, ताकि दुर्घटनाओं को प्रभावित करने वाले कारकों पर काम किया जा सके।
यातायात नियमों को लागू करने और उसकी चुनौतियों से निपटने के लिए बहुआयामी, बहुक्षेत्रीय, बहुहितधारक नजरिया अपनाने की जरूरत है। इसमें संयुक्त योजना बनाना और इसका क्रियान्वयन प्रमुख है। बहुहितधारक तरीके के तहत यातायात नियमों और कानून को जनभागीदारी के साथ लागू करने, मैदानी स्तर पर लक्ष्य और उसको पूरा करने की जबाबदेही तय करने की जरूरत है। (सप्रेस)
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