अशीष कोठारी

दस साल पहले उभरा गैर-दलीय राजनीति करने वाले संगठनों, संस्थाओं और सरोकार रखने वाले व्यक्तियों के जमावड़े का विचार अब अपने ठोस रूप में दिखाई देने लगा है। ‘विकल्प संगम’ के तहत देश भर के करीब सौ संगठन मिलजुलकर वैकल्पिक विकास, राजनीति और संघर्ष के रास्ते खोजने में लगे हैं। क्या है, यह प्रक्रिया?

एक दशक पहले, भाषाविद् और विद्वान-कार्यकर्ता गणेश देवी से चर्चा में भारत में विकल्पों के संगम का विचार आया था। बाद में हम इसे लेकर ऐसे कई संगठनों और व्यक्तियों से मिले जो प्रकृति के विनाश और समुदायों के विस्थापन सहित ‘विकास’ की हिंसा पर सवाल उठा रहे थे और न्याय तथा पारिस्थितिकीय ज्ञान के साथ मानवीय जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के वैकल्पिक तरीकों को बढ़ावा दे रहे थे। इस विचार को भारी सहमति मिलने के बाद 2014 में ‘विकल्प संगम’ की शुरूआत हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य आंदोलनों और संगठनों को एक साथ लाना था।

अलग-अलग मुद्दों पर काम कर रहे विविध सामाजिक आंदोलनों को एक साथ लाने, उनके बीच के संबंधों को समझने और बढ़ाने के लिए क्या किया जा सकता है? वैश्विक राजनीतिक, पारिस्थितिकीय, आर्थिक और सामाजिक संकटों से हम सामूहिक रूप से कैसे निपट सकते हैं? पृथ्वी को बर्बाद किए बिना मानवीय जरूरतों व आकांक्षाओं को कैसे पूरा कर सकते हैं? बेहतर भविष्य के बारे में हमारा दृष्टिकोण क्या है? और हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि ‘कार्बन ट्रेडिंग,’ ‘हरित अर्थव्यवस्था’ जैसे ‘समाधान’ जिस सत्ताधारी प्रणाली ने सुझाए हैं, वे कितने कारगर हैं? यहां तक कि ‘टिकाऊ विकास’ जैसी सतही पहल भी विकास-आधारित, पूंजीवादी या राज्यवादी दृष्टिकोण की मूल बातों को चुनौती नहीं देती। ऐसे सवालों का सामना करने का प्रयास ‘विकल्प संगम’ प्रक्रिया के मूल में है।

 ‘विकल्प संगम’ प्रक्रिया ने पांच प्रमुख क्षेत्रों पर काम किया है:- दस्तावेज़ीकरण, जन-सूचना, आपसी सहयोग व सहकारिता, सामूहिक दृष्टिकोण और पैरवी। कई वैकल्पिक प्रयोगों का दस्तावेजीकरण करना, उन्हें समझना और उनसे सीखना महत्वपूर्ण है। ‘विकल्प संगम’ के इस भाग में पत्रकारों और शोधकर्ता-लेखकों से विकल्प की कहानियों को लिखवाना और फिल्में बनवाना शामिल है। मसलन – वर्ष 2020-22 में, जब कोविड महामारी के दौरान सामुदायिक प्रयोगों की कहानियों का दस्तावेजीकरण किया गया था, 70 कहानियां ‘साधारण लोगों के असाधारण कार्य’ नामक श्रृंखला की पुस्तिका में प्रकाशित की गई थीं। 

दस्तावेज़ीकरण के अलावा ऐसी कहानियों और केस-स्टडी को विविध पाठकों-दर्शकों तक पहुंचाना भी जरूरी है। तो, संगम के काम का दूसरा क्षेत्र जनसाधारण तक पहुंचना है। इसके लिए एक प्रमुख मंच ‘विकल्प संगम वेबसाइट’ है, जिसमें लगभग 2000 कहानियां, संदर्भ सामग्री और 100 से अधिक फिल्में तैयार की गई हैं। हालांकि इस वेबसाइट पर अंग्रेजी तथा कुछ हद तक हिन्दी का प्रभुत्व बना हुआ है; लेकिन अन्य भारतीय भाषाओं में इसे लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

 ‘विकल्प संगम’ द्वारा विकल्प की कहानियों की एक पोस्टर प्रदर्शनी बनाई गई है, जिसे स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में दिखाया जाता है। इसके साथ ही कई पुस्तिकाएं और ग्राफिक उपन्यास का स्टॉल भी लगाया जाता है। पिछले 2-3 वर्षों में, ‘विकल्प संगम’ की कहानियां, सामग्री और कार्यक्रमों को विभिन्न ‘सोशल मीडिया’ माध्यमों से भी प्रचारित किया गया है, पर मुख्यधारा के मीडिया तक ‘विकल्प संगम’ की पहुंच सीमित ही रही है।

 ‘विकल्प संगम’ का तीसरा प्रमुख क्षेत्र आपसी सहयोग और एक-दूसरे से सीखना है। सबसे रोमांचक हैं, ऐसे ‘विकल्प संगम’ जिनमें 3-4 दिनों का जमावड़ा होता है। साल 2024 की शुरुआत तक, लगभग 30 ऐसे ‘विकल्प संगम’ आयोजित किए जा चुके हैं, जिनमें भारत के कई राज्यों/क्षेत्रों के क्षेत्रीय-संगम शामिल हैं; और ऊर्जा, भोजन, युवा, लोकतंत्र, पारंपरिक वैश्विक दृष्टिकोण, वैकल्पिक अर्थव्यवस्थाएं, स्वास्थ्य, समृद्धि और न्याय, पारंपरिक शासन और शांति पर संगम शामिल हैं। इन जमावडों में गंभीर चर्चाओं के साथ-साथ क्षेत्रीय यात्राएं, शारीरिक गतिविधियां और वैकल्पिक उत्पादों का प्रदर्शन भी होता है।

 ‘विकल्प संगम’ का एक पहलू अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान करना और अनुभवों को आपस में साझा करना भी है, जिससे अलग-अलग खांचों को तोड़ा जा सके। इस प्रयास में कई समूह शामिल रहे हैं। 2023 में आदिवासी व अन्य सामुदायिक दृष्टिकोणों पर आयोजित ‘विकल्प संगम’ में आदिवासियों, खानाबदोश-चरवाहों और गैर-आदिवासी कृषक समुदायों के बीच बातचीत हुई। एक अन्य संगम में विकलांग व्यक्तियों और दूसरे में ‘एलजीबीटीक्यूआईए’ समुदायों के कार्यकर्ताओं ने तथाकथित ‘सामान्य’ लोगों को उनकी समस्याओं के बारे में बताया।

पश्चिमी हिमालय के संगमों ने एक-दूसरे से सीखने के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रमों को शुरु किया जो क्षेत्र के समूहों द्वारा स्वतंत्र रूप से तीन साल से सतत जारी है। साल 2017 में आयोजित ‘युवा विकल्प संगम’ में विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों और संस्कृतियों के युवाओं को एक साथ लाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, ताकि वे जिस तरह का समाज चाहते हैं और जिसके लिए काम कर रहे हैं, उसे व्यक्त कर सकें।

‘विकल्प संगम’ का चौथा क्षेत्र सामूहिक दृष्टिकोण का निर्माण है। यह कई वर्षों से भारतीय समाज के कई वर्गों की दूरदर्शी आवाज़ों को एक साझा एजेंडा में लाने का प्रयास है। इसमें किसानों, चरवाहों, मछुआरों, औद्योगिक श्रमिकों और शिल्पकारों की आवाजें और दृष्टिकोण शामिल हैं। इन लोगों को अक्सर ‘कामकाजी’ माना जाता है, जबकि शहरी बुद्धिजीवी ‘विचारक’ माने जाते हैं। इसका सम्बन्ध लिंगभेद और जातिवाद में भी निहित है। इस झूठे द्वंद्व को तोड़ना ‘विकल्प संगम’ प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहा है।

‘विकल्प संगम’ का पांचवां और अंतिम क्षेत्र मुद्दों की पैरवी करना है। ‘विकल्प संगम’ के सदस्यों को अहसास है कि राजनीतिक आलोचनाओं के बिना राजनीतिक और आर्थिक ताकतों को चुनौती देना असंभव है। कई संगमों की घोषणाओं में नीतिगत सिफ़ारिशें शामिल की गई हैं। उदाहरण के लिए 2016 में ‘राष्ट्रीय खाद्य संगम’ में प्रतिभागियों ने समुदाय-आधारित टिकाऊ-कृषि के पक्ष में और ‘जीएम’ सरसों का विरोध करते हुए एक घोषणा जारी की थी।

पर्यावरण और सामाजिक न्याय के लिए स्थानीय संघर्षों के समर्थन में कई बयान जारी किए गए हैं, जिनमें कश्मीर और लद्दाख की स्थिति में संवैधानिक परिवर्तन, लक्षद्वीप में जीवन को सांप्रदायिक बनाने के प्रयास, ऑरोविले में सरकारी हस्तक्षेप, मणिपुर में जातीय दरारें और उन समुदायों से सीखे गए सबक जो कोविड के दौरान बरकरार रहे – इन सबमें सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई के कदम शामिल हैं।

पैरवी का सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास 2019 और 2024 में जारी किया गया ‘न्यायपूर्ण, समतापूर्ण, टिकाऊ भारत के लिए जन-घोषणापत्र’ रहा है। इनमें भारत के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पारिस्थितिकीय मुद्दों पर विस्तृत सिफारिशें शामिल हैं। इसका उद्देश्य न केवल राजनीतिक दलों से अपने चुनाव अभियानों में इन पर विचार करने का आग्रह करना है, बल्कि स्थानीय से लेकर राज्य सरकारों तक के साथ पैरवी में उपयोग करना भी है।

दिलचस्प है कि ‘विकल्प संगम’ में पारंपरिक वैचारिक सीमाएं कमजोर होती दिख रही हैं। निष्ठावान गांधीवादी, मार्क्सवादी, नारीवादी, दलित, आदिवासी, प्रकृति अधिकार और अन्य दृष्टिकोण वाले प्रतिभागी, जो अक्सर एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते आए हैं, रचनात्मक बातचीत में शामिल रहे हैं। बैठकों का माहौल इन मतभेदों को दूर करने, या उन्हें स्पष्ट रूप से स्वीकार करने और समानताओं को लेकर आगे बढने का है। ऐसा इसलिए हो सका है क्योंकि ‘विकल्प संगम’ में आने वाले प्रतिभागी विविधता के प्रति सम्मान रखते हैं।

‘विकल्प संगम’ संगठन की बजाए एक नेटवर्क या मंच है। इसकी अपेक्षाकृत अनौपचारिक संरचना में एक राष्ट्रीय महासभा है जिसमें 2024 तक 90 से अधिक आंदोलन और संगठन शामिल रहे हैं। पहले कुछ वर्षों तक इसका केंद्र ‘कल्पवृक्ष’ संस्था थी, लेकिन 2021 से समन्वय और अगुआई लगभग 10 सदस्य-संगठनों की एक टीम में विकेंद्रीकृत हो गई है। प्रत्येक संगम का आयोजन एक या अधिक मेजबानों द्वारा किया जाता है, जिनमें आमतौर पर महासभा के सदस्य भी शामिल होते हैं। ‘विकल्प संगम’ ‘सामान्य’ लोगों की समाधान खोजने की क्षमता का महोत्सव है। इससे यह भी पता चलता है कि बेहतर समाज की परिकल्पना औपचारिक ‘विशेषज्ञों’ का विशेषाधिकार नहीं है। यह कहीं भी लोगों के ज्ञान और अनुभव को एक साथ रखकर किया जा सकता है। यह जीवन के विभिन्न चरणों में, विविध संस्कृतियों और आजीविका में, सीखने और शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर, प्रकृति या खेतों, कक्षाओं में संभव है। पिछले कुछ दशकों में हमने सीखा है कि इस प्रक्रिया को जितना अधिक लोकतांत्रिक, सहभागी, विविध और रोमांचक बनाएंगे तो कुछ लक्ष्य पूरे होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। भले ही हमारी कुछ गतिविधियां राज्य की नीति को प्रभावित करने की कोशिश पर केंद्रित हों, अंततः यह लोगों का सशक्तीकरण ही है, जो परिवर्तन को आगे बढ़ाएगा। (सप्रेस) (बाबा मायाराम द्वारा अनुवादित)

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